बिरसा मुंडा आंदोलन पर प्रकाश डालें-Birsa Munda Andolan(1895-1900)

प्रिय स्टूडेंट इस लेख में मध्यकालीन इतिहास जो आपको Birsa Munda Andolan से सम्बन्धित सारे टॉपिक को इस लेख में पढने वाले है. इस टॉपिक से आपके आने वाले सभी तरह के प्रतियोगी परीक्षाओ के लिए अति महत्वपूर्ण टॉपिक है. इस लेख में इस आन्दोलन की क्या घटना थी और बिरसा आंदोलन का प्रमुख कारण क्या-क्या है. इस लेख में आपको इस आन्दोलन को पूरा विस्तार से यह इतिहास को पढने वाले है.

  • बिरसा मुंडा का पूरा नाम क्या है
  • बिरसा आंदोलन का प्रमुख कारण
  • आंदोल का आरंभ प्रसार एवं दमन
  • परिणाम व प्रभाव
  • अंत में क्या पढ़ा(निष्कर्ष)

बिरसा मुंडा का पूरा नाम क्या है-Birsa Munda Andolan In Hindi

बिरसा मुंडा का पूरा नाम क्या है:- यह आंदोलन झारखंड में सबसे ज्यादा संगठित और व्यापक माना जाता है. इस आंदोलन का नायक जो थे वह थे बिरसा मुंडा थे और उनको को भगवान् के रूप में मान्यता यानि की भगवान के रूप में माना जाता है. जो लोग मुण्डा जनजाति अन्य जनजातियों की तरह वह पूरी तरह से कृषि और वनों पर निर्भर होकर अपनी परंपराओं, मान्यताओं सम्मान को सहेज रहे थे. यह जनजाति छोटानागपुर क्षेत्र की प्रमुख जनजातियों में से एक थी शांति पूर्ण जीवन व्यतीत करने वाले मुंडा लोग भी उत्पीडिन और अंग्रेजी लूटपाट से बगावत पर उतरे थे.

ऐसे समय में जब अत्याचार चरम पर था और मुण्डा समाज, परिवार और राजनीति खतरे में था तब उनके अंदर बिद्रोह यानि की Birsa Munda Andolan की भावना उत्तपन हो गई थी. बिरसा मुण्डा नामक एक नौजवान ब्यक्ति जो मुंडा जनजाति के उत्पान का बीड़ा उठाकर आगे बड़ा और अंग्रेजो का जो अत्याचार था की उनका यह अत्याचार इतना बढ़ गया की यह लोग बगावत पर उतरे जो नौजवान ब्यक्ति जो मुंडा जनजाति के उठान के लिए कार्य करना शुरु कर दिया था.

बिरसा मुंडा के आंदोलन के क्या कारण थे

इस Birsa Munda Andolan के प्रमुख कारण निम्नलिखित है.

  • खुटकटी व्यवस्था की समाप्ति और बैठ बेगारी का प्रचलन
  • मिशनरियों का कोरा आश्वासन और उनसे मोह भंग
  • राजस्व की बढ़ी हुई दर
  • तात्कालिक कारण 1894 का छोटानागपुर वन सुरक्षा कानून

खुटकटी व्यवस्था की समाप्ति और बैठ बेगारी का प्रचलन

खुटकटी व्यवस्था की समाप्ति और बैठ बेगारी का प्रचलन:- 19वीं सदी में उत्तरी मैदान से आने वाले व्यापारियों जमीनदारो ठेकेदारों, साहूकारों ने Birsa Munda Andolan मुण्डा जनजाति में प्रचलित सामूहिक भू- स्वामित्व वाली भूमि व्यवस्था को समाप्त कर व्यक्तिगत भू स्वामित्व वाली भूमि व्यवस्था का प्रचलन किया था. जो लोग बंधुआ मजदूरी कर के इसके (बेठ बेगारी) के माध्यम से दिकू मुण्डाओं को शोषण किया करते रहे थे. मुण्डा जनजाति के शोषण के संदर्भ में अंग्रेजी साम्राज्य की मौन स्वीकृति के कारण इस जनजाति में असंतोष पैदा होने लगी और यही भावना आन्दोलन में चढ़ बढ़ कर हिस्सा लिया था.

मिशनरियों का कोरा आश्वासन और उनसे मोह भंग

मिशनरियों का कोरा आश्वासन और उनसे मोह भंग:- अपने अधिकारों के वापस मिलने तथा अपने हितों की रक्षा होने के आश्वासन पर इन लोगों ने ईसाई धर्म को स्वीकार के लिया था. परन्तु इनकी आशाओं के विपरीत आवश्यकता पड़ने पर मिशनरियों ने भी इनका साथ नहीं दिया. भव मुण्डा लोगों का इसपर विश्वास नहीं रहा तथा पूर्ण रूप से उनका मोह भंग हो गया था. यह भी Birsa Munda Andolan के कारण है.

राजस्व की बढ़ी हुई दर

राजस्व की बढ़ी हुई दर:- बढ़ती हुई जनसंख्या में कृषि योग्य भूमि की अधिक आवश्यकता हुई जिसके फलस्वरूप राजस्व भी बढ़ गया था. निर्धन मुण्डा किसान जिन्हें पुरानी तकनीकों तथा अधिकतर बंजर भूमि के कारण बहुत कम उपज प्राप्त होती थी. वे किसान बढ़ी हुई राजस्व की दर को चुकाने में सक्षम नहीं थे. जिससे मुण्डा किसानों में भी विद्रोह यानि कि Birsa Munda Andolan की भावना पैदा होने लगी थी.

तात्कालिक कारण 1894 का छोटानागपुर वन सुरक्षा कानून

तात्कालिक कारण 1894 का छोटानागपुर वन सुरक्षा कानून:- जंगल पर आधारित मुण्डाओं का जीवन था और वे जीविका के लिए पूरी तरह से जंगल पर निर्भर थे. छोटानागपुर वन सुरक्षा कानून के लागू होने से वे निर्वाह के सर्वप्रमुख साधन से वंचित हो गए थे. उन्हें भूखों से मरने की नौबत तक आ गई और भूख से तड़पते बिलबिलाते हुए मुण्डाओं के आगे विद्रोह यानि की Birsa Munda Andolan करने तक की विकल्प आ गया और इसका कोई बिकल्प नहीं बचा था.

आंदोल का आरंभ प्रसार एवं दमन

अब इस लेख में आपको Birsa Munda Andolan से सम्बन्धित कुछ इम्पोर्टेंट टॉपिक निम्नलिखित है.

  • आंदोलन में भाग
  • धार्मिक आंदोलन
  • ब्रिटिश सरकार
  • महिलाओं की भूमिका
  • आंदोलनकारियों पर मुकदमे

आंदोलन में भाग

आंदोलन में भाग:- बिरसा नामक साहसी व उत्साही मुण्डा युवक ने नेतृत्व संभाला बिरसा का जन्म 15 नवम्बर 1875 ई० को बिरसा झारखंड राज्य के राँची जिले के खूँटी अनुमण्डल के तमाड़ थाना जो था उसके क अन्तर्गत आने वाले उलिहातू एक गाँव में जन्म हुआ था. वह एक बताइदार सगुना मुंडा का पुत्र था और बाद में वे चालकंद आकर बस गए थे. बिरसा मुण्डा पर वैष्णव संप्र- दाय का प्रभाव पड़ा था. सन 1893-94 में बिरसा नामक ने वन विभाग के ही द्वारा ग्राम के जितने बंजर जमीन थे उस बंजर जमीन को बिरसा ने वन विभाग ही द्वारा अधिग्रहित करने के लिए उसने ही विरुद्ध Birsa Munda Andolan में भाग ले लिया था.

धार्मिक आंदोलन

धार्मिक आंदोलन:- सन 1895 ई० में उसने बिरसा ने नए धर्म – सिंगबोंगा धर्म – का प्रतिपादन कर धार्मिक स्तर पर लोगों को वह संगठित यानि की एक्कता करना शुरु कर दिया था. बिरसा ने अपने आप को सिंगलोंगा का इत घोषित किया और हजारो आदि- वासी उसे देखने सुनने आने लगे थे.

उसने अपने अनुयायियों को तीर व तलवार चलाने की शिक्षा की व्यवस्थ की व उसने अपने अनुयायी गया मुण्डा की प्रशिक्षण का कार्य सौंपा तथा उसे सेनाध्यक्ष बनाया गया था. बिरसा ने 6,000 समर्पित मुण्डाओं का दल तैयार कर लिया और ने धार्मिक आंदोलन जल्द ही खेतिहर मजदूरों के राजनीतिक आंदोलन में बदल गया था. उसने मुण्डाओं को लगाव न देने का आदेश दिया गया था. यही रही Birsa Munda Andolan के कुछ महत्वपूर्ण टॉपिक है.

ब्रिटिश सरकार

ब्रिटिश सरकार:- सन 1895 के अंत में बिरसा को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ षड्‌यंत्र रचने के आरोप में 2 साल के लिए जेल भेजा गया था. महारानी विक्टोरिया के शासन की हीरक जयन्ती के उपलक्ष्य में 30 नवम्बर 1897 ई० को बिरसा को हजारीबाग जेल से रिहा कर दिया कर दिया गया था. जेल से रिहा होने के बाद बिरसा ने अपनी गतिविधियां और भी तेज कर दी और बिरसा गाँव- गाँव घूमकर मुण्डाओं का हथियार बंद करने लगे थे. यह खूँटी बिरसा के सैनिक गतिविधियों का जो केंद्र है वह विरसा का प्रमुख केंद्र माना जाता है.

महिलाओं की भूमिका

महिलाओं की भूमिका:- सन 1899 ई० में क्रिसमस की पूर्व संख्या पर बिरसा मुण्डा मे मुण्डा शासन की स्थापना के लिए अपना विरोध तेज किया और विद्रोह यानि की Birsa Munda Andolan का ऐलान कर दिया था. जब उसने घोषण की ‘दिकुओं से अब हमारी लड़ाई होगी और खूनी उनके खून से जमीन इस तरह लाल होगी की जैसे लाल झंडा” इस आंदोलन में महिलाओं ने प्रमुख भूमिका निभाई थी. बिरसा के अनुयायियों में अपने पारंपरिक तोट – कमानों से आक्रामक गतिविधियाँ प्रारंभ कर दी और गिरजाघरों में आग लगाना’ प्रारंभ कर दिया था.

आंदोलनकारियों पर मुकदमे

आंदोलनकारियों पर मुकदमे:- सन 1900 ई0 में विद्रोहियों ने पुलिस को अपना निशाना बनाया परन्तु सैल रकन पहाड़ी पर लड़े गए युद्ध कमिश्नर फारवेस व डिप्टी कमिश्नर में स्ट्रीट फोल्ट फोल्ड के हाथों आंदोलन कारियों की पराजय हुई थी. मुण्डा इटकी में मारा गया 3 फरवरी 1900 ई को विरसा मुण्डा पकड़ा गया 19 जून 1900 ई० को बिरसा मुण्डा की राँची जेल में हैजे से मृत्यु हो गई थी. लगभग कुल 350 मुण्डाओ की संख्या थी जिस पर 350 Birsa Munda Andolan जो है उस आंदोलनकारियों पर मुकदमे कर दिए गए थे और उनपर मुकदमे भी चलाए गए और जो आंदोलन है उस को इन्होने कुचल दिया व पर बिरसा जो था वह अमर हो गया.

बिरसा आंदोलन के महत्वपूर्ण परिणाम व प्रभाव क्या थे

अब इस लेख में आपको एग्जाम से सम्बन्धित कुछ महत्वपूर्ण टॉपिक Birsa Munda Andolan के परिणाम व प्रभाव को पढने वाले है.

प्रशासनिक कदम

प्रशासनिक कदम:- बिरसा आंदोलन समाप्त हुआ और Birsa Munda Andolan के फलस्वरूप कुछ ऐसे प्रशासनिक कदम उठाए गए जिसका उद्देश्य आदिवासियों और प्रशासन को एक दूसरे के निकट लाना था. 1908 में गुमला को अनुमण्डल बनाया गया और 1905 में खूंटी अनुमण्डल बना गया था. 11 नवम्बर 1908 ई० को छोटानागपुर काश्तकारी कानून बनाया गया तथा लागू किया गया था.

खूंटकट्टी अधिकार

खूंटकट्टी अधिकार:- जनजातियों की पुस्तॅनी भूमि के अधिकार को मान्यता दी गयी और मुण्डा के खूंटकट्टी अधिकार को मान लिया गया था. इस आंदोलन से आदिवासियों को यह पहली बार अहसास हुआ कि अपनी समाजिक और आर्थिक समस्याओं का समाधान राजनीतिक स्वतंत्रता के द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है. इस आंदोलन की प्रतिध्वनि छोटानागपुर के बाहर भी गूँज रही थी. कुमार सुरेश सिंह के अनुसार, टाना भगत आन्दोलनों पर भी Birsa Munda Andolan का प्रभाव था.

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FAQ (बिरसा मुंडा आंदोलन पर प्रकाश डालें से सम्बन्धित कुछ सवालो का जवाब)

प्रिय विधार्थियों अब इस लेख में आपको Birsa Munda Andolan से सभी तरह के आपके द्वारा कुछ पूछे गए प्रश्न का उत्तर देखने वाले है. इस लेख से सम्बन्धित सभी तरह के एग्जाम के लिए यह प्रश्न अति महत्वपूर्ण सिद्ध होगा.

बिरसा आंदोलन का मुख्य उद्देश्य क्या है?

देखिए इसका यह मुख्य उद्देश्य था की जो-जो आदिवासीयों के अंदर सुधार लाना था. इस बिरसा आन्दोलन का दूसरा मुख्य उद्देश्य यह था की जो जनजातीय है उस सभी को बाहर करना था.

बिरसा मुंडा आंदोलन कब हुआ था?

यह बिरसा मुंडा जो आन्दोलन था वह 19वी सदी में (1895-1900) में मुंडा नामक व्यक्ति ने इस बिरसा मुंडा आन्दोलन को प्रारम किया था.

अंत में क्या पढ़ा(निष्कर्ष)

प्रिय स्टूडेंट इस लेख में हम लोग मध्यकालीन भारत इतिहास के अंतर्गत बिरसा आन्दोलन के बारे में पढ़ा है. इस आन्दोलन में हमने देखा की यह लो कैसे विद्रोह यानि की विरसा मुंडा आन्दोलन प्रारम कर देते है. यह आन्दोलन झारखंड राज्य में हुआ था.

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