स्टूडेंट आज हम पढने वाले है Tarain Ka Pratham Yuddh जो प्राचीन समय से ही भारत का इतिहास बेहद भरोसे मन रहा अंग्रेजों के आने से पहले भारत में कई साम्राज्य हुए जिन्होंने विस्तार वादी नीतियां अपनाते हुए. खुद को स्थापित करने की कोशिश की इस कारण समय-समय से साम्राज्य उभरते रहे और पुराणों का वतन होता रहा. इस कोशिश में कई लड़ाइयां लड़ी गई.
इनमें से कुछ लड़ाईया काल में समा गई और कुछ तो इतिहास के पन्नों में छप गई. Tarain Ka Pratham Yuddh उन्हीं में से एक युद्ध है जो आज इस लेख में आपको बताने वाले हैं. यह लेख आपके लिए अति महत्वपूर्ण है क्योंकि यह युद्ध आपके एग्जाम में पूछा जा सकता है. यह लेख पूरा अंत तक पढ़े. इस लेख में Tarain Ka Pratham Yuddh क्या-क्या कारण परिणाम प्रभाव रहा सारे टॉपिक को कवर करेंगे.
- तराइन का प्रथम युद्ध
- तराइन के प्रथम युद्ध की घटना
- तराइन के प्रथम युद्ध के प्रमुख कारण
- तराइन का प्रथम युद्ध के लड़ाई के परिणाम व प्रभाव
तराइन का प्रथम युद्ध किसके बीच हुआ था – Tarain Ka Pratham Yuddh Kiske Sath Hua Tha
प्रिय स्टूडेंट अब इस लेख में यह पढ़ेंगे Tarain Ka Pratham Yuddh किसके बिच हुआ था पूरा विस्तार से जानेंगे तो चलिए जान लेते है.
Tarain Ka Pratham Yuddh मोहम्मद गौरी तथा शाक्मभरी चौहान शासक पृथ्वीराज तृतीय के बीच हुआ था. मोहम्मद गौरी जो इनका पूरा नाम था शहाबुद्दीन मुहम्मद गौरी इनका नाम है. यह गौर राज्य के शासकबिका भाई ग्यासुद्दीन का भाई था. (गजनी-हैरात के बीच) मोहम्मद गौरी ने अपने भाई ग्यासुद्दीन की गजनी की जीतने में मदद की थी.
इससे खुश होकर उसके भाई ने 1173 ई० में उसे गजनी का शासक बना दिया. इस तरह गौरी ने गजनी में स्वतंत्र राज्य की स्थापना कर ली. और मोहम्मद गौरी स्वतंत्र शासक बन गया. वह अपने आपको अपने भाई का सामान्त कहता था. सिक्कों पर अपने भाई का नाम उत्कीण कराया और एक अधीनस्थ राजा के जैसा ही व्यवहार किया. भारत पर सबसे पहले 1175 ईस्वी में मुल्तान और सिंध पर आक्रमण किया.
1178 ईस्वी में गुजरात पर आक्रमण किया गुजरात के शासक हिंद देव ने इसको हराया और अपने जान बचाकर भागना पड़ा था. इस पराजय के बाद गौरी ने महसूस किया. तब इन्होने जीतने के लिए भारत को पंजाब को आधार बनाना ज़रूरी है. उसने कई युद्ध के बाद 1190 ईसवी में पूरे पंजाब गोव साम्राज्य को अहम बना दिया. 1191 ईस्वी में तराइन का प्रथम युद्ध और 1192 ईसवी में तराइन का दूसरा युद्ध व 1193 ईस्वी में कनौज के शासक जयचंद को हराया इसने 1206 ईस्वी तक शासन किया.
अपने भाई के सहायक के रूप में भारत पर कई बार आक्रमण किया. व दिल्ली सल्तनत की स्थापना के लिए मार्ग प्रशस्त किया. पृथ्वीराज तृतीय चौहान वंश का शासक था. भारतीय इतिहास में इसे राय पिथौरा के नाम से प्रसिद्ध है. यह शाक्मभरी चौहान वंश का सबसे महान शासक था. इसने 1172 ई० से 1192 ई० तक दिल्ली पर शासन किया. या मात्र 15 वर्ष की आयु में गद्दी पर बैठा और दिल्दी अजमेर का शासक था.
तराइन का प्रथम युद्ध कब हुआ व घटनाक्रम – Tarain Ka Yuddh
अब इस लेख में यह जानेंगे Tarain Ka Pratham Yuddh कब हुआ था और क्या-क्या इसका घटना रहा सारे टॉपिक को इस लेख में कवर कर्रेंगे जो आपके प्रतियोगी परीक्षाओ के लिए अति महत्वपूर्ण रहेगा. इस लेख में आपको दो विधि बताया जाएगा जो आपको आसान लगे उस को पूरा याद कर जाइए
पहला विधि प्रथम तराइन का युद्ध 1191
- प्रथम तराइन का युद्ध 1991 : पंजाब विजय के बाद मोहम्मद गौरी की राज्य सीमाएं अजमेर तथा दिल्ली के राजा पृथ्वीराज चौहान के राज्य से मिलने लगी. 1189 ईस्वी में गौरी ने भटिंडा राज्य पर आक्रमण कर इसे जीत लिया.
- भटिंडा क्षेत्र पृथ्वीराज चौहान के अधिकार में था. जब यह सूचना पृथ्वीराज चौहान को मिला तो वह चिंतित हुआ. जिसके बाद पृथ्वीराज चौहान ने 100 राजपूत राजाओं के साथ मिलकर एक संघ बनाया ताकि मोहम्मद गौरी का मुकाबला कर सके. इसके बाद 1191 ईस्वी में तराइन मैदान में इन दोनों के सैनिकों में मुठभेड़ हुआ जिसमें मोहम्मद गौरी को पराजित होना पड़ा.
- बड़ी मुश्किल से वह युद्ध क्षेत्र से घायल होकर अपनी जान बचाकर भागा. लेनपूल ने अपने शब्दों में यह कहा है कि इससे पहले कभी भी मुसलमानों की सेना हिंदुओं द्वारा इस तरह से पराजित नहीं हुआ था. गौरी के पराजय के बाद पृथ्वीराज ने पुनः भटिंडा पर अधिकार कर लिया.
दुसरा विधी तराइन के प्रथम युद्ध की घटना
- 1191ईस्वी में करनाल के समीप तराइन (तरावड़ी) नामक इस स्थान पर दोनों सेनाएं आमने-सामने आ गई दोनों ने अबनी मोर्चाबन्दी की थी. इस्लामी इतिहासकारों के अनुसार पृथ्वीराज चौहान की सेना की संख्या एक लाख घुड़सवार तथा 30000 पैदल सैनिक बताए गए हैं.
- डॉ० के०सी यादव का कहना है कि मध्यकालीन इतिहासकारों की यह प्रवृत्ति रही है कि दुश्मन की सेना को अपने स्वामी की सेना से बढ़ा चढ़ाकर बताया जाए जिससे उसके स्वामी की महानता ज्यादा से ज्यादा दिखाई दे. डॉक्टर केसी यादव के अनुसार दोनों ही सेनाओं की संख्या लगभग एक समान थी.
- पृथ्वीराज चौहान तथा मोहम्मद गोरी अपनी अपनी सेना का नेतृत्व कर रहे हैं दोनों सेनाओं के बीच भयंकर युद्ध हुआ हरियाणा के हांसी के गवर्नर गोविंद राय ने पृथ्वी का साथ दिया. जो बड़ी वीरता से लड़ा. युद्ध में मोहम्मद गोरी घायल हो गया वह घोड़े से गिरने वाला था कि उसका एक वफादार सरदार उसको उठाकर मैदान से भाग गया.
- पृथ्वीराज की सेना ने 40 मील तक मोहम्मद गौरी का सेना का पीछा किया मोहम्मद गौरी की सेना का संहार किया. मोहम्मद गौरी अपनी जान बचाने में सफल रहा. राजपूतों ने गौरी सेना को पूर्वक पंजाब से निकालने का प्रयास नहीं किया इस प्रकार तराइन के प्रथम युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की जीत हुई.
तराइन का युद्ध व भूमिका
भूमिका महमूद गजनवी के आक्रमण से 100 साल बाद तुर्की ने अफगानिस्तान के गोरी को दबाना और खदेड़ना शुरू किया. जिसके फलस्वरूप मोहम्मद गौरी को भारत पर आक्रमण करने के लिए लगभग विवश होना पड़ा. हर्ष बाद उत्तर भारत की राजनीति की एकता और स्थिरता को गंभीर आघात लगा, राजनीतिक एकता समाप्त हो गई और उत्तर भारत कई छोटे-छोटे राजपूत राज्यों में विभक्त हो गया.
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तराइन के प्रथम युद्ध के प्रमुख कारण – Tarain Ka Yuddh 1991 ई०
अब इस लेख में यह बताने वाले है की Tarain Ka Pratham Yuddh के प्रमुख कारण इस युद्ध में क्या कारण रहा इसकी क्या घटना में हुआ. जो Tarain Ka Pratham Yuddh हुआ है इसका पूरा इतिहास का क्या-क्या कारण है. इस लेख में हम आपको पूरा एक एक कर के आपको पॉइंट वइज बताने वाले है. जो आपके सभी एग्जाम के लिए अति महत्वपूर्ण रहेगा तो इस लेख को पूरा अंत तक पढ़े.
- साम्राज्य विस्तार
- राजनीतिक स्थिति
- इस्लाम का प्रसार
- तत्कालीन कारण
- भारत की धन सम्पदा
Tarain Ka Pratham Yuddh के कारण:- मोहम्मद गौरी ने भारत के तत्कालीन कमजोर राजनीतिक स्थिति को देखते हुए 1175 ईस्वी में भारत पर आक्रमणों की शुरुआत की थी. उसने हरियाणा पर पहला आक्रमण 1191 इसमें किया इससे इतिहास में तराइन के प्रथम युद्ध के नाम से जाना जाता है.
साम्राज्य विस्तार
गजनी का शासक बनने के बाद मोहम्मद गौरी अपने साम्राज्य का अधिक से अधिक विस्तार करना चाहता था. वह एक महत्वकांक्षी सम्राट था. वह हरियाणा के अधिकतर भाग पर अधिकार करना चाहता था. इस प्रकार मोहम्मद गौरी किस साम्राज्य विस्तार की इच्छा Tarain Ka Pratham Yuddh का कारण बना. डॉ० ए.एल श्रीवास्तव ने लिखा है कि सभी महत्वकांक्षी शासको की तरह गौरी भी बृहत साम्राज्य का निर्माण करके धन और सम्मान प्राप्त करना चाहता था.
राजनीतिक स्थिति
इस समय उत्तर भारत छोटे-छोटे क्षेत्रीय राज्यों में बंटा हुआ था. भारत की राजनीतिक स्थिति कमजोर थी राजनीतिक एकता का अभाव था. कोई मजबूत केंद्रीय शक्ति नहीं थी जो विभिन्न राज्यों पर नियंत्रण रख सके ये छोटे-छोटे राज्य आपस में लड़ते रहते थे. एक दूसरे से ईर्ष्या करते थे. कमजोर राजनीतिक स्थिति से प्रेरित होकर मोहम्मद गौरी ने आक्रमण किया.
इस्लाम का प्रसार
मोहम्मद गौरी कट्टर सुन्नी मुसलमान था. वह इस्लाम का ज्यादा से ज्यादा प्रसार करना चाहता था इसलिए उसने भारत पर अनेक व कई बार आक्रमण किए.
तत्कालीन कारण
ताबरहिन्द नामक स्थान का विवाद इस लड़ाई का कारण बना. इस पर पृथ्वीराज तृतीय का अधिकार था. सन 1189 ईस्वी में मोहम्मद गौरी ने इस आक्रमण करके इस पर अधिकार कर लिया जो Tarain Ka Pratham Yuddh का तत्कालीन कारण बना.
भारत की धन सम्पदा
भारत एक धनी देश था इसे सोने की चिड़िया कहा जाता था. मोहम्मद गौरी भारत की धन सम्पदा के बारे में सुन रखा था. हरियाणा का क्षेत्र भी आर्थिक दृष्टि से सम्पन था. मुहम्मद गौरी इन धन सम्पदा को प्राप्त करना चाहता था जिससे गजनी में अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत करना चाहता था. इसलिए उसने आक्रमण की थी.
तराइन का प्रथम युद्ध के लड़ाई के परिणाम व प्रभाव
फ्रेंड इस लेख में यह पढ़ेंगे की Tarain Ka Pratham Yuddh के परिणाम क्या-क्या है और उसका प्रभाव के बारे में जानेंगे जो आपके परीक्षा के लिए अति महत्वपूर्ण है जो आपके एग्जाम में अनेको बार पूछा गया है यह प्रश्न तो चलिए इस लेख को पढ़ते है.
1. इस लड़ाई में पृथ्वीराज चौहान की जीत से उसकी शक्ति की धाक जम गई दूर-दूर तक उसके जयकारे लगने लगे. इस विजय में उसे राजपूत शासकों का सर्वेसर्वा बना दिया था.
2. इस विजय के फलस्वरूप राजपूत सेना की वीरता तथा साहस का लोहा अन्य शासक मानने लगे. गोविन्द राय जैसे महान सेनापति की चर्चा होने लगी.
3. इस वीडियो से चौहान शासक के सम्राट के विस्तार की संभावनाएं बढ़ गई थी
4. इस विजय से कुछ राजपूत शासक पृथ्वीराज तृतीय से ईर्ष्या करने लगे उसकी बढ़ती शक्ति को अपने लिए खतरा मानने लगे.
5. तराइन के प्रथम युद्ध में मोहम्मद गौरी की पराजय से उसकी प्रतिष्ठान को धक्का लगा.
6. मोहम्मद गौरी भारत में साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था. परंतु इस हार ने उसके सामने को चकनाचूर कर दिया.
FAQ (तराइन का प्रथम युद्ध (1991 ई०) से सम्बन्धित कुछ सवालो का जवाब)
प्रिय स्टूडेंट अब इस लेख में आपके द्वारा पूछे गए सवालों का जवाब देखेंगे जो Tarain Ka Pratham Yuddh से सम्बन्धित इस पर भी कुछ प्रश्नों का जवाब देखेंगे तो यह रहा आपके द्वारा पूछे गए सावल के जवाब.
- तराइन का प्रथम युद्ध कब और कहां हुआ?
- तराइन के प्रथम युद्ध में कौन विजय हुआ था?
- तराइन का युद्ध कब हुआ था और किसके बीच हुआ था?
- तराइन का प्रथम व द्वितीय युद्ध कब हुआ?
तराइन का प्रथम युद्ध कब और कहां हुआ?
तराईन का प्रथम युद्ध हुआ था. सन 1191 ई० यह युद्ध हुआ जो तराइन के भूमि पर युद्ध हुआ था.
तराइन के प्रथम युद्ध में कौन विजय हुआ था?
तराइन का प्रथम युद्ध मोहम्मद गौरी तथा पृथ्वीराज चौहान के बीच हुआ था. जिसमे Tarain Ka Pratham Yuddh में पृथ्वीराज चौहान की जीत होती है.
तराइन का युद्ध कब हुआ था और किसके बीच हुआ था?
यह युद्ध सन 1191 ईस्वी को हुआ था जो मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान के मध्य यह युद्ध लड़ा गया था.
तराइन का प्रथम व द्वितीय युद्ध कब हुआ?
तराइन का प्रथम युद्ध 1191 ई० को हुआ और इसका दुसरा युद्ध 1192 ईस्वी को हुआ था.
निष्कर्ष
प्रिय स्टूडेंट Tarain Ka Pratham Yuddh के बारे में आपको पूरा यानि की इस युद्ध का इतिहास के बारे में बताया गया है. वह भी सबसे आसान भाषा में. अब इस लेख में आपको Tarain Ka Pratham Yuddh के बारे में निष्कर्ष जान लेते है.
तराइन का युद्ध एक ऐसा ऐतिहासिक युद्ध था, जिसने पूरे उत्तर भारत को मुस्लिम शासकों के झोली में डाल दिया. यह युद्ध मोहम्मद गोरी और दिल्ली व अजमेर (अजमेरु) के चौहान वंश के शासक पृथ्वी राज तृतीय के बीच लड़ा गया. यह Tarain Ka Pratham Yuddh सन 1191 ईस्वी को युद्ध क्षेत्र भारत के वर्तमान राज्य हरियाणा के कसाल जिले में करनाल और थानेश्वर (कुरुक्षेत्र) के बीच था. जो दिल्ली से 113 किमी उत्तर में स्थित है.