Khanwa Ka Yudh (1527 ई०) खानवा का युद्ध कब और किसके बीच हुआ


प्राचीन समय से ही भारत का इतिहास बेहत भरोसेमंद रहा है. अंग्रेजों को आने से पहले भारत में कई साम्राज्य हुए जिन्होंने विस्तार वादी नीतियां अपनाते हुए खुद को यहां पर स्थापित करने की कोशिश की इस कारण समय-समय पर नई साम्राज्य बनते रहें और पुराणों का पतन होता रहा इस कोशिश में निर्णायक लड़ाई भी लड़ी गई इनमें कुछ काल में समा गई और कुछ इतिहास के पन्नों में समा गई इनमें से एक युद्ध Khanwa Ka Yudh है.


खानवा का युद्ध का इतिहास काफी भरोसेमंद रहा माना जाता है कि इस लड़ाई के बाद मुगल साम्राज्य की भारत में शुरुआत हुई इसी टॉपिक पर पढ़ने वाले और इस लेख में यह भी देखने वाले है की इस Khanwa Ka Yudh में क्या-क्या कारण है और परिणाम के बारे में पूरा इतिहास के बारे में एक-एक कर के टॉपिक इस लेख में पढने वाले है.

  • खानवा का युद्ध कब और किसके बीच हुआ
  • खानवा युद्ध के कारण
  • खानवा युद्ध के परिणाम
  • बाबर की सफलता के कारण
  • खानवा का युद्ध किसने जीता

Khanwa Ka Yudh (1527 ई०) – खानवा का युद्ध कब और किसके बीच हुआ

प्रिय स्टूडेंट अब इस लेख में पढने वाले है की Khanwa Ka Yudh कब हुआ और किसके बीच यह लड़ाई लदी गई थी. यह युद्ध आपके परीक्षाओ के दृष्टी से अति महत्वपूर्ण है अगर आप किसी प्रतियोगी परीक्षाओ की तैयारी कर रहे हैं या आप एग्जाम देने जा रहे है तो यह लेख आपके लिए अति महत्वपूर्ण है इस लेख को पूरा अंत तक पढ़े.


खानवा का युद्ध:- खानवा का युद्ध 1527 ई. में हुआ राणा सांगा एक बड़ी सेना के साथ आगरा पहुँचा. बाबर सीकरी से 20 मील दूर खानवा में राणा का सामना करने के लिए तैयार हो गया. राणा की विशाल सेना और शक्तिशाली सेना देखकर बाबर की सेना में भय और घबराहट फैल गई परन्तु बाबर स्वयं एक समझदार सेनापति था. उसने कसम खाई कि यदि वह इस युद्ध में विजयी हुआ तो कभी भी मदिरा को हाथ नहीं लगायेगी.

बाबर के उत्साह प्रदान करने वाले भाषणों ने उसके सैनिकों के मनोबल को बढ़ाया और उनमें वीरता का संचार किया. उसके सैनिक अपने सेनापति की आज्ञा मानने को तैयार हो गये और बाबर के उत्तेजक भाषणों के कारण बाबर की छोटी-सी सेना ने अपनी सम्पूर्ण शक्ति से Khanwa Ka Yudh किया और एक बहुत ही बड़ा यादगार युद्ध हुआ.

खानवा युद्ध के कारण

प्रिय स्टूडेंट अब इस लेख में आपको सम्पूर्ण खानवा युद्ध के कारणों का वर्णन करेंगे और एक-एक टॉपिक को इस लेख में पढने वाले है औए सबसे आसन भाषा में जो आपके एग्जाम के लिए अति महत्वपूर्ण रहेगा. इस Khanwa Ka Yudh से सम्बंधित कई प्रश्न आपके प्रतियोगी परीक्षाओ में पूछे जा सकते है तो चलिए अब इस लेख को पूरा अंत तक पढ़ते है.

  • राणा सांगा की महत्त्वाकांक्षा
  • राणा सांगा की बढ़ती शक्ति
  • बाबर द्वारा दिल्ली पर कब्जा
  • बाबर के अनुसार राणा ने उसके साथ विश्वासघात किया
  • बाबर के दूसरे सफल आक्रमण
  • अफगानों ने राणा को प्रोत्साहित किया

राणा सांगा की महत्त्वाकांक्षा

1.राणा सांगा की महत्त्वाकांक्षा – राणा सांगा एक बहुत ही महत्त्वाकांक्षी शासक था. वह बहुत शक्तिशाली था और अपने राज्य का अधिकाधिक विस्तार करना चाहता था. उसकी महत्त्वाकांक्षा एक हिन्दू राज्य की स्थापना करने की थी। अपनी इसी महत्वाकांक्षा के कारण उसने बाबर जैसे शक्तिशाली से Khanwa Ka Yudh करने का प्रयास किया.

राणा सांगा की बढ़ती शक्ति

2.राणा सांगा की बढ़ती शक्ति- बाबर ने स्वयं ही राणा को एक शक्तिशाली शासक माना है. बाबर जानता था कि जब तक राणा जैसा शक्तिशाली जीवित है तब तक भारत पर विजय पाना मात्र स्वप्न है. राणा के मालवा और गुजरात पर कब्जा करने के बाद बाबर को उसकी शक्ति का अहसास हुआ. बाबर के इसी भय से उसे अपनी शक्ति बढ़ाने पर मजबूर कर दिया.

बाबर द्वारा दिल्ली पर कब्जा

3.बाबर द्वारा दिल्ली पर कब्जा — बाबर ने जब पानीपत का युद्ध विजय कर लिया तब राणा को उसकी शक्ति का अहसास हुआ। राणा अब तक सोच रहा था कि बाबर इब्राहीम पर विजय पाने के पश्चात् वापस चला जायेगा और बाबर के जाने के पश्चात् दिल्ली के तख्त पर कब्जा कर लेगा, परन्तु बाबर ने स्वयं ही तख्त पर बैठकर वहाँ अपने वंश की नींव डाल दी.

बाबर के अनुसार राणा ने उसके साथ विश्वासघात किया

4.बाबर के अनुसार राणा ने उसके साथ विश्वासघात किया—‘तुजुक ए बाबरी’ में बाबर ने एक पत्र का विवरण दिया है. जिसके अनुसार राणा ने बाबर को इब्राहीम के विरुद्ध Khanwa Ka Yudh के लिये आमन्त्रित किया और उसे सहायता का आश्वासन भी दिया परन्तु पानीपत के युद्ध में उसने बाबर की कोई सहायता नहीं की बाबर के अनुसार राणा ने उसके साथ विश्वासघात किया.

बाबर के दूसरे सफल आक्रमण

5.बाबर के दूसरे सफल आक्रमण-बाबर ने दिल्ली के तख्त पर कब्जा करके ही सन्तोष नहीं किया परन्तु उसने कालपी, धौलपुर बयाना एवं आगरा पर भी कब्जा किया। राणा को बाबर के ये आक्रमण अपना अपमान लगे क्योंकि वह इन क्षेत्रों को अपने प्रभाव में मानता था.

अफगानों ने राणा को प्रोत्साहित किया

6.अफगानों ने राणा को प्रोत्साहित किया-बहुत से अफगानी बाबर से पराजित होकर राणा की शरण में आ गये थे और वे सदैव बाबर के विरुद्ध राणा को उकसाया करते थे. हसनखाँ मेवाती एवं महमूद लोदी भी वे अफगानी थे जो अपनी सेना लेकर राणा से आ मिले थे.

खानवा युद्ध के परिणाम

अब इस लेख में पढने वाले है की Khanwa Ka Yudh के परिणाम के बारे में पूरा विस्तार से और सबसे आसान भाषा में जो आपके एग्जाम के लिए अति महत्वपूर्ण है. इस खानवा के युद्ध के परिणामो से सम्बन्धित सभ प्रश्नों को एक-एक कर के पढने वाले है जो आपके सभी प्रतियोगी परीक्षाओ के लिए अति महत्वपूर्ण है. इस लेख में यह भी देखने वाले है की Khanwa Ka Yudh के परिणाम क्या है तो इस लेख को पूरा अंत तक पढ़े. इस युद्ध के निम्नलिखित परिणाम हुए

1.खानवा युद्ध के परिणाम भारत के लिए युगान्तरकारी सिद्ध हुए. इससे राजपूत शक्ति का अन्त हो गया तथा बाबर को एक स्थायी
साम्राज्य प्राप्त हुआ.

2.इस युद्ध से राजपूतों को अपूर्व क्षति पहुँची. कहने का तात्पर्य यह है कि इस Khanwa Ka Yudh में राजपूतों को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंची खानवा के इस युद्ध के कारण राजपूत शक्ति पूरी तरह से छिन्न-भिन्न हो गई थी.

3.इस विजय से बाबर ने अपना ध्यान काबुल से हटाकर दिल्ली साम्राज्य को सुदृढ़ करने में लगा दिया.

4.खानवा के युद्ध के परिणाम वास्तव में दूरगामी थे. इसने राजपूत परिसंघ तोड़ दिया. परिसंघ के टूटते ही हिन्दू
सर्वोच्चता का स्वप्न भंग हो गया. जिसने उत्तरी भारत में मुस्लिम राज्यों को
अत्यधिक दुविधा में डाल रखा था.

बाबर की सफलता के कारण

स्टूडेंट अब इस लेख में बात करने वाले है की Khanwa Ka Yudh में बाबर की सफलता के बारे में पढने वाले है जो की यह भी प्रश्न आपके परीक्षाओ से सम्बन्धित अति महत्वपूर्ण है. इस लेख में बाबर ने कैसे Khanwa Ka Yudh में सफल रहा सारे टॉपिक को एक-एक कर के पढने वाले है तो चलिए अब इस लेख को पूरा अंत तक पढ़ते है.

1.उसके समय में भारत अनेक स्वतन्त्र राज्यों में बँटा हुआ था और उनमें पारस्परिक संगठन व एकता का पूर्ण अभाव था.

2.बाबर की सेना पूर्ण रूप से संगठित एवं प्रशिक्षित थी. राजपूतों की पराजय का कारण उन पर तोपों का विनाशकारी प्रहार था। रशबुक विलियम्स ने लिखा है, “मुगलों के तोपखाने ने बाबर को युद्ध में विजयी बनाने में महत्त्वपूर्ण सहायता दी थी.

3.बाबर स्वयं एक वीर एवं कुशल सेनानायक और महान् योद्धा था.

4.भारतीयों की युद्ध-प्रणाली बहुत ही दोषपूर्ण थी. उनकी सेना में हाथी होते थे तथा भारतीय राजा हाथी पर बैठकर युद्ध लड़ते थे. ये हाथी अक्सर युद्ध में घायल होने पर बिगड़ जाते थे और अपनी ही सेना को रौंद डालते थे. इस प्रकार ये हाथी युद्ध में घातक सिद्ध होते थे.

5.इब्राहीम लोदी की कठोर नीति के कारण सभी दरबारी एवं अमीर नाराज रहते थे. इसलिए उन्होंने युद्ध में उसे पूरा-पूरा सहयोग नहीं दिया.

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खानवा का युद्ध किसने जीत

तो प्रिय स्टूडेंट आपको बता दे की इस Khanwa Ka Yudh में बाबर की सेना और राणा सांगा की सेना से युद्ध हो जाती है जिसमे इस युद्ध Khanwa Ka Yudh में बाबर की विजय यानि की जीत हो जाती है.

FAQ (Khanwa Ka Yudh (1527 ई०) से सम्बन्धित कुछ सवालो का जवाब)

अब प्रिय स्टूडेंट द्वारा Khanwa Ka Yudh से सम्बन्धित कुछ अति महत्वपूर्ण प्रश्नों का उत्तर देखने वाले है जो की यह प्रश्न आपके प्रतियोगी परीक्षाओ से सम्बन्धित अति महत्वपूर्ण है. तो चलिए अब जान लेते है.

खानवा का युद्ध कब और किसके बीच लड़ा गया था?

17 मार्च, 1527 को खानवा का युद्ध महाराणा सांगा व बाबर के मध्य हुआ. इस युद्ध में सांगा घायल हो गया, तो उसका राजचिह्न झाला राजसिंह के पुत्र अज्जा ने ग्रहण किया तथा सांगा को युद्ध स्थल से कालपी (मध्यप्रदेश) नामक स्थान पर ले जाया गया.

खानवा के युद्ध में जीत किसकी हुई?

इस खानवा के युद्ध में बाबर की जीत हो जाती है और खानवा के युद्ध में राणा सांग की हार हो जाती है.

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