प्रिय स्टूडेंट इस लेख में इतिहास से सम्बन्धित सबसे महत्वपूर्ण टॉपिक Janjatiya Andolan या आदिवासी विद्रोह के बारे में पढने वाले है. इस लेख में विभिन्न आदिवासी विद्रोह के बारे में पूरा विस्तार से एक-एक कर के पढने वाले है. इस विद्रोह के क्या-क्या कारण व सफलता और असफलता के बारे में पढने वाले है. तो चलिए इस लेख को पूरा अंत तक पढ़ते है.
- परिचय
- प्रमुख विद्रोह
- कारण
- विशेषता
- असफलता
- निष्कर्ष
परिचय:- 19वीं शताब्दी में भारत में कई Janjatiya Andolan या आदिवासी विद्रोह हुए है. यह विद्रोह उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक फैला था. बंगाल, बिहार, उड़ीसा जैसे क्षेत्र पर ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन का प्रतिकूल प्रभाव पड़ा. सरकार द्वारा अपनाई जा रही शोषणकारी नीतियाँ, कर में वृद्धि, भूमि अधिग्रहण, धार्मिक हस्तक्षेप ने आदिवासी क्षेत्रों में विद्रोह को बढ़ावा दिया.
आदिवासी विद्रोह के कारण व जनजातीय आंदोलन के प्रमुख कारण – Janjatiya Andolan Ke Karan PDF
इस लेख में आदिवासी विद्रोह के कारण व जनजातीय आंदोलन के प्रमुख कारण निम्नलिखित है.
- सामाजिक कारण
- राजनीतिक कारण
- धार्मिक कारण
- आर्थिक कारण
- नोनिया विद्रोह
- तमार विद्रोह
- चेरो विद्रोह
- भूमिज विद्रोह
- लोटा विद्रोह
सामाजिक कारण
सामाजिक कारण:- आदिवासी समुदाय मुख्यत परंपरागत सामाजिक मान्यताओं पर विश्वास करते थे लेकिन ब्रिटिश सरकार द्वारा कई नवीन कानूनों को लागू किया गया था. जिसका जनजातीयो ने विरोध किया ओडिशा ने खेण्ड जनजातियो द्वारा विरोध किया गया. क्योंकि उनकी प्रथा नरबलि पर रोक लगा दि गई थी.
राजनीतिक कारण
राजनीतिक कारण:- इस Janjatiya Andolan के साम्राज्य विस्तार के क्रम मे ब्रिटिश सरकार द्वारा आदिवासी इलाको मे पुलिस थाने, सैनिक छावनियां स्थापित कि गई थी. जिस कारण जंगलो पर जनजातीय लोगो का अधिकार जाता रहा साथ ही नई लगान दरे, कानून के प्रति असमझ एवं अविश्वास के कारण जनजातियों ने अनेक विद्रोह किए थे.
धार्मिक कारण
धार्मिक कारण:- 1813 चार्टर एक्ट के पश्चात् ईसाई धर्म प्रचारको को प्रोत्साहित किया गया. ईसाई मिशनरियों के द्वारा आदिवासियो को जबरन धर्मांतरित किया जाने लगा जिस कारण जनजातियो ने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध विद्रोह दिया.
आर्थिक कारण
आर्थिक कारण:- ब्रिटिश आर्थिक नीति को Janjatiya Andolan का प्रमुख कारण माना जाता है. आदिवासियो के जीवन मे बनो का बड़ा महत्व था, ये परंपरागत रूप से वनो एवं वन्य संपदा पर अपना अधिकार मानते थे.लेकिन सरकार द्वारा वनों के सरकारी संपत्ति घोषित कर उपयोग पर प्रतिबंध अंतः लोगो द्वारा विद्रोह किया गया.
नोनिया विद्रोह
नोनिया विद्रोह (1770 1800 ई.):- नोनिया विद्रोह बिहार के मुख्य शोरा उत्पादक केन्द्र हाजीपुर, तिरहुत, सारण और पूर्णिया में हुआ था.
तमार विद्रोह
तमार विद्रोह (1789-94 ई.):- छोटानागपुर के उरांव जनजाति द्वारा जमींदारों के शोषण के खिलाफ विद्रोह की शुरुआत हुई जो 1794 ई. तक चलता रहा। अंततः इस विद्रोह को अंग्रेजों ने कुचल दिया था.
चेरो विद्रोह
चेरो विद्रोह (1800-1802 ई.):- यह विद्रोह पलामू शासक भूषण सिंह के नेतृत्व में पलामू रियासत के लोगों ने किया. अंग्रेजों ने 1802 ई. में भूषण सिंह को पकड़कर फांसी की सजा दे दी.
भूमिज विद्रोह
भूमिज विद्रोह (1832-33 ई.):- यह विद्रोह वीरभूम के जमींदार इस विद्रोह का कारण ब्रिटिश सरकार की दमनकारी लगान व्यवस्था थी. गंगा नारायण सिंह के नेतृत्व में इस विद्रोह किया गया इसका प्रभाव वीरभूम एवं सिंहभूम दोनों क्षेत्रों में था.
लोटा विद्रोह
लोटा विद्रोह (1856 ई.):- यह विद्रोह मुजफ्फरपुर जेल के कैदियों द्वारा लोटे के लिए किया गया था. यहाँ प्रत्येक कैदी को पीतल का लोटा दिया जाता था, लेकिन सरकार ने निर्णय लिया कि पीतल की जगह मिट्टी के बर्तन दिये जाएंगे और इसके बाद वहां के कैदियों ने विद्रोह कर दिया था.
जनजातीय आंदोलन के प्रमुख विद्रोह
प्रिय स्टूडेंट इस लेख में Janjatiya Andolan के प्रमुख कारणों व प्रमुख विद्रोह निचे निम्नलिखित है. जो आपके सभी तरह प्रतियोगी व अन्य एग्जाम के लिए अति महत्वपूर्ण है. तो चलिए एक-एक कर के सभी टॉपिक को पूरा अंत तक पढ़ते है.
- रमोंसी विद्रोह
- भील विद्रोह
- कोल विद्रोह
- खासी विद्रोह
- मुंडा विद्रोह
- संथाल विद्रोह
रमोंसी विद्रोह
रमोंसी विद्रोह:- पश्चिमी घाट में सरदार चितर सिंह के नेतृत्व में रमोंसी Janjatiya Andolan द्वारा विद्रोह किया गया था.
भील विद्रोह
भील विद्रोह:- पश्चिमी घाट में संवाराम भील के नेतृत्व में भीलो ने अंग्रेजी कानून के विरुद्ध विद्रोह किया. इस विद्रोह को पेशा बाजीराव द्वितीय का सहयोग प्राप्त या हलांकि इस विद्रोह का अंग्रेजों द्वारा दमन कर दिया गया था.
कोल विद्रोह
कोल विद्रोह:- छोटानागपुर कोल के जनजाति द्वारा विद्रोह किया गया क्योंकि चावल की नशीली शराब इनके द्वारा बनाया गया था. जिसपर अंग्रेजो ने उत्पादन शुल्क लगा दिया जिसके विरोध में बुद्धो भगत एवं गंगा नरायण सिंह के नेतृत्व में विद्रोह किया गया.
खासी विद्रोह
खासी विद्रोह:- तीरत सिंह के नेतृत्व में खासी जनजाति ने Janjatiya Andolan किया था क्योंकि अंग्रेजों द्वारा जयंतिया पहाड़ी के क्षेत्रों में सड़क निर्माण कार्य शुरू किया गया इसके लिए जंगलो को काटा गया लोगो से बेगार करवाया जाने लगा था. किसके कारण विद्रोह किया गया था.
मुंडा विद्रोह
मुंडा विद्रोह:- छोटानागपुर पठार मे मुंडा जनजाति के सामूहिक खेती करने पर रोक लगा दि गई साथ ही लगान दर को बढ़ा दिया गया जिसके विरोध में बिरसा मुंडा के नेतृत्व में विद्रोह हुआ था.
संथाल विद्रोह
संथाल विद्रोह:- बिहार के राजमहल जिले मे अत्यधिक भूमि कर एवं अधिकारियों के दमनकारी नीतियों के खिलाफ संथालों ने सिद्धू एवं कान्छ के नेतृत्व मे विद्रोह: किया.
जनजाति विद्रोह की विशेषताएं
प्रिय स्टूडेंट इस लेख में Janjatiya Andolan की प्रमुख विशेषताएं के बारे में पढने वाले है. इससे सम्बन्धित जनजाति विद्रोह की निम्नलिखित विशेषता निचे है.
(i) जनजातीयों में एकता और संगठनात्मक प्रवृत्ति का विकास हुआ है.
(ii) विद्रोह की परंपरा स्थापित इसमें परंपरागत एवं स्थानीय हुई थी.
(iii) पारंपरिक पद्धति की मदद से अंग्रेजी से लड़ाई लड़ी गई – गुरिल्ला युद्ध तकनीक का प्रयोग, माला, तीरधनुष इत्यादि चीजो का प्रयोग किया गया था.
(iv)भारत के स्वतंत्रता संग्राम मे जनजातियों का भी विशेष योगदान एवं सहयोग रहा है.
जनजाति विद्रोह की असफलता के कारण
प्रिय विधार्थियों इस लेख में Janjatiya Andolan व आदिवासी विद्रोह की असफलता के बारे में पढने वाले है. जो आपके आने वाले एग्जाम के लिए अति महत्वपूर्ण टॉपिक है. जो निचे निम्नलिखित है तो चलिए इसको पूरा अंत तक पढ़ते है.
(i) जनजातिय लोगो के पास कोई स्पष्ट उद्देश्य इसलिए वे ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध एकजुट होकर संघर्ष नहीं कर पाए थे.
(ii) सभी समुदायों द्वारा स्वयं के कारणों के लिए संघर्ष किया गया जिसे ब्रिटिश सरकार ने आसानी से क्षेत्रावर दमन कर दिया.
(iii) संभ्रांत और बौहिक भागीदारी की कमी इसके अलावा विद्रोह मे केवल आदिवासियों ने भाग लिया अन्य लोगो ने या Janjatiya Andolan का समर्थन नही किया या विद्रोह को लेकर तटस्थता बनाए रखी थी.
(iv) जनजातिय लोगों के पास परंपरागत हथियार में जबकि ब्रिटिश सेना आधुनिक हथियार से लैस थी, इस स्थिति विद्रोह को असानी से दबा दिया गया. हालांकि इन प्रारंभिक विकासो ने साम्राज्यवाद के खिलाफ आस-पास के विवादों की अभिव्यक्ति को आगे बढाते हुए एक ठोस संस्कृति बनाई गई थी.
अलग-अलग नेतृत्व ने विद्रोह के प्रभाव को सीमित कर दिया जो इसका वास्तविक प्रभाव हो सकता था फिर भी आदिवासी प्रदर्शनकारियों के प्रयासो ने साम्राज्यवादी ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ लड़ने के लिए एक कदम आगे बढ़ाने का दृष्टिकोण प्राप्त किया जिसके परिणामस्वरूप विभिन्न क्षेत्रो मे बड़े पैमाने पर विद्रोह हुए कालांतर में आजादी की लड़ाई हेतु प्रेरणादायक रहा है.
नोट:- यह रही Janjatiya Andolan व आदिवासी विद्रोह के कारण व परिणाम और असफलता के क्या-क्या कारण थे. इस लेख में इससे सम्बन्धित सारे टॉपिक को एक-एक कर के पूरा इतिहास को पढ़ चुके है.
इसे भी पढ़े:- बिरसा मुंडा आंदोलन
FAQ (ताना भगत आंदोलन पर प्रकाश डालें से सम्बन्धित कुछ सवालो का जवाब)
प्रिय स्टूडेंट इस लेख में Janjatiya Andolan से सम्बन्धित आपके द्वारा पूछा गया प्रश्नों का उत्तर देखने वाले है. अगर आप के मन में कोई और प्रश्न पूछना चाहते है तो आप हमे कॉमेंट के माध्यम से पूछ सकते है.
जनजाति आंदोलन से आप क्या समझते हैं?
जनजातियां हमेशा से ही स्वायत रहने की पक्षधर है. 1855 में नागा जनजाति पर अंग्रेजों का आधिपत्य हो गया. फिजोने 1946 में नागा नेशनल काउंसिल का गठन किया जिसने 14 अगस्त 1947 को आजादी की घोषणा की थी.
1962 में नागालैण्ड को राज्य का दर्जा ( 371 ए में विशेष अधिकार सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम ( AFSPA ) 1958 का विरोध था. इसी प्रकार मिजों जनजाति ने भी अंग्रेजी शासन के विरूद्ध आंदोलन किया. असम यूनाईटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम ULFA बोडोलैण्ड की मांग की थी. झारखंड एवं छतीसगढ़ राज्य का निर्माण भी हुआ है
जनजातीय आंदोलन कौन कौन से हैं?
बिरसा मुंडा आन्दोलन व खासी विद्रोह और मुंडा विद्रोह, संथाल विद्रोह यह रहे Janjatiya Andolan है.