हर्षवर्धन की सांस्कृतिक उपलब्धियां व शासन काल-Harshvardhan Ki Sanskritik Uplabdhiyan(606-47ई०)

प्रिय विधार्थियों इस लेख में मध्यकालीन इतिहास के अंतर्गत आने वाले Harshvardhan Ki Sanskritik Uplabdhiyan के बारे में पूरा विस्तार से पढने वाले है. यह हर्षवर्धन की उपलब्धियां आपके सभी तरह के प्रतियोगी परीक्षाओ के लिए अति महत्वपूर्ण रहेगा तो इस लेख को पूरा एक-एक कर के अंत तक पढ़े.

  • शासन काल
  • शिक्षा के क्षेत्र में
  • साहित्य के क्षेत्र में
  • धर्म के क्षेत्र में
  • निष्कर्ष

हर्षवर्धन के शासन काल का वर्णन करें-Harshvardhan Ki Sanskritik Uplabdhiyan Pdf

हर्षवर्धन के उपलब्धियों व Harshvardhan Ki Sanskritik Uplabdhiyan क्या-क्या है उसका निम्नलिखित है.

  • शिक्षा की प्रगति
  • शिक्षा का यथेष्ट प्रचार-प्रसार
  • शिक्षा प्राप्ति के केन्द्र
  • नालन्दा सबसे प्रमुख केन्द्र
  • साहित्य के क्षेत्र में
  • विज्ञानों को पुरस्कार
  • दान में देने की इच्छा
  • धर्म के क्षेत्र में
  • जैन धर्म का प्रचार
  • उद्देश्य

शासन काल:- हर्षवर्धन (606 – 47) राजधर्म का ज्ञाता, लोकपालक प्रशासक और विजेता के साथ-साथ विद्वानों, विद्याओं कलामर्मनों एवं कलाओं का आश्रयस्थल भी था. वाणभट्ट और हवेनसांग के विवरण से यह स्पष्ट होता है कि वह “विमल चरित्र के साधु पुरुषों और गुणज्ञ पण्डितों, आचायों और राजधर्मज्ञों अथवा राजनीतिज्ञों का सुद्ध बन्धु तथा मित्र था.

“हर्षचरित में कहा गया है कि वह” विमल बुद्धि के साधु पुरुषों को रत्न समझता था. हर्ष मेघावी पुरुषों को प्रश्रय देता था और भलों को वह पुरस्कृत करता और दुष्टों को दण्ड’ देता था. वह’ विभिन्न शास्त्रों और विधाओं का अन्वेषक था. काव्यगोष्ठियों में भी हर्ष की अभिराच थी और वह स्वयं कविता की अमृत वर्षा करता था. इससे हर्ष की साहित्यिक प्रतिभा का पता चलता है. हर्ष की तुलना धर्म के आवर्तन में मौर्य सम्राट अशोक से और दिग्विजय तथा साहित्यिक अभिरुचि में गुप्त सम्राट समुद्र गुप्त से की गई व Harshvardhan Ki Sanskritik Uplabdhiyan थी.

शिक्षा की प्रगति

शिक्षा के क्षेत्र में:- हर्ष ने पण्डितों और विद्वानों को प्रतिष्ठा और प्रश्रय प्रदान किया था. राज्य के प्रश्रय से शिक्षा की उन्नति और प्रसार को काफी बढ़ावा मिल गया था. जनसाचारण में भी विद्वानों का बहुत मान और आदर था. अधिकारी वर्ग के लोग जितने थे वह भी पण्डितों यानि की ब्राह्मणों को सम्मान व इज्जत करते थे. विद्या की इस प्रतिष्ठा के कारण लोगों में विद्यार्जन करने की प्रवृत्ति व Harshvardhan Ki Sanskritik Uplabdhiyan बहुत बढ़ गयी थी.



फलतः शास्त्र और विज्ञान के जिज्ञासु व्यक्ति, थकान और श्रम की चिंता न कर के विद्या की खोज में प्रवृत्त होकर सैकड़ों मील की यात्रा करके शिक्षा केन्द्रों में पहुँचा करते थे. समाज में ऐसे ही लोगों का आदर-मान था और जो लोग घनी और समृद्ध होकर केवल विलास का आलसमय जीवन व्यतीत करते थे. उनका समाज में कोई भी इज्जत आदर व सम्मान नहीं होती थी यानि की उनका कोई इज्जत और उन्हें अच्छा नहीं समझा जाता था. Harshvardhan Ki Sanskritik Uplabdhiyan यह भी है.

शिक्षा का यथेष्ट प्रचार-प्रसार

शिक्षा का यथेष्ट प्रचार-प्रसार:- ‘निःसन्देह समाज और राजा का प्रोत्साहन पाकर शिक्षा का यथेष्ट प्रचार-प्रसार हुआ और शिक्षा व Harshvardhan Ki Sanskritik Uplabdhiyan का स्तर भी ऊँचा हो गया था. बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा सात वर्ष की उम्र में सिद्धम-वंग नामक पुस्तक से प्रारम्भ की जाती थी. इसके बाद बच्चों को पंच-विद्याओं व्याकरण: शिल्प-स्थानविद्या, चिकित्साविद्या, हेतु विद्या, अध्यात्मविद्या के ज्ञान से परिचित कराया था. प्रत्येक बौद्ध धर्म के आचार्य के लिए इन पंच-विद्याओं में पारंगत होना आवश्यक था और ब्राह्मण चार वेदों का अध्ययन -अध्यापन करते थे.

शिक्षा प्राप्ति के केन्द्र

शिक्षा प्राप्ति के केन्द्र:- हर्षचरित से ज्ञात होता है कि आचार्य गृह तथा गुस्कूल विद्या-प्राप्ति के केन्द्र थे मगर भी शिक्षा तथा शिल्प के केन्द्र थे. हएनसांग बतलाता है कि थानेश्वर, कन्नौज, वाराणसी आदि बड़े नगर शिक्षा शास्त्रों और शिल्पों के केन्द्र – स्थल थे. हर्षचरित से भी इसकी पुष्टि होती है. थानेश्वर के संबंध में वाणभट्ट कहते हैं कि वह नगर नर्तकों के लिए संगीतशाला था. विद्यार्थियों के लिए ‘गुरुकुल’ था और गायकों के लिए ‘गन्धर्वनगर’ था और वैज्ञानिकों के लिए ‘विश्वकर्मा का मन्दिर’ था.

हर्ष के समय में बौद्ध मठ और विहार भी शिक्षा के प्रमुख केन्द्र थे. ह्वेनसांग ने ऐसे अनेक विहारों का वर्णन किया है जहाँ बौद्ध धर्म और दर्शन की शिक्षा दी जाती थी. उसने स्वयं अनेक मठों तथा विहारों में प्रसिद्ध आचार्यों से शिक्षा ग्रहण की थी. ऐसे मठों -विहारों में कश्मीर का जयेन्द्र-विहार, पंजाब और जालन्चर के विहार, मतिपुर का बाँध मठ, कन्नौज का भट्टक विहार, वैशाली में श्वेतपुर का मठ, गया का महाबोधि मठ और कर्णसुवर्ण का रक्तवित मठ उल्लेखनीय है और मुंगेर का बौद्ध विहार भी शिक्षा का एक प्रमुख केन्द्र था. Harshvardhan Ki Sanskritik Uplabdhiyan यह बभी एक थी.

नालन्दा सबसे प्रमुख केन्द्र

नालन्दा सबसे प्रमुख केन्द्र:- हर्षकालीन शैक्षणिक केन्द्रों में नालन्दा विहार शिक्षा और विद्या का सबसे प्रमुख केन्द्र है. वहाँ विदेशों से भी विद्यार्थी ‘अपने संशयों का निवारण करने’ आते थे.’उसमें प्रवेश चाहनेवाला प्रत्येक विद्यार्थी को एक कठिन परीक्षा में उतीर्ण होना पड़ता था. नालन्दा महाविहार में अध्ययन के प्रमुख विषय थे महायान के अट्‌ठारह सम्प्रदायों के सिद्धान्त, वेद, हेतुविद्या, शब्दविद्या, चिकित्साविया, तांत्रिक विद्या और सांख्यदर्शन और यद्यपि नालन्दा विहार बौद्ध शिक्षा का प्रमुख केन्द्र था.

फिर भी ब्राह्मण दर्शन और साहित्य के अध्ययन-अध्यापन की वहाँ उपेक्षा नहीं की जाती थी. इस महाविहार में दस हजार विद्यार्थी रहते थे. अध्यापकों की संख्या 1510 थी और शीलभद्र प्रमुख आचार्य थे और प्रतिदिन एक सौ व्याख्यान दिये जाते थे. और प्रत्येक विद्यार्थी को उसमें शामिल होना पड़ता था. नालन्दा महाविहार में रहनेवाले विद्यार्थियों तथा अध्यापकों को मुफ्त भोजन, दवा तथा वस्तु राज्य तथा जनता से प्राप्त होता था. हर्ष ने एक सौ गाँवो की आमदनी इसके खर्च के लिए दान दी थी और उसने वहाँ एक भव्य बिहार भी बनवाया था जिसकी दीवारें पीतल के चादरों से ढँकी हुई थी. जिसमे यह भी Harshvardhan Ki Sanskritik Uplabdhiyan इनमे से एक है.

साहित्य के क्षेत्र में

साहित्य:- हर्ष की साहित्यिक अभिरूचि के प्रमाण उसकी रचनाएँ है और प्रियदर्शिका, नागानन्द और रत्नावली नामक नाटिकाओं की रचना का श्रेय उसे दिया जाता है. इनके अतिरिक्त, अष्टमहाश्री, चैत्यस्त्रीत और सुप्रभा स्त्रोत भी उसी की रचनाएं मानी जाती है. वाणभट्ट ने हर्ष को काठगोष्ठियों में काव्य की अमृतरस-चारा की दृष्टि करने वाला कहा ये काव्य – रचनायें उसकी अपनी कृतियाँ थीं और न किसी दूसरे से प्राप्त हुई थी.

कतिपय अन्य विद्वान भी उसे उच्च कोटि के कवियों और नाटककारों में गणना करते हैं. अनेक कवियों और लेखकों ने उसकी तुलना विक्रमादित्य, मंजु, भोज, भास, कालिदास, वाणभट्ट और मथुर से की है. हर्ष स्वयं साहित्यानुरागी और विद्वान तो था ही, वह विद्वानों, लेखकों और कवियों का संरक्षक तथा आश्रय‌दाता भी था. Harshvardhan Ki Sanskritik Uplabdhiyan है

विज्ञानों को पुरस्कार

विज्ञानों को पुरस्कार:- वह राजकीय आय का एक भाग विज्ञानों को पुरस्कार देने में खर्च करता था. राज्य और से विद्वानों को आर्थिक सहायता और प्रोत्साहन दिया जाता था. हर्ष का दरबार कवियों और लेखकों का आकर्षक केन्द्र था. हर्ष को सुन्दर कविताओं के संग्रह कराने का शौक था. हर्ष के दरबारी कवियों में वाणभट्ट का नाम अग्रव्थ है. Harshvardhan Ki Sanskritik Uplabdhiyan के हर्ष चरित और कादम्बरी का उसके दो प्रमुख ग्रन्थ हैं.चण्डीशतक और पार्वतीपरिणय वाणभट्ट की दो अन्य रचनाएं थीं.

दान में देने की इच्छा

दान में देने की इच्छा:- वाणभट्ट के अतिरिक्त हर्ष के राजदरबारी कवियों में मयुरभट्ट और मातंग दिवाकर का नाम आता है. मयूर भट्ट ने सूर्य-शतक, मयूर – शतक, और आर्यमुक्तमाल नामक तव्यों की रचना की थी. मातंगादिवाकर की किसी कृर्ति की जानकारी नहीं है. हरिदत्त नामक कवि को भी हर्ष का सम्मान प्राप्त था.

हर्षवर्धन ने प्रसिद्ध यानि की जाने माने विद्वान ज्ञानी जयसेन को उड़ीसा के जो गांवो थे वह उन्होंने क्या किया की जितने 80 गाँव दान यानि की मुक्त में देने की उन्होंने अपने इच्छा व्यक्त की थी. किन्तु जयसेन ने इसे नम्रतापूर्वक अस्वीकार कर दिया. भर्तृहार हर्ष के युग के एक महान कवि थे किन्तु उन्हें राज्याश्रय प्राप्त नहीं था. यह रही Harshvardhan Ki Sanskritik Uplabdhiyan जो आपके एग्जाम के लिए अति महत्वपूर्ण है.

धर्म के क्षेत्र में

धर्म के क्षेत्र में:- हर्ष के काल में Harshvardhan Ki Sanskritik Uplabdhiyan पूर्ण-धर्म परायणता और धार्मिक सहिष्णुता विद्यमान थी. इस समय भारत में प्रचलित सभी धर्मों में अवतारवाद का सिद्धान्त प्रचलित हो गया था और बुद्ध तथा महावीर को भी अवगर मानकर उनकी पूजा की जाने लगी थी. ब्राह्मण धर्म इस समय उन्नत अवस्था में था और काशी तथा प्रयाग इस धर्म के प्रमुख केन्द्र थे. हर्ष के प्रश्रय और हेएनसांग के प्रभाव के बावजूद बौद्ध धर्म अपना प्राबल्य और प्रभाव खोता जा रहा था. बौध धर्म के पुनीत स्थानों की अवनति हो रही थी.

जैन धर्म का प्रचार

जैन धर्म का प्रचार:- जैन धर्म का प्रचार भी Harshvardhan Ki Sanskritik Uplabdhiyan के देश कुछ भागों तक ही सीमित था और हर्ष ने सभी धर्मों को प्रोत्साहन दिया. उसमें धार्मिक सहिष्णुता और उदारता पूर्णतः विद्यमाथ थी. बोध होते हुए भी वह अन्य सम्प्रदायों और ब्राह्मण देवी – देवताओं की श्रद्धा से आदर-सम्मान और पूजा करता था. प्रयाग के दान – महोत्सव में दान और आदर सम्मान में बौद्धों को प्रथम स्थान दिया गया था.

किन्तु उनके बाद ब्राह्मणों तथा अन्य सम्प्रदाय वालों को भी दान और सम्मान दिया गया था. Harshvardhan Ki Sanskritik Uplabdhiyan यह रही जिसमे हर्षवर्धन प्रत्येक पाँचवे वर्ष प्रयाग में दान- महोत्सव मनाया करता था. हर्षवर्धन ने महायान बौद्ध धर्म में दक्षित होने के पश्चात उसका प्रजा में प्रचार करने का निश्चिय किया.

उद्देश्य

उद्देश्य:- इस Harshvardhan Ki Sanskritik Uplabdhiyan का यह उद्देश्य से कनौज में महायान धर्म की एक महासभा आयोजित की गयी थी. सभी धर्म तथा सम्प्रदाय के लोगों को कन्नौज में उपस्थित होने को कहा गया जिसमें ब्राह्मणों और धार्मिक मनमुटाव के कारण वैमनस्य बहुत बढ़ गया था.

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FAQ (हर्षवर्धन की सांस्कृतिक उपलब्धियां से सम्बन्धित कुछ सवालो का जवाब)

प्रिय स्टूडेंट अब इस लेख में पढने वाले है इतिहास के अंतर्गत अति महत्वपूर्ण टॉपिक Harshvardhan Ki Sanskritik Uplabdhiyan से सम्बन्धित अति महत्वपूर्ण प्रश्न आपके द्वारा पूछा गया है. इस प्रश्न का उत्तर देखने वाले है जो सभी तरह के एग्जाम में पूछा जा सकता है.

हर्षवर्धन की उपलब्धियां क्या हैं?

देखिए हर्षवर्धन की कई उपलब्धिया है जैसे में साहित्य व शिक्षा के क्षेत्र में और धर्म यह रही इनकी उपलब्धिया जो आपके लिए अति महत्वपूर्ण है.

निष्कर्ष

निष्कर्ष:- रक्षक हर्षवर्धन ने एक महान विजेग साम्राज्य – निर्माता, का रक्षक व कुशल प्रशासक एवं साहित्य- संस्कृति के भी रक्षक थे. वाणभट्ट और चीनी यात्री हुएनसांग ने हर्ष की प्रशंसा करते हुए उसे ‘उत्तरी भारत का एक महान सम्राट ‘बतलाया है. हर्ष को हिन्दूकाल का अंतिम महान सम्राज्य निर्माता” कहा गया व नि:संदेह हर्ष के काल में सांस्कृति विकास हुआ था.

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