जर्मनी का एकीकरण का इतिहास- Germany Ka Ekikaran Kab Aur Kahan Hua(1866-71ई.)

प्रिय स्टूडेंट इस लेख में विश्व इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण टॉपिक Germany Ka Ekikaran का इतिहास को पढने वाले है. इस लेख में जर्मनी का एकीकरण में बिस्मार्क का योगदान क्या रहा है. सारे टॉपिक को एक-एक कर के विस्तार से पढने वाले है. जो आपके सभी तरह के प्रतियोगी परीक्षाओ व अन्य एग्जाम के लिए अति महत्वपूर्ण है. तो चलिए इस लेख को एक-एक कर के पूरा अंत तक पढ़ते है.

नामबिस्मार्क
महत्वपूर्ण योगदानजर्मनी का एकीकरण
जन्म1 अप्रैल 1815 ई०
स्थानप्रशा के ब्रेडनबर्ग
नीतिरक्त व लौह की नीति(युद्ध)
  • जर्मनी का एकीकरण
  • जर्मनी का एकीकरण कब और कैसे हुआ
  • जर्मनी का एकीकरण में बिस्मार्क का योगदान
  • अंत में क्या पढ़ा(निष्कर्ष)

जर्मनी का एकीकरण कब हुआ कैसे हुआ- Germany Ka Ekikaran Kab Hua aur kaise hua

जर्मनी का एकीकरण कब और कैसे:- आपको बता दे की germany ka ekikaran kab hua tha वह स्वतंत्र राज्यों मध्य यूरोप जैसे स्वतंत्र राज्यों को मिला दिया गया और मिलाकर 1871 ई. में एक राष्ट्र राज्य व जर्मनी ‘हुआ साम्राज्य का निर्माण किया गया और इसी ऐतिहासिक प्रक्रिया को Germany Ka Ekikaran कहते हैं. मध्य यूरोप के जर्मन लोगों में प्रबल राष्ट्रवादी भावनायें विद्यमान थीं.

इन’ राष्ट्रवादी लोगों में जर्मन जर्मन महासंघ’ के विभिन्न के क्षेत्रों को एकता के सूत्र में बांधकर एक निर्वाचित संसद के माध्यम से शासित राष्ट्र-राज्य बनाने का प्रयास किया था. प्रशा के राजा विलियम प्रथम को जर्मनी को सन 1871 ई. में वर्साय में हुई एक समारोह में जर्मनी का सम्राट घोषित किया गया यानि की उनको जर्मनी का सम्राट बनाया गया था. यह रही germany ka ekikaran kab aur kaise hua था.

जर्मनी के एकीकरण में बिस्मार्क की भूमिका क्या थी

इस Germany Ka Ekikaran में प्रसा के प्रधान मंत्री बिस्मार्क की महत्वपूर्ण भूमिका थी. उसने एकीकरण के लिए ‘लौह और रक्त’ की नीति को अपनाया. इसके लिए उसे तीन युद्ध लड़ने पड़े थे और तीनो युद्ध इनकी निम्नलिखित है.

  • डेनमार्क से युद्ध
  • ऑस्ट्रिया के साथ युद्ध
  • फ्रांस के साथ युद्ध

डेनमार्क से युद्ध

डेनमार्क से युद्ध:- विस्मार्क ने 1834 ई. में ऑस्ट्रिया के साथ मिलकर डेनमार्क से युद्ध किया एवं उसे पराजित कर शेल्सवर्ग पर अधिकार कर लिया और हॉल्सटीन ऑस्ट्रिया को मिला.

ऑस्ट्रिया के साथ युद्ध

ऑस्ट्रिया के साथ युद्ध:- हॉक्सटीन प्रशा से घिरा हुआ था और ऑस्ट्रिया से दूर होने के कारण ऑस्ट्रिया के प्रभावशाली नियंत्रण में नहीं था. विस्मार्क ने 1866 ई० में ऑस्ट्रिया को युद्ध मे पराजित कर हॉल्सटीन कों प्रशा में मिला लिया.

फ्रांस के साथ युद्ध

फ्रांस के साथ युद्ध:- अब जर्मनी के चार दक्षिणी राज्य ( बाडेन, बुटेम्बर्ग, बवेरिया और हेस डाम्सरार्ड) ही जर्मनसंघ से बाहर थे. जिनपर फ्रांस का कब्जा था. बिस्मार्क ने स्पेन उत्तराधिकार के प्रश्न पर 1870 ई. में फ्रांस से सेडॉन का युद्ध लड़ा. जिसमे फ्रांस बुरी तरह से पराजित हुआ. 1871 ई. में फ्रैंकफर्ट की संधि द्वारा इन चारों दक्षिणी राज्य को जर्मनमहासंघ में मिलाने के साथ ही Germany Ka Ekikaran का काम पूर्ण हुआ.

जर्मनी के एकिकरण की बाधाएं क्या थीं:- जर्मन की एकीकरण की बाधाएँ बहुत सारी थी. जिसमें 300 छोटे-बड़े राज्य थे जर्मनी पूरी तरह से विखंडित राज्य था. उनमें धार्मिक, राजनीतिक, तथा समाजिक विषमताएँ भी मैजूद थी. वहाँ प्रशा शक्तिशाली राज्य थी एवं अपना प्रभाव बनाए हुए था. उसमें जर्मन राष्ट्रवाद की भावना का आभाव था जिसके कारण एकीकरण का मुद्दा उसके समझ नहीं था.

जर्मनी के एकीकरण मे बाधाएं निम्न है

जर्मनी के एकिकरण की बाधाएं क्या थीं:- इस germany ka ekikaran ki badhaye kya thi इसकी बाधाएँ बहुत सारी थी. जिसमें 300 छोटे-बड़े राज्य थे जर्मनी पूरी तरह से विखंडित राज्य था. उनमें धार्मिक, राजनीतिक, तथा समाजिक विषमताएँ भी मैजूद थी. वहाँ प्रशा शक्तिशाली राज्य थी एवं अपना प्रभाव बनाए हुए था. उसमें जर्मन राष्ट्रवाद की भावना का आभाव था जिसके कारण एकीकरण का मुद्दा उसके समझ नहीं था.

विस्मार्क से पूर्व जर्मनी का एकीकरण किस प्रकार किया विस्तार से- Germany Ka Ekikaran Class 10th

विस्मार्क से पूर्व Germany Ka Ekikaran विस्तार पूर्व निचे निम्नलिखित है.

  • पवित्र रोमन सम्राज्य और 1789 ई० की फ़्रांसीसी क्रांति
  • नेपोलियन के कार्य
  • वियना कांग्रेस
  • मेटरनिख की गतिविधियां
  • जोल्वेरिन
  • फ्रेंकफर्ट की संसद की जर्मनी एकीकरण की भोजना

पवित्र रोमन सम्राज्य और 1789 ई० की फ़्रांसीसी क्रांति

पवित्र रोमन सम्राज्य और 1789 ई० की फ़्रांसीसी क्रांति:- बात करे की विस्मार्क से पूर्व Germany Ka Ekikaran सन 1789 ई० की फ़्रांसीसी क्रांति के समय मध्य यूरोप में एक विशाल साम्राज्य स्थापित था. जो पवित्र रोमन साम्राज्य कहलाता था. इसमें 300 से अधिक छोटे- बड़े राज्य शामिल थे जिनमें ऑस्ट्रिया, प्रशिया, सेक्सनी, हैनोवर प्रन्सूविक, मेकलेनबर्ग, बैबेरिया, वुर्टेमबर्ग, बेडन, हेस्से इत्यादि थे.

औपचारिक रूप से 300 राज्य (देश) अपना एक मुखिया चुनते थे. इस अध्यक्ष के पास किसी तरह की कोई शक्ति नहीं होती थी. पवित्र रोमन साम्राज्य का अध्यक्ष सम्राट होता था. वह न तो कोई आदेश जारी कर सकता था और न सेना रख सकता था और न ही कोई नीति लागू कर सकता था. 15 वी शदी से प्रचलित परम्परा के अनुसार ऑस्ट्रिया के शासक को ही इस साम्राज्य का अध्यक्ष चुना जाता इन 300 राज्यों के शासक व्यवहारिक रूप से स्वतन्त्र थे.

साम्राज्य मैं डायट Diet नाम सभा (संसद) होती थी जिसमे विभिन्न जर्मन राज्यों के शासक अथवा उनके प्रतिनिधि भाग लेते थे. यह एक औपचारिक संस्था थी. इसके अध्यक्ष यह पर पिछले काफी वर्षों से ऑस्ट्रिया के हैप्सबर्ग का अधिकार था. इस सभा में विभिन्न जर्मन राज्यों के निर्णयों को लिखित रूप देने के अतिरिक्त और कुछ नहीं होता था.

सन 1789 ई. की झांसीसी क्रांति के समानता, स्वतन्त्रता, भाईचारे के नारों ने यूरोप के सभी देशों को प्रभावित किया. Germany Ka Ekikaran व जर्मनी भी इसके प्रभाव से नहीं बच सका था. पश्चिमी तथा दक्षिणी जर्मन राज्यों में शासन प्रबन्ध में सुधार हुआ. लोगों को कोई भी व्यवसाय अपनाने की स्वतन्त्रता, कानूनी समानता, सम्पति की सुरक्षा आदि अधिकार प्राप्त हुए. फ्रांसीसी कांति के कारण जर्मन राज्यों के लोगों में राष्ट्रीय भावना जाग्रत होने लगी थी.

नेपोलियन के कार्य

नेपोलियन के कार्य:- विस्मार्क से पूर्व Germany Ka Ekikaran पढ़ रहे है जिसमे फ्रांसीसी क्रांति के समय नेपोलियन ने पवित्र रोमन साम्राज्य पर अधिकार कर लिया था. उसने अनेक जर्मन राज्यों को नष्ट करके अपनी प्रभुसत्ता के अधीन एक संघ स्थापित कर दिया जिसे “राइन का संघ” का नाम दिया गया. इसमें ऑस्ट्रियाँ तथा प्रशिया को छोड़कर 16 जर्मन राज्य शामिल थे.

इस क्षेत्र के इतिहास में यह पहला अवसर था किं इतने बड़े क्षेत्र के लोग एक शासन व्यवस्था से प्रशासित हो सके थे. इसलिए एक इतिहासकार ने नेपोलियन के जर्मनी का एकीकरण का दादा कहा है. नेपोलियन की कठोर सैनिक कार्यवाही व अत्याचारों के लोगों को संगठित होने के लिए मजबूर किया.

इससे वहां राष्ट्रीयता के भाव आ गए. विभिन्न राज्यों के शासकों की सैनिक शक्ति के कमजोर होने के कारण वे स्थानीय जनता की गतिविधियों पर अधिक नियम नहीं रख पाए थे. इससे लोगों को संगठित होने का मौका मिला था. नेपोलियन ने सड़‌कों, पुलों का निर्माण कराया जिससे लोगों के बीच की इरियां कम हो हो गई.

वियना कांग्रेस

वियना कांग्रेस:- बात करे की विस्मार्क से पूर्व Germany Ka Ekikaran पढ़ रहे है जिसमे सन 1815 ई. के वाटरलू के युद्ध में नेपोलियन की हार ने उसके पतन का मार्ग तैयार कर दिया. नेपोलियन के बाद यूरोप का भविष्य निर्धारित करने के लिए आस्ट्रिया की राजधानी वियना में एक सम्मेलन हुआ. इस सम्मेलन में नेपोलियन पूर्व व्यवस्था के बहाल करने का प्रयास किया. लेकिन इस क्षेत्र के 360 राज्यों के पवित्र रोमन साम्राज्य के स्थान पर 38 राज्यों का नयाँ संगठन “जर्मन कन्फेडरेशन” स्थापित किया गया था.

सन 1817 ई० में हेस्से होम्बर्ग नामक राज्य के शामिल हो जाने से इस संघ के सदस्यों की संख्या 39 हो गई थी. इस संघ की संघीय सभा बैंकफर्ट में स्थापित कि गई जिसकी पहली बैठके 1817 ई० में हुई इसकी अध्यक्षता स्थायी रूप से ऑस्ट्रि‌या को सौंपी गई.

इस सभा में भाग लेने वाले प्रतिनिधि विभिन्न राज्यों के शासकों द्वारा मनोनीत किए जाते थे. इस सभा की शक्तियां बहुत सीमित थी और उसके सदस्य अपने- अपने शासकों के हितों को सुरक्षित करने के प्रयत्न करते थे.

इसमें विभिन्न राज्यों, विशेषतः आस्ट्रिया और प्रशिया के पारस्परिक झगड़े होने लगे. यह सभा समस्त जर्मनी के लिए कोई भी महत्त्वपूर्ण निर्णय या कार्य करने में असमर्थ सिद्ध हुई थी. जर्मन संघ की न तो कोई निश्चित सेना थी, न निश्चित कानून, न ही संघीय अदालत थी. विलियम कार- अर्थाद इसका नाम जर्मन संघ था. तथापि यह प्राचीन साम्राज्य से बढ़ कर राष्ट्रीय राज्य नहीं था.

मेटरनिख की गतिविधियां

मेटरनिख की गतिविधियां:- सन 1815 ई० के बाद जर्मनी के बहुत से विद्वानों, दार्शनिको, प्रोफेसरों ने उदार एवं क्रांतिकारी विचारों का प्रचार किया. इनके प्रभाव के अधीन विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियों ने जर्मनी में अनेक क्रांतिकारी संघ स्थापित किए और राष्ट्रीय आंदोलन शुरु कर दिया था. सन 1815 ई. में जेना विश्वविद्यालय के छात्रों ने “बर्शेन्सचैक्ट” नामक संघ की स्थापना की इसके सदस्यों में देशभक्ति की भावना कूट- कूट कर भरी हुई थी और उनके सिद्धांत थे- सम्मान, स्वतन्त्रता और पितृभूमि थी.

जेना की संस्था ने अक्टूबर 1817 ई० में लिव्जिंग के युद्ध की चौथी वर्षगांठ और धर्मसुधार आंदोलन की 300 वी बरसी को दिन बार्टबर्ग में एक सम्मेलन का आयोजन किया जिसमें जर्मनी के विभिन्न भागों के 500 विद्यार्थियों ने भाग लिया था. यहां उलेजनापूर्ण राष्ट्रवाद का प्रदर्शन किया गया और समागम के अन्त में अनेक प्रतिक्रियावादी लेखकों की रचनाओं को अग्नि भेंट किया गया.

अक्टूबर 1818 ई० में जेना में विद्यार्थियों का एक अन्य समागम हुआ जिसमे 14 विश्व- विद्यालयों ने भाग लिया था. इसमें सर्व-जर्मन विद्यार्थी संगठन की स्थापना की गई. मार्च 1819 ई. में लेना बर्शेन्स चैक्ट के एक विद्यार्थी सदस्य कार्ल सैंड ने कोल्जेब्यू नामक एक रूसी साहित्य कार एवं नाटककार की हत्या कर डी क्योंकि यह अपनी रचनाओं में उदारता वाद की आलोचना करता था.

जर्मन विद्यार्थियों के इस उदार एवं क्रांतिकारी आंदोलन के कारण मेटरनिख और जर्मन राज्यों के शासक भयभीत हो गए थे. भेटरनिख ने इस आंदोलन का दमन करने का निश्चय किया. इस उद्देश्य से इसने कार्लसबाद में अगस्त 1819 ई० में एक गुप्त सभा बुलाई जिसमें नौ जर्मन राज्यों के प्रतिनिधि शामिल हुए थे. सितंबर 1819 ई० में संघीय सभा के गुप्त सभागम में कार्लसबाद आदेश पास किए गए.

इन आदेशो के अनुसार विद्यार्थियों के संघ कुंचल दिए गए थे. विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियों तथा अध्यापकों की गतिविधियों पर कड़ा नियंत्रण रखा गया. प्रेस पर कड़े प्रतिबन्ध लगा दिए गए थे. मेज में एक केन्द्रीय जाँच कमीशन की स्थापना की गई ताकि षड्‌यन्त्रों तथा क्रांतिकारी कार्यवाहियों की जांच पड़ताल करके इन्हें कुचल सके. इन आदेशों को बहुत से जर्मन राज्यों ने कार्य रूप दिया.

विश्वविद्यालयों में कई अध्यायको को नौकरी से निकाल दिया गया और अनेक अध्यायकों, विद्यार्थियों को जेल में दाल दिया गया. कई समाचार पत्रों को बन्द कर दिया विद्यार्थियों के संघो को गैर कानूनी घोषित कर दिया गया.

कार्लसवाद आदेशों के फलस्वरूप लगभग दस वर्षो तक जर्मनी में राष्ट्रीय एवं क्रांतिकारी गतिविधियां बन्द रही थी. विभिन्न राज्यों में सुधार कार्य भी रुक गए और जर्मन राज्यों कोई नया संविधान प्रचलित नहीं किया गया. इस प्रकार मेटरनिख की प्रतिक्रियावादी नीति के परिणामस्वरूप के समय जर्मनी के उदार एवं राष्ट्रीय आंदोलन को अधिक क्षति पहुंची थी.

जोल्वेरिन

जोल्वेरिन:- सन 1815 ई. में वियना कांग्रेस के बाद जर्मन क्षेत्र के राज्यों का एक संगठन बनाया गया था. सन 1818-1834 ई. के दौरान एक प्रमुख जर्मन राज्य प्रशिया ने जर्मन रियासतों में पारस्परिक स्वतन्त्र व्यापार स्थापित करके सफल प्रयास किये. प्रशिया तथा अन्य जर्मन रियासतों में अनेक प्रकार के चुंगीधरों के कारण व्यापार के विकास में बड़ी बाधा पड़ती थी. केवल प्रशिया में ही 67 चुंगी व्यवस्थाएं थी.

सन 1818 ई. में मासेन के प्रयत्नों के फलस्वरूप एक कानून पास हुआ था. जिसके अनुसार बहुत से चुंगी घरों का अन्त कर दिया गया और समस्त प्रशिया में स्वतंत्रता व्यापार के सिधान्त को लागू कर दिया गया. प्रशिया के वित्तमंत्री Mots और उसके बाद मासेन ने अन्य जर्मन राज्यों से स्वतन्त्र व्यापार स्थापित करने के संबंद्ध में विचार विमर्श किया.

इन दोनों वित्तमंत्रियों के प्रयत्नों के फलस्वरूप 1 जनवरी 1834 ई. को जोल्वेरिन की स्थापना दुई अथवा जर्मन चुंगी संघ की स्थापना हुई जिसमें 18 जर्मन राज्य शामिल हुये इन्होने बिना किसी चुंगी कर के एक दूसरे के साथ स्वतन्त्र व्यापार करना स्वीकार कर लिया. जोल्वेरिन की स्थापना एक महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है और यह राजनीतिक एकता की ओर पहला कदम था.

विभिन्न जर्मन राज्यों के शासको ने देश के सांझे आर्थिक हित के लिए अपने कुछ आर्थिक अधिकार त्याग दिये जिसके फलस्वरूप जर्मनी में ब्यापार का बड़ा विकास हुआ. शीघ्र ही रेलों के निर्माण एवं डाक व्यवस्था में सुधार के फलस्वरूप न केवल जर्मन व्यापार तथा उद्योग की उन्नति हुई अपितु जर्मनी में आर्थिक एकता भी स्थापित हो गई जो राजनीतिक एकता के लिए सहायक सिद्ध हुई थी.

इस संघ का प्रशिया के नेतृत्व में बनना भी महत्वपूर्ण था इससे जर्मनी में प्रशिया का महत्व बढ़ गया और उसके नेतृत्व में ही आगामी वर्षों में राजनीतिक एकता स्थापित हो सकी थी. जर्मनी राज्यों की रेलों का केन्द्र बर्लिन बन गया तथा इस केन्द्रीयकरण के राजनैतिक और सैनिक प्रभाव ऐतिहासिक सिद्ध हुए हुए थे. (यह रहे Germany Ka Ekikaran के टॉपिक)

फ्रेंकफर्ट की संसद की जर्मनी एकीकरण की भोजना

फ्रेंकफर्ट की संसद की Germany Ka Ekikaran की भोजना:- वियना और बर्लिन की क्रांतियों ने इतिहास में पहली बार जर्मन लोगों को अपना भाग्य स्वयं निर्धारित करने का अवसर प्रदान किया. 31 मार्च 1848 ई० को विभिन्न जर्मन रियासतों से उदारवादियों के 521 प्रतिनिधियों ने फ्रेंकफर्ट में एक सभा की जिसे vorpardement अथवा poe- Parliament कहा जाता है.

इसमें निर्णय हुआ कि जर्मनी का एक अध्यक्ष के अधीन एकीकरण किया जाये और संसदीय सरकार की स्थापना की जाये और इसके साथ ही यह निर्णय भी किया गया कि विभिन्न राज्यों में लोगों द्वारा निर्वाचित सदस्यों की राष्ट्रीय सभा बुलाई जाये जिसे Germany Ka Ekikaran की योजना तथा समस्त जर्मनी का संविधान बनाने का कार्य सौंपा था.

1 मई 1848 ई० को चुनाव हमें और 18 मई को राष्ट्रीय सभा का निर्माण हुआ जिसे फ्रेंकफर्ट पार्लियामेंट कहा जाता है. इसके कुल 585 सदस्य थे. इस माह के प्रयत्नों के फलस्वरूप फ्रैंकफर्ट पार्लियामेंट नें समस्त जर्मनी के लिए मार्च 1849 ई में संविधान तैयार कर लिया था. इसके अनुसार ऑस्ट्रिया को जर्मनी से अलग रखा गया और प्रशिया के सम्राट को जर्मन साम्राज्य का अध्यक्ष बनाने की व्यवस्था की गई.

3 अप्रैल 1849 से को प्रकंफर्ट पार्लियामेंट के प्रतिनिधि मण्डल ने सिम्सन के नेतृत्व में फेडरिक विलियम चतुर्थ से भेंट की और उसे जर्मन साम्राज्य का सम्राट बनने के लिए निमंत्रण दिया. परन्तु उसने जनसाधारण से यह पद प्राप्त करना अपना अपमान समझा था. उसने कहा- “मै ताज को गन्दी नाली से उठाने को तैयार नही हूँ” फ्रेंकफर्ट विलियम चतुर्थ ने जर्मनी का सम्राट बनने से इंकार इंकार कर दिया. जिसके परिणामस्वरूप फ्रेंकफर्ट पार्लियामेंट का अन्त हो गया और उदारवादियों की Germany Ka Ekikaran की योजना असफल हो गई थी.

जर्मनी का एकीकरण के कारण व फ्रेंकफर्ट विलियम चतुर्थ की जर्मन एकीकरण भोजना

जर्मनी के एकीकरण के कारण व फ्रेंकफर्ट विलियम चतुर्थ की व Germany Ka Ekikaran निम्नलिखित है.

  • जर्मनी के एकीकरण के कारण
  • फ्रेडरिक विलियम चतुर्थ की जर्मन एकीकरण भोजना

जर्मनी के एकीकरण के कारण

अस्वीकार किये जाने के दो कारण थे
1.वह कट्टर प्रतिक्रियावादी था तथा सम्राह के देवी अधिकारों में विश्वास रखता था. उसके विचार में ताज की यह पेशकश स्वीकार करना शर्मनाक थी.

2. वह जानता था कि प्रशिया के नेतृत्व में एकीकरण हो जाने से वह ऑस्ट्रिया तथा शायद रूस से भी युद्ध में उलझ जायंगे. इसके अतिरिक्त दक्षिण जर्मनी के राज्य की इस योजना के कट्टर विरोधी थे.

फ्रेडरिक विलियम चतुर्थ की जर्मन एकीकरण भोजना

फ्रेडरिक विलियम चतुर्थ की जर्मन एकीकरण भोजनाः- अब प्रक्रिया के सम्राट फ्रेडरिक विलियम चतुर्थ बे जर्मन रियासतों के शासकों की इच्छा से प्रशिया के नेतृत्व में Germany Ka Ekikaran की योजना बनाई थी. उसके आदेशानुसार प्रशिया के मंत्री रैडोविरज ने मई 1849 ई० के प्रशिया, सेक्सनी, हैनोवर तीन राज्यों की लीग का निर्माण किया अन्य राज्यों को भी लीग में शामिल होने के लिए कहा गया था.

शीघ्र ही 17 छोटे- छोटे जर्मन राज्य लीग में शामिल हो गये थे. ऑस्ट्रिया ने इस लीग का विरोध किया और उसके प्रभाव के अधीन बैनेरिया और वुर्टम्बर्ग इस लीग में शामिल नहीं हुये थे. अक्तूबर 1849 ई० में हैनोवर तथा सेक्सनी भी इसे व्यवहारिक रूप से छोड़ गये. मार्च 1850 ई. में एफर्ट में विभिन्न जर्मन राज्यों के प्रतिनिधियों का समागम हुआ.

ऑस्ट्रिया के चान्सलर शावार्जनवर्ग ने प्रशिया की योजना का कड़ा विरोध किया था. दोनों में झगड़ा बढ़ गया और प्रशिया को ऑस्ट्रिया के आगे झुकना पड़ा था. 1850 ई० में ओल्मटल के अपमानजनक संधियत्र पर हस्ताक्षर करने पड़े व इस संधि के अनुसार प्रशिया ने अपनी योजना त्याग दि थी. ऑस्ट्रिया के नेतृत्व में प्राचीन जर्मन संघ को पुन: स्वीकार कर लिया यह जेना के युद्ध के बाद प्रशिया के इतिहास में एक अत्यन्त अपमान जनक घटना मानी जाती है.

जर्मनी के एकीकरण की असफलता के कारण बताइए

सन 1815 से 1849 ई० के दौरान कई जर्मनराज्यों में संवैधानिक सुधार हुए थे. फिर भी जर्मनी का एकीकरण का आंदोलन असफल ही रहा है जो इसकी असफलता के कई कारण निम्नलिखित है.

  • जर्मन उदारवादियों के एकता का अभाव
  • आंदोलन का दमन
  • प्रशिया का शासक फ्रेडरिक विलियम चतुर्थ
  • अष्ट्रिया के प्रभाव के अधीन
  • देश छोड़कर अमेरिका
  • क्रांति असफल

जर्मन उदारवादियों के एकता का अभाव

जर्मन उदारवादियों के एकता का अभाव:- कुछ गणतन्त्र का की स्थापना करना चाहते थे कुछ संवैधानिक राजतन्त्र के पक्ष के थे तो कुछ पूर्ण समाजवादी शासन स्थापित करने के समर्थक थे. इन्हें शासन के क्षेत्र में कोई वास्तविक अनुभव भी नहीं था.

आंदोलन का दमन

आंदोलन का दमन:- आस्ट्रिया जो 1815 ई० से जर्मन संघ का अध्या था जो Germany Ka Ekikaran संबंधी किसी अन्य योजना का विरोधी था. इसने उदारवादियों के के आंदोलन का दमन करने का प्रयास किया था.मेटरनिख के पतन के बाद भी ऑस्ट्रिया सरकार ने जर्मन एकीकरण के आंदोलन को बलपूर्वक कुचल दबा कर रखा सन 1849 ई. के बाद भी अनेक वर्षों तक अपने नेतृत्व में जर्मन संघ को स्थापित रखा.

प्रशिया का शासक फ्रेडरिक विलियम चतुर्थ

प्रशिया का शासक फ्रेडरिक विलियम चतुर्थ:- फ्रेडरिक विलियम भी Germany Ka Ekikaran आंदोलन की असफलता के लिये कुछ सीमा तक उत्तरदायी था. जब फ्रेंकफर्ट पार्लियामेंट ने उसे जर्मनी के सम्राट का ताज प्रस्तुत किया तो उसने इसे ठुकरा दिया. इसके बाद जब उसने कुछ जर्मन रियासतों के साथ मिल कर जर्मन का एकीकरण की योजना तैयार की तो उसे ऑस्ट्रिया के विरोध का सामना करना पड़ा था. इसने अष्ट्रिया से भयवित होकर कायरता का प्रदर्शन किया और अपनी योजना वापस ले ली थी.

अष्ट्रिया के प्रभाव के अधीन

अष्ट्रिया के प्रभाव के अधीन:- बहुत सी जर्मन रियासत के शासक भी अष्ट्रिया के प्रभाव के अधीन थे और उनमें अष्ट्रिया की इच्छा के विरुद्ध Germany Ka Ekikaran आंदोलन का समर्थन करने का साहस नहीं था.

देश छोड़कर अमेरिका

देश छोड़कर अमेरिका:- ऑस्ट्रिया की सरकार और जर्मन रियासतों के शासकों के दमनकारी कार्यों से भयवित होकर हजारों की संख्या में जर्मन उदारवाडी देश छोड़कर अमेरिका चले गये थे. इससे आंदोलन दुर्बल पड़ गया.

क्रांति असफल

क्रांति असफल:- सन 1848 ई० कीं जर्मन क्रांति यूरोपीय क्रांति का ही एक भाग था जो यह क्रांति असफल रहीं थी. (यह रहा Germany Ka Ekikaran से सम्बन्धित कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न है.)

इसे भी पढ़े: फ्रांसीसी क्रांति कब हुई

निष्कर्ष

निष्कर्ष:- फ्रैंकफर्ट पार्लियामेंट के उदारवादी नेताओं को सफलता प्राप्त नहीं हुई फिर भी उनके कार्यो को व्यर्थ नहीं कहा जा सकता. यह पार्लियामेंट जर्मन देशभक्तों की पहली बैठक थी जिसमें जर्मन राष्ट्रीय भावनाओं को स्पष्ट शब्दों में प्रकट किया गया तथा राजनीतिक आदर्श की वह परिभाषा बताई जिसका कभी त्याग नहीं किया जा सका.

FAQ (germany ka ekikaran class 10th) से सम्बन्धित कुछ सवालो का जवाब)

प्रिय स्टूडेंट इस लेख में Germany Ka Ekikaran से सम्बन्धित कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नों का उत्तर देखने वाले है. अगर आपके मन में इससे सम्बन्धित और कोई सवाल हो तो आप हमे कोमेंट के माध्यम से बता सकते है. ताकि आपके सवालों का जवाब आसानी से दिया जा सके और आपके आने वाले एग्जामके लिए महत्वपूर्ण रहेगा तो चलिए अब जान लेते है आपके द्वारा ही पूछा गया कुछ महत्वपूर्ण सवालों का जवाब.

जर्मन के एकीकरण में सबसे महत्वपूर्ण योगदान किसका था?

जर्मनी में राष्ट्रीय भावना के विकास का श्रेर्य – नेपोलियन
राइन संघ : 1806 ई० में नेपोलियन द्वारा 39 राज्यों का संघ बनाया
एकीकरण का नेतृत्व – प्रशा (बिस्मार्क (Pm)/विलियम-1राजा)
एकीकरण में मुख्य बाधक – ऑस्ट्रीया
प्रोटेस्टेन्ट- उत्तरी भाग- प्रशा, सैक्सनी, हनोवर, फ्रैंकफर्ट
मध्य भाग- राइनलैण्ड
कथौलिक दक्षिण भाग- वुटैम्बर्ग, बवेरिया, बादेन, पैलेटिनेट, हेस- डर्मेस्टाट
इस प्रकार बिस्मार्क ने अपनी नीतियों के द्वारा जर्मनी के एकीकरण में महत्वपूर्ण योगदान दिया.

जर्मनी का एकीकरण कब और किसने किया था?

बात करे की जर्मनी का एकीकरण मध्य यूरोप जैसे स्वतंत्र राज्यों को मिला दिया गया था और मिलाकर 1871 ई. में एक राष्ट्र राज्य वह था जर्मनी सन 1866-71ई. में जर्मनी का एकीकरण हुआ था. इसमें मेंन भूमिका निभाया था वह है बिस्मार्क इनकी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका थी.

अंत में क्या पढ़ा

प्रिय स्टूडें हम लोग इस पूरा लेख में यह देखा की जर्मनी का एकीकरण कब और किसने किया था. इस लेख में यह भी पढ़ चुके है बिस्मार्क की भमिका क्या-क्या थी. इस लेख में जर्मनी से सम्बन्धित सारे टॉपिक को एक-एक कर के पढ़ चुके है.

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