दोस्तों इस लेख में हम Haldighati Ka Yuddh के बारे में पढ़ने वाले है. हल्दीघाटी उसके बारे में जो-जो इंपॉर्टेंट है. और जो-जो एग्जाम में पूछा जाता है इस लेख में सब कुछ कवर करने वाले हैं. हल्दीघाटी युद्ध का इतिहास. इस लेख में Haldighati Ka Yuddh के बारे में पूरा विस्तार से पढेंगे इस लेख को पढ़ने से पहले यह बता दे कि.
इसके पहले वाले लेख में हमने बता चुका हूँ कि पानीपत का प्रथम युद्ध और द्वितीय युद्ध व तृतीय युद्ध के बारे में वह भी पूरा विस्तार से उसके बारे में बता चुका हूं और अब बताने जा रहा हु हल्दीघाटी युद्ध के बारे में जो यह युद्ध महाराणा प्रताप और अकबर के बीच लड़ा गया. इससे पहले यह बता दे की. महाराणा उदय सिंह के बारे में.
- महाराणा सांगा का पुत्र उदय सिंह
- तीन बीवियों से एक-एक पुत्र (महाराणा प्रताप, शक्ति सिंह और उदय सिंह)
- महाराणा प्रताप : पिता उदय सिंह व माता रानी जयवन्ताबाई
- महाराणा प्रताप सिंह मेवाड़ के प्रमुख शासक उदय सिंह के पुत्र थे.
- मेवाड़ इस समय एक बड़ी एवं शक्तिशाली रियासत थी.
- उदय सिंह ने अपनी मृत्यु के पहले अपने तीनों पुत्रों शक्ति सिंह, महाराणा, प्रताप तथा जगमल सिंह में से छोटे पुत्र जगमल सिंह को मेवाड़ का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया.
- महाराणा प्रताप, शक्ति सिंह और जगमल सिंह तीनों सगे भाई थे किंतु इन तीनों की मातायें अलग थी.
Haldighati Ka Yuddh Kab Hua – हल्दीघाटी युद्ध का घटनाक्रम-
प्रिय स्टूडेंट अब इस लेख में आपको Haldighati Ka Yuddh Kab Hua था और किसके बिच मध्य लड़ा गया था. अगर अपनी नजरे इतिहास के पन्नों पर दौड़ाएंगे तो आपको यह मालूम हो जाएगा कि भारतीय भूमि में अब तक कई युद्ध देखे इनमे से कुछ युद्ध बाहरी आक्रांताओ को खदेड़ने के लिए लड़े गए थे. कुछ साम्राज्य विस्तार के लिए और कुछ मातृभूमि रक्षा के लिए लड़े गए. इनमे से एक युद्ध ऐसा था. जो अपनी आन बान शान और अपनी आत्म सम्मान को पचाने के लिए लड़ा गया था. इस युद्ध का नाम है. हल्दीघाटी युद्ध.
18 जून 1576 को Haldighati Ka Yuddh का युद्ध हुआ है
गोपीनाथ शर्मा के अनुसार हल्दीघाटी का युद्ध 21 जून 1576 को हुआ सर्वप्रथम इसे ‘हल्दीघाटी नाम कर्नल जेम्स टॉड ने दिया
राजस्थान/मेवाड़ की थर्मोपल्ली (हल्दीघाटी का युद्ध) गोगुंदा का युद्ध – बदायूनी पुस्तक मुंतखब उत त्वारिख – बादशाह बाग का युद्ध – A.L श्रीवास्तव
खमनोर का युद्ध – अबुल फजल
मुहणोत नैंसी के अनुसार महाराणा प्रताप के पास 9-10 हजार सेना है वही मानसिंह के पास 40 हजार सेना है.
वीर विनोद के लेखक कवि श्यामलदास के अनुसार महाराणा प्रताप
के पास 20 हजार सेना है वही मानसिंह के पास 80 हजार सेना है.
हल्दी घाटी कहां पर है और क्यों प्रसिद्ध है
आपको अब Haldighati Ka Yuddh के कुछ पॉइंट जान लेना चाहिए तो अब इस लेख में Haldighati Ka Yuddh के महत्वपूर्ण पॉइंट को देखते है. Haldighati Ka Yudh कब हुआ और किसके बिच हुआ था.
- कब : 18 जून, 1576
- किसके बीच : महाराणा प्रताप और अकबर के सेनापति मानसिंह के बिच
- युद्ध का कारणः अकबर की साम्राज्य विस्तार की नीति
- कहां: हल्दी घाटी (राजस्थान में अरावली पर्वतमाला के क्षेत्र में)
- परिणाम : अनिर्णायक
- हल्दीघाटी राजस्थान के राजसमंद जिले में स्थित है.
- हल्दीघाटी अरावली पर्वतमाला में खमनोर एवं बलीचा गांव के मध्य एक
- पहाडी दर्रा पर है.
- इसका नाम ‘हल्दीघाटी’ इसलिए पड़ा क्योंकि यहाँ की मिट्टी हल्दी जैसी पीली है.
हल्दीघाटी का युद्ध के पृष्ठभूमि –
अब देखते है Haldighati Ka Yuddh के पृष्ठभूमि जो यह भी बहुत महत्वपूर्ण है जो आपको जान लेना चाहिए तो अब इसी पर बात कारने वाले है. Haldighati Ka Yuddh के पृष्ठभूमि
- दरअसल, अकबर ने अपने शासन काल में मुगल साम्राज्य के विस्तार की नीति को अपनाया. इस हेतु अकबर ने कूटनीति तथा युद्धनीति दोनों ही प्रकार की रणनीतियों का सहारा लिया.
- कूटनीति के अंतर्गत अकबर ने भारत, विशेषकर राजस्थान के राजपूत शासकों को बड़ी जागीरें देकर अथवा वैवाहिक संबंध स्थापित कर मुगल साम्राज्य के अंतर्गत समाविष्ट कर लिया था किंतु इस समय राजस्थान में मेवाड़ एक ऐसी बड़ी रियासत थी, जिसने अकबर की अधीनता को स्वीकार नहीं किया मेवाड़ का प्रमुख केंद्र चित्तौड़ था और महाराणा प्रताप यहीं के शासक थे.
- यहां यह उल्लेखनीय है कि उदय सिंह के काल में अकबर ने चित्तौड़ पर आक्रमण कर उसके एक हिस्से पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया था और उदय सिंह चित्तौड़ से आकर वर्तमान के उदयपुर में रहने लगे. उदयपुर में ही महाराणा प्रताप का जन्म हुआ.
मेवाड़ की आंतरिक राजनीतिक कलह
Haldighati Ka Yuddh के मेवाड़ की आंतरिक राजनीतिक कलह देखेंगे इस लेख में मेवाड़ मैंने जैसे आपको बताया उदय सिंह और उनकी तीन पत्नियां और जगमल सिंह को उत्तराधिकारी घोषित किया लेकिन वह योग्य नहीं थे. महाराणा प्रताप योग थे. वहां के सेना सैनिक अधिकारियों और जनता ने महाराणा प्रताप को उत्तराधिकारी बनाया.
- जगमल सिंह मूलतः एक क्रूर, अयोग्य एवं भोग-विलासी प्रवृत्ति का शासक था.
- इसी कारण मेवाड़ के सामंतों ने स्थानीय जनता के समर्थन से महाराणा प्रताप को चित्तौड़ का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया.
- इस समय महाराणा प्रताप उदयपुर में थे और यहीं से बाद में शासन संचालित करने लगे.
- वहीं, दूसरी तरफ जगमल ने अपने शासन को महाराणा प्रताप से बचाने के लिए अकबर की शरण लेना उचित समझा तथा वह अकबर से मिल गया अर्थात् जगमल सिंह ने एक प्रकार से मुगल शासन की अधीनता स्वीकार कर ली.
इसे भी पढ़े: पानीपत का तृतीय युद्ध
अकबर और चित्तौड़
Haldighati Ka Yuddh के अकबर और चित्तौड़ के बारे में जान लेते है अछे से.
- अकबर भी समझता था कि चित्तौड़ पर पूरी तरह नियंत्रण पाने के लिए अकबर को अपने पक्ष में करना आवश्यक है, क्योंकि अकबर जानता था कि प्रताप वास्तविक रूप से अब महाराणा प्रताप ही चित्तौड़ के शासक हैं.
- इसी क्रम ने अकबर ने महाराणा प्रताप से वार्ता करने तथा मुगल अधीनता को स्वीकार करने के परिप्रेक्ष्य से कई शिष्टमंडल महाराणा प्रताप के पास भेजे.
- महाराणा प्रताप ने प्रत्येक बार ( मुगल साम्राज्य) की अधीनता स्वीकार करने से मना कर दिया। इन परिस्थितियों में युद्ध होना अनिवार्य हो गया था.
- इसके अलावा दक्षिण भारत की ओर साम्राज्य विस्तार करने की अकबर की महत्वाकांक्षा ने भी युद्ध को अनिवार्य कर दिया था.
- क्योंकि वह दक्षिण भारत की ओर कूच करने से पहले उत्तरी भारत को पूरी तरह से मुगल साम्राज्य के अंतर्गत शामिल करना चाहता था.
Haldighati Ka Yuddh Kiske Bich Hua – मुगल सेना बनाम राजपूत सेना
भारतीय इतिहास में से यह युद्ध महत्वपूर्ण युद्ध माना जाता है. Haldighati Ka Yuddh किसके बीच हुआ था. इस लेख में पूरा विस्तार से जानने की कोशिश करेंगे यह Haldighati Ka Yuddh मुगल सेना बनाम राजपूत सेना पढने वाले है.
- 18 जून, 1576 को दोनों सेनाओं के बीच Haldighati Ka Yuddh में युद्ध प्रारंभ हो जाता है. यह भारतीय इतिहास के सबसे छोटा युद्धों में से एक था जो लगभग 4 से 6 घंटे तक चला. हल्दी घाटी के युद्ध में अकबर ने स्वयं भाग नहीं लिया बल्कि अकबर की सेना का नेतृत्व मानसिंह द्वारा किया गया.
- उल्लेखनीय है कि इस युद्ध में अकबर ने आसफ खां नामक एक अन्य अस्थायी सेनापति भी नियुक्त किया था. जबकि मुगल सेना को यह भय था कि राजपूत होने के कारण मानसिंह और महाराणा प्रताप के साथ ना मिल जाए. मुगल सेना में बदायूनी नामक व्यक्ति ने बाद में हल्दीघाटी के युद्ध का सजीव वर्णन किया.
- वहीं, राजपूत सेना की ओर से स्वयं महाराणा प्रताप, सेनापति झाला मान, झाला बीदा, हाकिम खां सूरी तथा भीलों के लगभग 400 योद्धा भी शामिल थे.
- उल्लेखनीय है कि इस युद्ध में अफगानों ने (हाकिम खां सूरी) महाराणा प्रताप का साथ दिया, क्योंकि दिल्ली सल्तनत काल के अंतिम शासक इब्राहिम लोदी जोकि स्वयं एक अफगान थे, मुगल शासक बाबर ने युद्ध में पराजित किया था.
- हल्दीघाटी के युद्ध में राजपूत और मुगल सेना का अनुपात 1: 4 था अर्थात् मुगल सेना राजपूत सेना की तुलना में लगभग 4 गुना अधिक थी हालांकि सैनिकों की संख्या के बारे में कोई सटीक एवं एकल जानकारी प्राप्त नहीं होती है.
- प्रारंभ में राजपूत सेना संख्या में कम होने के बावजूद मुगल सेना पर भारी पड़ी क्योंकि मुगल सेना मैदानी भाग की तरफ से युद्ध कर रही थी जबकी राजपूत सेना हल्दीघाटी के पर्वतीय क्षेत्र से आक्रमण कर रही थी. युद्ध प्रारंभ होने के कुछ ही समय बाद मानसिंह को आभास हो गया की इस प्रकार युद्ध में महाराणा प्रताप की सेना से जीतना कठिन है.
- अतः मानसिंह ने अपनी सेना को पीछे हटाना प्रारंभ कर दिया ताकि राजपूत सेना मैदान भाग में आकर युद्ध कर सके मानसिंह की यह योजना सफल रही तथा राजपूत सेना उत्साह के साथ पर्वतीय क्षेत्र से बाहर आकर युद्ध करने लगे राजपूत सेना की वीरता को देखकर मुगल सेना अपनी विजय को लेकर आशंकित हो गई.
- लेकिन इसी दौरान मुगल सेना में (मिहतर खां नामक व्यक्ति ने अफवाह फैला दी कि एक विशाल सेना के साथ अकबर स्वयं इस युद्ध में भाग लेने आ रहे हैं इससे मुगल सेना में उत्साह का संचार हो गया.
- दूसरी तरफ, महाराणा प्रताप इस बात से भलीभांति परिचित थे कि मुगल की विशाल सेना के सामने अधिक समय तक युद्ध करना राजपूत सेना के लिए नकारात्मक परिणाम देने वाला हो सकता है. अतः महाराणा प्रताप ने मुगल सेना के सेनापति मानसिंह, जो कि मुगल सेन के केंद्र में थे, को मारने की योजना बनाई.
- महाराणा प्रताप अपने चेतक घोड़े पर सवार होकर मुगल सेना के चक्रव्यूह को तोड़ते हुए हाथी पर सवार मानसिंह पर अपने भाले से आक्रमण कर दिया किंतु मानसिंह इस हमले से बच गए इसी दौरान मुगल सेना ने महाराणा प्रताप की घेराबंदी शुरू कर दी. इस समय राजपूत सेनापति झाला मान ने महाराणा प्रताप से युद्धभूमि से दूर जाने का अनुरोध किया ताकि भविष्य में भी मुगलों के विरूद्ध इस संघर्ष को निरंतर रखा जा सके.
- अंततः महाराणा प्रताप ने अनुरोध स्वीकार करते हुए अपना मुकुट झाला मान को अपना मुकुट सौंप दिया ताकि मुगल सेना को भ्रम में डाला जा सके यह नीति सफल रही और महाराणा प्रताप युद्ध भूमि से दूर चले गए और झाला मान ने अपने प्राणों की आहुति दे दी.
- मुगल सेना द्वारा महाराणा प्रताप का पीछा गया किंतु चेतक द्वारा लगभग 20 फीट से अधिक नाले को पार करने के कारण महाराणा प्रताप सुरक्षित युद्धभूमि से बाहर जंगली क्षेत्र में चले गए इसी दौरान चेतक की मृत्यु हो गई.
- अब महाराणा प्रताप के पास न तो सेना थी और न पर्याप्त मात्रा में धन था कि वह मुगलों के विरूद्ध संघर्ष को निरंतर रख सके इसी समय भामाशाह नामक एक धनी राजपूत ने अपनी सारी संपत्ति महाराणा प्रताप को भेंट कर दी ताकि वह राजपूताना की प्रतिष्ठा के लिए संघर्ष को निरंतर रख सके इतिहासकारों का मत है कि दानवीर कर्ण के बाद भामाशाह दानवीरों की श्रेणी में दूसरे स्थान पर आते हैं.
- उल्लेखनीय है कि इस समय महाराणा प्रताप ने शपथ ली कि जब तक वह मेवाड़ को पूरी तरह मुगलों से स्वतंत्र नहीं करवा लेते, तब तक वह स्थायी निवास नहीं करेंगे और न ही शाही जीवन व्यतीत करेंगे वर्तमान में भी राजस्थान में महाराणा प्रताप के वंशज इसी प्रकार का घुम्मकड़ जीवन व्यतीत करते हैं.
- महाराणा प्रताप की देहांत 19 जनवरी 1597 ई० को हो गया. किंतु अपनी मृत्यु से पहले तक महाराणा प्रताप ने मुगलों के विरूद्ध संघर्ष को निरंतर जारी रखा महाराणा प्रताप का नाम इतिहास में इसलिए विशेष है कि इन्होंने मुगलों की अधीनता विपरीत परिस्थितियों के बावजूद मुगलों की अधीनता स्वीकार नहीं की तथा अपनी स्वतंत्रता के लिए निरंतर संघर्ष किया.
Haldighati Ka Yuddh – के असफलता के कारण बताइए
तोस्तो अब इस लेख में यह देखेंगे की Haldighati Ka Yuddh के असफलता के कारण तो चलिए जान लेते है कौन-कौन कारण है.
- महाराणा प्रताप के असफलता के कारण
- मुगल सेना के असफलता के कारण
महाराणा प्रताप के असफलता के कारण
- सेना की छोटी संख्या
- शस्त्रों की कमी
- तत्कालीन राजपूत शासकों द्वारा मदद नहीं+
मुगल सेना के असफलता के कारण
- राजपूत सेना का युद्ध कौशल तथा
- महाराणा प्रताप का व्यक्तित्व
- अरावली की पर्वतीय परिस्थितियां
Maharana Pratap Ka Jivan Parichay –
तोस्तो Haldighati Ka Yuddh के बारे में जान चुके है अब तो चलिए यह भी जान लेते है की महाराणा प्रताप के बारे में कुछ उनके बारे में उनका जन्म से लेकर अब तक इस लेख को पढना शुरू करते है.
महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 ई. को कुम्भलगढ़ किले में हुआ था. वे मेवाड़ के महाराणा उदय सिंह के ज्येष्ठ पुत्र थे। आपका राज्यारोहण 1572 ई. में हुआ। आपने 18 जून 1576 ई. में मुगल बादशाह अकबर की फौजों से रक्ततलाई Haldighati Ka Yuddh में वीरता एवं साहस से लोहा लिया. इसी युद्ध में स्वामी भक्त घोड़े चेतक ने प्राणोत्सर्ग कर महाराणा का जीवन बचाया.
महाराणा प्रताप ने मुगलों के खिलाफ छापामार रणनीति अपनाई तथा चावण्ड को 1585 ई. में अपनी तीसरी राजधानी बनाई. महाराणा प्रताप का देहावसान 1597 में चावण्ड में होने पर महाराणा के प्रबल दुश्मन मुगल बादशाह अकबर की आँखे भी भर आई थी.
FAQ (Haldighati Ka Yuddh से सम्बन्धित कुछ सवालो का जवाब )
अब आपके द्वारा पूछे गए सवाल और उनका जवाब जान लेते है जो की यह भी बहुत महत्वपूर्ण
हल्दीघाटी का युद्ध कब और किस किस के बीच हुआ?
Haldighati Ka Yuddh का युद्ध 18 जून 1576 ई० को महाराणा प्रताप सिंह और दुसरे तरफ से अकबर की सेना में भयंकर युद्ध हो गई थी.
हल्दीघाटी का युद्ध कितने दिनों तक चला?
बता दे कि हल्दीघाटी का युद्ध कितने दिनों तक चला था. यह युद्ध केवल 4 घंटा ही चला इसमें जो मुगलों की सेना थी. उस पर राजपूतों की सीना भारी पड़ रही थी.
हल्दी घाटी कहां पर है और क्यों प्रसिद्ध है?
एक ऐसा ही चर्चित युद्ध था हल्दीघाटी का युद्ध कहा जाता है. राजस्थान ही नहीं बल्कि यह पूरे भारत का इतिहास का एक महत्वपूर्ण युद्ध था. यह युद्ध इस लिए प्रसिद्ध है क्योंकि यह पूरा भारत के कई युद्धों में से एक माना जाता है. यह युद्ध राजस्थान में हुआ है.
हल्दीघाटी युद्ध का निष्कर्ष
अब इस लेख में आपको Haldighati Ka Yuddh के बारे में निष्कर्ष देखेंगे हल्दी घाटी युद्ध में घटित घटनाओ के बारे में थोड़ा सा कुछ बाते जान लेते है. इस युद्ध में हमने देखा की यह युद्ध बहुत भयंकार मणि जाती है. यह युद्ध महाराणा प्रताप व अकबर के बिच हुआ जो 18 जून 1576 ई० को हुआ था. गोपीनाथ शर्मा के अनुसार- यह युद्ध 21 जून को मानी जाती है.