प्रिय स्टूडेंट मध्यकालीन भारत के इतिहास के अंतर्गत आने वाले महत्वपूर्ण टॉपिक Tana Bhagat Andolan के बारे में पढने वाले है. यह आन्दोलन कब प्रारम्भ हुआ और इस आंदोलन का क्या-क्या कारण व प्रभाव रहा है. इस लेख में इससे सम्बन्धित सारे टॉपिक को एक-एक कर के पढने वाले है. इस से सम्बन्धित कई तरह से प्रश्न आपके एग्जाम के लिए अति महत्वपूर्ण है. इस लेख को पूरा अंत तक पढ़े.
- टाना भगत आंदोलन
- आंदोलन कब प्रारम्भ हुआ
- टाना भगत कौन है
- अंत में क्या-क्या पढ़ा (निष्कर्ष)
ताना भगत आंदोलन का नेतृत्व किसने किया था -Tana Bhagat Andolan Kya Hai
प्रिय विधार्थियों अब इस लेख में अब ताना भगत आंदोलन क्या है और कब प्रारम्भ हुआ Tana Bhagat Andolan से सम्बन्धित कुछ महत्वपूर्ण निम्नलिखित प्रश्न है.
- टाना शब्द का अर्थ
- गिरी हुई स्थिति
- आंदोलन की शुरुआत
- उराँवों ने खेती करना बंद कर दिया
- जतरा भगत की मृत्यु
- गाँधी जी के रूप
- दुकानों पर धरना
- सरदार पटेल
टाना शब्द का अर्थ
टाना शब्द का अर्थ:- झारखण्ड और उसके क्षेत्रों में संपादित किए गए आंदोलनों में बिरसा आंदोलन अधिक प्रसिद्ध और व्यापक था. महत्व की दृष्टि से बिरसा आंदोलन के बाद दूसरी श्रेणी में Tana Bhagat Andolan आता है क्योंकि इसका महत्व बहुआयामी था. इस आंदोलन की शुरुआत यानि की प्रारम्भ अप्रैल 1914 ई0 में हुई थी. यह एक धार्मिक आंदोलन था और जिसके राजनीतिक लक्ष्य थे. वस्तुतः जो टाना भगत आन्दोलन है उसका उरांवों की शाखा यह है जिसने कुडूख धर्म को उन्होंने अपनालिया था. टाना शब्द का अर्थ है टानना या खींचना होता है.
गिरी हुई स्थिति
गिरी हुई स्थिति:- टाना भगत अपनी गिरी हुई स्थिति सुधारने के लिए प्रयत्न कर रहे थे और इसका एक मात्र तरीका था ईश्वर की आज्ञा मानना था. उरांव जनजाति का विशिष्ट यह धर्म है जिसमें उनके प्रमुख देवता ‘धर्मेश’ हैं. उराँवों में भगत शब्द उन्हीं लोगों के लिए प्रयुक्त होता है जो भगवद भक्त का परिपालन करते है. Tana Bhagat Andolan के कहे जाने वाले का नाम व उनका जनक जतरा भगत थे और जो उनका जन्म जो हुआ 2 अक्टूबर 1888 ई० को गुमला के एक जिला के अंतर्गत विशुनपुर के पास प्रखण्ड के चिंगरी के पास नावाटोली एक गाँव में इनका जन्म हुआ था.
आंदोलन की शुरुआत
आंदोलन की शुरुआत:- ऐसा कहां जाता यानि की माना यह जाता है कि जो जतरा हसराय एक गांव के पास जाकर श्री तुरीया भगत से ओझा का उन्होंने प्रशिक्षण लिया करते थे. सन 1914 ई० में उन्हें अचालक आत्म बोध हुआ और उसने घोषणा की कि धर्मेश ने उसे जनजातियों का नेतृत्व सौंपा है.
उसने धार्मिक भावनाओं को जागृत करके उराँवों को संगठित करना शुरू कर दिया व इस तरह Tana Bhagat Andolan की शुरुआत 21 अप्रैल 1914 ई को हुई थी. जतरा भगत ने अंग्रेजी राज जो थे उनके अत्याचार से परेशान हो गए और जमींदारों द्वारा बेगारी, समाज में फैले अंधविश्वास एवं कुरीतियों से पीड़ित आदिवासी समुदाय की सन्मार्ग दिखाने का संकल्प लिया अपने अनुयायियों के लिए उसने आचरण की नई संहिता लागू की जैसे-
- केवल उराँव देवता ”धर्मेश’ की अरा-धना की जाय
- पशु – बलि, मांस खाने और शराब पीने का परित्याग किया जाए.
- गाय बैल पवित्र हैं, उनको काम में नहीं लाया जाना चाहिए था.
- जमींदारों , अन्य धर्मावलंबियों तथा गैर-आदिवासियों के यहाँ कुलियों एवं मजदूरों के रूप में काम न करें जतरा भगत द्वारा आरंभ किया गया था.
उराँवों ने खेती करना बंद कर दिया
उराँवों ने खेती करना बंद कर दिया:- आंदोलन एक सम्पूर्ण उरांव प्रदेश में एक जंगल की आग की पूरी तरह से फैला और उराँवों ने खेती करना बंद कर दिया यानि की खेती जो करते थे वह क्या किया की खेती करना बंद कर दिया था. उनका मानना था कि खेतों में जो हल चलाते है उसे गाय बैल इत्यादि को तकलीफ यानि की परेशानी होती है. उराँवों ने जमींदारों और अन्य ग्रँट -आदिवासियों के यहाँ काम करना बंद कर दिया था.
1 वर्ष 1916 ई0 के आरंभ में जो-जो अपने अनुयायियों को साथ उन्होंने मजदूरी जो करते थे वह मजदूरी करने से रोका और इस जुर्म के अपराध में उनको जतरा भगत को उन्होंने क्या किया की उनके सात जितने अनुयायियों के साथ एक गुमला के अनुमंडल के जितने आधिकारी पदाधिकारी की वहां का एक कचहरी में उपस्थित होने को किया गया था. बाद में उसे इस शर्त पर छोड़ा गया कि वे अपने नए सिद्धान्तों का प्रचार नहीं करेगा और शांति बनाये रखेगा. जेल में मिली प्रताड़ना से रिहा होने के दो माह बाद हीं जतरा भगत की मृत्यु हो गयी ‘लेकिन जतरा भगत द्वारा आरंभ Tana Bhagat Andolan फलता फूलता रहा है.
जतरा भगत की मृत्यु
जतरा भगत की मृत्यु:- जतरा भगत की मृत्यु के कुछ सालों बाद यह Tana Bhagat Andolan शिथिल पड़ने लगा, क्योंकि नया धर्म भी भूमि संबंधी अधिकारों की रक्षा करने में अक्षम साबित हुआ था. टाना भगत जब यह समझ गए कि केवल धार्मिक आवेग के बल पर आंदोलन को जिंदा रखना मुश्किल है तो उन्होंने इस Tana Bhagat Andolan को राजनीतिक पुट दे दिया था.
गाँधी जी के रूप
गाँधी जी के रूप:- टाना भगतों ने आंदोलन को भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के साथ जोड़ कर Tana Bhagat Andolan को दीर्घजीवी बना लिया. टाना भगतों ने यह कहना शुरू किया कि जतरा भगत या बिरसा भगवान के मूल उद्देश्यों में कोई अंतर नहीं है. टाना भगतों में से कुछ लोग यह समझते यानि की कहते थे कि वह गाँधी जी के रूप में जतरा भगत जो थे और कुछ लोग का यह कहना है की उनका पुनर्जन्म हुआ है. अत: जब महात्मा गाँधी ने 1921 में असहयोग आंदोलन आरंभ किया तो कुडू थाना क़े सिद्धू भगत के नेतृत्व में टाना भगत पहली बार भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हुए थे.
दुकानों पर धरना
दुकानों पर धरना:- टाना भगतों ने शराब की दुकानों पर धरना देकर, सत्याग्रहों एवं प्रदर्शनों में भाग लेकर, स्वतंत्रता आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लिया था. ताना भगत गाँधी जी से अत्यंत प्रभावित थे इसलिए उन्होंने चरखा को अपनाया केवल खादी वस्त्रों का उपयोग किया. खदरचारी और गांधी टोपी पहने, शंख एवं घंटी बजाते हुए टाना बाबा हम भजन गाते टाना भगतों की एक टोली गांधी जी को यह बहुत प्रीय हुआ करती थी.
सरदार पटेल
सरदार पटेल:- सन 1930 ई में जब सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान सरदार पटेल ने बारदोली में कर न देने का आंदोलन शुरू हुआ तो ताना भगत इससे प्रभावित हुए और उन्होंने सरकार को कर देना बंद कर दिया. इसे दबाने की कोशिश की गई लेकिन Tana Bhagat Andolan राष्ट्रीय आंदोलन का अभिन्न अंग के रूप में जीवित रहा है. जब सन 1940 ई० के महात्मा गाँधी जी को 400 रुपये की एक थैली कांग्रेस अधिवेशन में टाना भगत थे उन्होंने गाँधी जी को भेंट की थी.
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FAQ (ताना भगत आंदोलन पर प्रकाश डालें से सम्बन्धित कुछ सवालो का जवाब)
प्रिय स्टूडेंट अब इस लेख में आपको Tana Bhagat Andolan से सम्बन्धित अति महत्वपूर्ण प्रश्न देखने वाले है. इस प्रश्न से सम्बन्धित आपके द्वारा कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नों का जवाब देखने वाले है. इस से सम्बन्धित आपके सभी तरह के प्रतियोगी परीक्षाओ में पूछे जा सकते है. तो चलिए इस प्रश्न का उत्तर देखते है.
ताना भगत आंदोलन का प्रारंभ कब हुआ?
यह आन्दोलन झारखंड राज्य में हुआ था. सन 21 अप्रैल 1914 ई० को यह आन्दोलन की सुरुआत हुई थी. यह रही Tana Bhagat Andolan जो अप्रैल 1914 को हुआ था.
जतरा भगत की मृत्यु कब हुई थी?
यह बता दे की जो जतरा भगत है उनका देहांत सन 1916 ई० को हुआ था. जो Tana Bhagat Andolan में शामिल थे. यह भी आपके एग्जाम में पूछ सकता है की जतरा भगत का देहान्त कब हुआ था.
अंत में क्या पढ़ा (निष्कर्ष)
निष्कर्ष:- उपर्युक्त विश्लेषणों से यह स्पष्ट है कि यह आंदोलन जो है वह टाना भगतों का आंदोलन दो चरणों में चला यानि की प्रारम्भ हुआ था. पहले चरण में इन्होंने अपना परिष्करण आंदोलन चलाया तथा दूसरे चरण में देश प्रेम और शोषकों का विरोध आदि स्वर मुखरित हुए थे. जो तान भगत संप्रदाय को महात्मा ‘गाँधीजी से उन्होंने प्रभावित स्वतंत्रता जो आंदोलन है उन्होंने क्या किया की जो आंदोलन है उस को शुद्ध आदिवासी रूप माना जाता है यानि की कहा जाता है.