बलबन का राजत्व सिद्धांत- Balban History In Hindi(1266-87 ई०)

प्रिय स्टूडेंट इस लेख में मध्यकालीन इतिहास के अति महत्वपूर्ण टॉपिक Balban History In Hindi के बारे में पढने वाले है. Balban से सम्बन्धित कई प्रश्न है जो आपके एग्जाम के लिए महत्वपूर्ण है. इस लेख में बलबन के क्या उपलब्धिया थी और इसकी लौह रक्त के बारे में पढने वाले है. इस लेख में इस टॉपिक को पढने वाले है.

  • बलबन का राजत्व सिद्धांत
  • बलबन की लौह और रक्त नीति
  • बलबन की प्रशासनिक व्यवस्था का वर्णन
  • अंत में क्या पढ़ा

बलबन की लौह और रक्त नीति (1266-87 ई.)- Balban History In Hindi

अब इस लेख में Balban History In Hindi से सम्बन्धित बलबन का राजत्व सिद्धांत व बलबन की लौह और रक्त की नीति निम्नलिखित है. यह टॉपिक से आपके एग्जाम के लिए अति महत्वपूर्ण है.

  • बलबन की रक्त और लौह की नीति
  • बलबन शासक के रूप में (1266-87 ई.)
  • बलबन के राजत्व सिद्धान्त
  • राजा के देवी अधिकार का समर्थन
  • डॉ. निजामी जी यह लिखते हैं की यह
  • सुसज्जित तथा अनुशासित दरबार
  • व्यक्तिगत जीवन में परिवर्तन
  • न्याय पर बल
  • निम्न कुल के लोगों से घृणा

बलबन की रक्त और लौह की नीति

बलबन की रक्त और लौह की नीति:- बलवान का वास्तविक नाम बहाउद्दीन था. इसे मंगोलो ने पकड़ लिया था उसके बाद बसरा ले जाकर दास के रूप में इसे बेच दिया.ख्वाजा जलालुद्दीन ने इसे मंगोलो से दास के रूप में खरीद लिया था.1223 ई० मे इसे दिल्ली लाया गया दिल्ली मे इल्तुत्मिश ने इसे खरीद लिया था. और अपने चालीसा दल में शामिल कर लिया था. इस प्रकार है Balban History In Hindi में

बलबन शासक के रूप में (1266-87 ई.)

राज्याभिषेक:- नासिरुद्दीन ने अपनी ही देहान्त से पूर्व यानि की पहले बलबन को अपना ही उत्तराधिकारी घोषित ही कर दिया था. क्योंकि यह वह संतान हीन है की इस लिए इब्नबतूता व इसामी के अनुसार ही नासिरुद्दीन को बलबन ने ही हत्या कर दिया था. फरिश्ता के अनुसार, “बलवन ने इल्तुतमिश के वंश के दूर-पास के सभी तरह के सम्बन्धियों को भी समाप्त ख़त्म करवा दिया था.” आधुनिक इतिहासकार भी इसे असत्य ही मानते रहे हैं. कुछ भी हो, बलबन ने 1266 ई. में ‘गयासुद्दीन की बलबन ने उपाधि धारण कर लिया और उसके बाद से गद्दी पर बैठ गया था.

बलबन के राजत्व सिद्धान्त

बलबन के राजत्व सिद्धान्त:- बलबन ने जिस समय सिंहासनारूढ़ हुआ राजकीय पद का प्रभाव बहुत कम हो चुका था. प्रजा के दिल में बादशाह का भय तथा आतंक नहीं रहा था और न ही वह सुल्तान के प्रति राजभक्ति प्रदर्शित करती थी. जिससे सम्पूर्ण शासन लड़खड़ा गया. Balban History In Hindi यह है की बरनी के शब्दों में यह कहां है बरनी ने, ” सरकार यानि की शासन का भय थी और सुशासन का आधार व राज्यों के यस का वैभव का स्रोत भी थी. लोगों के हृदय से जाता रहा था और देश में अव्यवस्था का बोलबाला था.”

इसका Balban History In Hindi का प्रमुख कारण यह था कि इल्तुतमिश के दुर्बल उत्तराधिकारियों के शासनकाल में तुर्क सरदारों ने राज्य की समस्त शक्ति अपने हाथों में ले ली थी. ये तुर्की सरदार इतने शक्तिशाली हो गये थे कि अपनी इच्छा से राजकुमारों को सिंहासन पर बैठाते व उतारते रहे थे. बलबन स्वयं इन तुर्क सरदारों में से एक था. अतः वह इनके दांव-पेचों को अच्छी तरह से समझता था. बरनी के अनुसार, उसने अपने ही पुत्रो को शिक्षा व संस्कार देते हुए कहा था कि, “सुल्तान ईश्वर का प्रतिनिधि ही होता है.

परन्तु उसे निरन्तर अपने पद की शोभा को व गौरव को भी बढ़ाये रखने का ही प्रयास हर हाल में करना चाहिए थी. Balban History In Hindi उसे इसी प्रकार का भी व्यवहार सम्मान भी करना चाहिए और अपने साथी बच्चों और गुलाम के साथ भी इसी प्रकार का सम्मान व्यवहार भी करना चाहिए था. जबकि जो घर में अनर्गल होता है न वहीं ही बाहर भी अनर्गल ही होता जबकि इसी प्रकार का व्यवहार सम्मान करना चाहिए था.”

बलबन ने सिंहासन पर बैठने के पश्चात् शासन को सुदृढ़ बनाने के लिए राजकीय पद की खोई हुई शक्ति तथा प्रतिष्ठा को पुनः स्थापित करने की ओर ध्यान दिया और इसके हित में निम्नलिखित कदम उठाये थे. यही कदम उसके Balban History In Hindi के राजत्व सिद्धान्त का मूल आधार है.

(1) राजा के देवी अधिकार के सिद्धान्त का समर्थन किया था.
(2) शाही वंशज होने का दावा किया था.
(3) राजदरबार को सुसज्जित एवं वैभवशाली बनाया एवं कड़ा अनुशासन स्थापित किया है.
(4) अपने निजी जीवन को उच्च तथा स्वच्छ बनाने के लिए आवश्यक परिवर्तन किये है.
(5) तुर्क सरदारों का दमन किया था.
(6) आवश्यकता पड़ने पर लीड एवं रक्त की नीति भी अपनानी चाहिए था.
(7) सेना का पुनर्गठन किया है.
(8) उच्चवंशीय लोगों को ही प्रशासन में उच्च पदों पर नियुक्त किया है.
(9) गुप्तचर विभाग संगठित किया था.
(10) निष्पक्ष न्याय पर बल दिया है.
(11) राजनीति को धर्म से अलग रखा था.

राजा के देवी अधिकार का समर्थन

राजा के देवी अधिकार का समर्थन:- अपनी स्थिति को दृढ़ बनाने के लिए Balban History In Hindi में बलबन ने राजा के देवी अधिकार का समर्थन किया था. उसने राजा के व्यक्तित्व की पवित्रता तथा श्रेष्ठता पर बल दिया. उसने अपने ही स्वयं को जिल्ले अल्लाह (ईश्वर की छाया) की भी उपाधि भी धारण कर ली थी. इसके अतिरिक्त वह प्राय अपने दरबार में यह कहा करता था कि बादशाही ईश्वर की देन है.

राजा धरती पर ईश्वर का प्रतिनिधि है उसका ह्रदय ईश्वरी कृपा का भण्डार है और वह अत्यन्त पवित्र तथा पूजनीय व्यक्ति है. सामान्य मनुष्यों से कहीं श्रेष्ठ है. कोई भी व्यक्ति उसकी सामना नहीं कर सकता. ऐसे श्रेष्ठ व्यक्ति का प्रजा को आदर तथा सत्कार करना चाहिए और उसके आदेश को परमात्मा का आदेश मानकर उसका पालन करना चाहिए थे. विशेषतः इसलिए कि ईश्वर की प्रेरणा तथा उसके आदेशानुसार शासन का कार्य चलता है. यह भी Balban History In Hindi के महत्वपूर्ण टॉपिक है.

डॉ. निजामी जी यह लिखते हैं की यह

डॉ. निजामी जी यह लिखते हैं की यह:- इस प्रकार Balban History In Hindi के टॉपिक है. “राजा का हत्यारा बलबन, जिसने दासता से भी मुक्ति प्राप्त नहीं की थी. दैवी अधिकार का आश्रय लेकर अपनी स्थिति सुदृढ़ करना चाहता था.” शाही वंशज होने पर बल बलबन इस बात से भली प्रकार परिचित था कि तुर्क दल के बड़े-बड़े तथा प्रभावशाली सरदार किसी निम्न वंश के सदस्य का सुल्तान बनना सहन नहीं कर सकते थे. वे उसके राज्याधिकार को किसी भी समय चुनौती दे सकते हैं.

अतः उसने राजदरबार में बड़े गर्व से यह दावा करना भी शुरू कर दिया कि वह ईरान के प्राचीन शासक अफरासियाब का वंशज है. उसने अपने पोतों को जो उसके सिंहासनारूढ़ होने के बाद उत्पन्न हुए. ईरानी राजकुमारों के नाम (कैकुबाद, कैखुसरो आदि) दिये खानदानी ऊँच-नीच के बारे में सुल्तान को इतना जुनून था कि उसने राज्याधिकारियों की वंशावलियों की भी जांच-पड़ताल करवाई और नीच वंश के लोग को महत्त्वपूर्ण पद नहीं दिये थे. Balban History In Hindi में यह भी टॉपिक है.

सुसज्जित तथा अनुशासित दरबार

सुसज्जित तथा अनुशासित दरबार:- यह Balban History In Hindi में इस प्रकार यह इतिहास है. बलबन का यह विश्वास था कि राजा का दरबार इतना सुसज्जित और अनुशासित होना चाहिए था. उसे देखकर सर्वसाधारण के मन में राजा के प्रति भय और आदर की भावना उत्पन्न हो गए थे. इसलिए उसने अपने दरबार के ठाट-बाट तथा उसके अनुशासन की तरफ विशेष ध्यान दिया. उसने ईरानी त्यौहार ‘नौरोज’ को प्रतिवर्ष मनाना शुरू कर दिया और दरबारियों तथा पदाधिकारियों के लिए एक विशेष प्रकार की पोशाक निश्चित की है.

इसके अतिरिक्त सुल्तान ने ‘सिजदे तथा ‘पायबोस की क्रियाओं का पालन अनिवार्य ठहराया. इन क्रियाओं के अनुसार, सुल्तान की सेवा में उपस्थित होने वाले प्रत्येक व्यक्ति को राजदरबार में आते समय तथा वहाँ से लौटते समय सुल्तान को झुककर सलाम करना तथा पैरो को छूना पड़ता था. डॉ. ईश्वरी प्रसाद के अनुसार, “राज्य की सम्पूर्ण शक्ति भी उसी में केन्द्रित रह जाती थी. वह बड़ी ही अपनी बातो को कठोरता से अपनी आज्ञाओं का पालन बहुत ही सख्त पालन करवाता था. इसी प्रकार Balban History In Hindi में है.

उसके पुत्र भी, जो बड़े-बड़े प्रान्तों के शासक थे. उससे बिना पूछे अपनी राय से कोई कार्य नहीं कर सकते थे. उसकी आज्ञा अन्तिम समझी जाती थी.” बरनी के अनुसार, ” उसने त्यौहार मेले के समय में भी राज दरबार बहुत ज्यादा सुंदर व अच्छा से सज्जित होती है कि जो दर्शक थे उसकी सज्जा व सुन्दरता को देखकर आश्चर्यचकित रह जाते थे. उत्सव के महौल में भी उपरान्त भी कई दिनों समय तक ही उसकी चर्चा होती रहती थी.

सुल्तान के दरबार की एक और प्रमुख विशेषता उसका कड़ा अनुशासन था. दरबारी तथा पधाधिकारी एक निश्चित नियम के अनुसार, दरबार में चुपचाप खड़े होते या बैठते थे. किसी व्यक्ति को सुल्तान के सम्मुख हैंसी-मजाक करने की आज्ञा नहीं थी. वजीर को छोड़कर शेष कोई भी व्यक्ति सुल्तान से सीधी बातचीत नहीं कर सकता था. राजदरबार में सुल्तान का अपना व्यवहार भी बड़ा अनुशासित था. यह Balban History In Hindi जो हिन्दी में है.

वह दरबार में सदैव गम्भीर रहता था. उसे कभी किसी व्यक्ति ने हँसते हुए नहीं देखा और न ही उसने अपने वचन अथवा व्यवहार द्वारा किसी व्यक्ति को अपनी मनोदशा जानने का अवसर दिया. कहा जाता है कि उसे अपने बड़े पुत्र मुहम्मद का बहुत दुःख था. वह अकेले में प्रायः फूट-फूटकर रोता था. लेकिन उसने दरबार में कभी भी अपना दुःख प्रकट न किया तथा गम्भीरता को बनाये रखा. इस सम्बन्ध में सबसे अधिक प्रशंसनीय बात यह है कि सुल्तान ने अपने जीवन के अन्तिम क्षणों तक दरबार सम्बन्धी इस शिष्टाचार तथा अनुशासन का दृढ़ता से पालन किया था. यह इतिहास Balban History In Hindi में है.

व्यक्तिगत जीवन में परिवर्तन

व्यक्तिगत जीवन में परिवर्तन:- पूर्ववर्ती शासकों की चारित्रिक दुर्बलताओं ने भी राजकीय पद की प्रतिष्ठा को गहरा आघात पहुँचाया था. सुल्तान ने इसलिए अपने निजी जीवन को स्वच्छ तथा उच्च बनाना आवश्यक समझा था. अतः उसने अपने रहन-सहन में काफी परिवर्तन किया. उसने शराब पीना तथा रंगरेलियाँ मनाना सर्वथा बन्द कर दिया. Balban History In Hindi इसके अतिरिक्त, यद्यपि उसे जनसाधारण से सहानुभूति थी.

तथापि वह उनसे सम्पर्क रखना शासन नीति के विरुद्ध समझता था. अतः उसके शासन काल में आम लोगों को सुल्तान से मिलने की आज्ञा नहीं थी. कहा जाता है कि दिल्ली के एक व्यापारी ने से मुलाकात करने की आज्ञा माँगी तथा इस कृपा के बदले में अपनी सारी सम्पत्ति उसे सुल्तान अर्पित करने की इच्छा प्रकट की थी. परन्तु इस पर भी सुल्तान ने उस व्यापारी से मिलना स्वीकार नहीं किया. इसके अतिरिक्त सुल्तान अपने वस्त्रों का विशेष ख्याल रखता था और कभी भी साधारण पोशाक पहनकर जनता के सामने नहीं आता था. यह भी Balban History In Hindi है.

न्याय पर बल

न्याय पर बल:- यह रही Balban History In Hindi में बलबन का यह विश्वास था कि बादशाह को अपनी प्रजा के साथ न्याय करना चाहिये क्योंकि इससे भी उसकी प्रतिष्ठा बढ़ती है. अतः उसने अपने शासन काल में न्याय प्रबंध की ओर ध्यान दिया और बड़े-बड़े पदाधिकारियों को भी अपराधी सिद्ध होने पर कठोर दंड दिये है. उदाहरणस्वरूप उसने बदायूँ के सूबेदार मलिक बकबक को एक सेवक को मार डालने के अपराध में 500 कोड़े लगवाये है. जिससे उसकी मृत्यु हो गयी थी. इसी प्रकार के अपराध पर अवध के सूबेदार हैबत खां को भी कठोर दण्ड दिया गया.

परन्तु आश्चर्य की बात यह है कि जब किसी व्यक्ति ने बलबन के राज्य अधिकार को चुनौती दी या कोई राज्य विरोधी कार्य किया तो सुल्तान ने न्याय तथा शरीयत की परवाह न करते हुए उसे निर्दयतापूर्वक दंड दिया. उदाहरणस्वरूप उसने शम्सी सरदारों को जो उसकी दृष्टि में राज्य के भागीदार थे. शरबत या शराब में जहर पिलाकर मौत की नींद सुला दिया गया था. यह चेप्टर Balban History In Hindi में है.

निम्न कुल के लोगों से घृणा

निम्न कुल के लोगों से घृणा:- बरनी के कथनानुसार बलबन निम्न कुल के लोगों से घृणा करता था. उसने एक बार ये शब्द भी कहे, “जब मैं किसी निम्न कुल के व्यक्ति को देखता हूँ, तो मैं क्रुद्ध हो उठता हूँ” वह निम्न कुल वालों के साथ सम्पर्क रखना या उन्हें किसी राज्य पद पर नियुक्त करना अपनी प्रतिष्ठा के प्रतिकूल समझता था.

उसने निम्न कुल के व्यक्तियों को महत्त्वपूर्ण पदों से वंचित कर दिया. जब उसके दरबारियों ने कमाल माहियार को अमरोह में एक पद पर नियुक्त करने के लिये चुना तो सुल्तान ने उन्हें बुरी तरह डांटा था. प्रो. हबीब तथा डॉ. अफसार इस मत से सहमत नहीं ली थी. उनकी राय में यह बरनी के अपने विचार हैं बल्कि बलबन के नहीं है. इस प्रकार Balban History In Hindi में यह टॉपिक ख़त्म होता है.

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FAQ (बलबन का राजत्व सिद्धांत से सम्बन्धित कुछ सवालो का जवाब)

प्रिय स्टूडेंट अब इस लेख में आपको Balban History In Hindi से सम्बन्धित टॉपिक जो आपके द्वारा ही प्रश्न है. आपको इस टॉपिक से जितने प्रश्न आपके द्वारा पूछा गया है सरे प्रश्नों का उत्तर देखने वाले है.

बलबन का राजवंश कौन था?

बलबन एक दिल्ली सल्तनत का ही एक राजवंश ही था. इनके कई सिद्धांत है इनका पूरा नाम गयासुद्दीन बलबन नाम है.

बलबन ने कौन सी नीति अपनाई?

बलबन ने कई नीतिया भी अपने है. जिसमे से सबसे महत्वपूर्ण टॉपिक अलाउदीन खिजली ही इन्होने अपनाई है.

अंत में क्या पढ़ा

इस लेख में देखा की कैसे बलबन को मंगोल शासन कैसे पकड़ कर चालीसा दल में सामिल किया था. इस लेख में यह भी देखा की बलबन ने क्या-क्या उपलब्धिया थी और कौन-कौन सा नीतिया अपनाई थी. इस प्रकार Balban History In Hindi है जो आपके एग्जाम के लिए अति महत्वपूर्ण टॉपिक है.

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