प्रिय स्टूडेंट इस लेख में हम लोग मध्यकालीन इतिहास के अंतर्गत Sikandar Lodi Ki Uplabdhiyan को पढ़ने वाले हैं. इतिहास के मोस्ट इंपोर्टेंट टॉपिक लोदी वंश के अंतर्गत सिकंदर लोदी की उपलब्धियों के बारे में इससे संबंधित कई प्रश्न बन जाते हैं जैसे मैं इनके निम्न टॉपिक है.
- सबसे योग्य व सबसे ताकत शासक
- सिकन्दर लोदी की कठनाई
- सिकन्दर की गृह नीति व विद्रहियों का दमन
- बारबक शाह से सम्बध
- अफगान अमीरों के साथ सम्बन्ध
- सिकन्दर लोदी के कई सुधार हुए
- सिकन्दर लोदी की विदेश नीति
- बिहार की विजय
- बंगाल के साथ सम्बन्ध
- मध्य भारत की विजय
- अंत में क्या पढ़ा
सिकंदर लोदी का इतिहास क्या है- Sikandar Lodi Ki Uplabdhiyan Ka Varnan Karen
प्रिय स्टूडेंट अब इस लेख में मध्यकालीन इतिहास के अन्तर्गत Sikandar Lodi Ki Uplabdhiyan के बारे में पढने जा रहे है जो अति महत्वपूर्ण है आपके एग्जाम के लिए Sikandar Lodi Ki Uplabdhiyan निम्नलिखित है.
सबसे योग्य व सबसे ताकत शासक
सबसे योग्य व सबसे ताकत शासक :- सिकन्दर लोदी Sikandar Lodi Ki Uplabdhiyan वंश का सबसे योग्य व सबसे ताकत शासक था और तत्कालीन एवं आधुनिक दोनों ही इतिहासकारों ने सिकन्दर लोदी की प्रशंसा यानि की खूब तारीफ की है. उसने बहलोल लोदी के अधूरे कार्यो व सपनों को पूरा किया है. ताकि लोदी वंश की नीव पर एक सबसे बड़ी इमारत खड़ी की है.
उसमें शासकीय गुणों की कोई कमी नहीं थी. वह कला कौशल एवं विद्वानों का प्रश्रयदाता भी था और वह जनहित के बहुत से कार्यो में भी रूचि रखता था परन्तु उसकी धर्मिक असहिष्णुता की नीति की कटु आलोचना की जाती है. जो Sikandar Lodi Ki Uplabdhiyan भी है.
सिकन्दर लोदी की कठनाई
सिकन्दर लोदी की कठनाई :- सिकन्दर लोदी की कठनाई यह नए सुल्तान के समक्ष कई कठिनाइयाँ भी थी. जिनका समाधान आवश्यक यह था की बिना इनको दूर किये हुए उसकी स्थितिया सुरक्षित नहीं की जा सकती थी. उसकी सबसे बड़ी समस्या या कठनाई यह है कि वह अपने आपको राजपद के उपयुक्त साबित कर सकता है. उसके निर्वाचन के समय ही उस पर यह सबसे बड़ा आरोप लगाया गया था.
लोदी Sikandar Lodi Ki Uplabdhiyan यह है कि वह एक सोनारिन का पुत्र है. इस लिए उन्हें यह आरोप लगाया गया की वह एक सच्चा मुसलमान नहीं है. व उसमें राजकीय योग्यता को साबित कर के और इसी भावना को पुष्ट करने के लिए उसने धार्मिक असहिष्णुता अपनायी शासक के गादी पर बैठा गया था. अफगान सरदारो के दिल से यह भावना निकालकर अपनी श्रेष्ठता साबित कर दि थी.
सिकन्दर की गृह नीति व विद्रहियों का दमन
सिकन्दर की गृह नीति व विद्रहियों का दमन:- सिकन्दर लोदी जो थे उन्होंने अपनी ही स्थिति को मजबूत करने के लिए सबसे पहले वह अपने सिंहासन के लिए प्रतिद्वंद्वियों एवं विरोधी अफगान सरदारों से निबटने का फैसला कर लिया था. इसके लिए उसने अपने साम्राज्य का दौरा प्रारम्भ किया. वह सबसे पहले उसने अपने ही चाचा खां की तरफ ध्यान देना शुरु कर दिया था और वह भी इस सुल्तान का पद प्राप्त करने का भी इच्छुक था. Sikandar Lodi Ki Uplabdhiyan व इस उद्देश्य से रापड़ी पर भी आक्रमण यानि की हमला कर दिया.
आलमखां वहां से पराजित होकर भाग गया और उसने ईसा खां के पास जाकर शरण ले ली थी. ईसा खां तो शुरु से ही सिकन्दर लोदी की सुल्तान बनाये जाने का भी विरोध कर रहा था वह नही चाहता था की वह कभी भी सिकन्दर लोदी को सुल्तान बने और वह इस लिए विरोध कर रहा था. उसने आलम खां को भव्य स्वागत किया गया. इन दोनों के आपस में मिल जाने से सिकन्दर की स्थिति ख़राब यानि की नाजुक हो चली जा रही थी.
अतः सिकन्दर लोदी ने भी एक कूटनीतिकया चाल चल दि और इसके बाद आलम खां को क्षमा प्रदान कर के इटावा का सूबेदार बहाल कर दिया गया था. अब उसके बाद से ईसा खां अकेला पड़ गया और सुल्तान ने उस पर हमला कर दिया. इस युद्ध में वह बहुत बुरी तरह से घायल और पराजित होने के बाद तुरंत उसकी तत्काल ही देहान्त हो गयी और उसकी मृत्यु के बाद शम्साबाद की जागीर राजा गणेश को दे दी गयी थी. यह भी Sikandar Lodi Ki Uplabdhiyan थी.
बारबक शाह से सम्बध
बारबक शाह से सम्बध:- यह भी Sikandar Lodi Ki Uplabdhiyan थी जो इस नए सुल्तान का सबसे बड़ा व प्रतिद्वन्दी बारबक शाह ही था. जिसे बहलोल लोदी ने ही जौनपुर का शासक घोषित नियुक्त किया है और राज्यारोहण के इस समय सिकन्दरशाह का सबसे बड़ा प्रतिद्वन्द्वी वही ही था. अतः उस पर ध्यान देने की आवश्यक थी की वह स्वतंत्र शासक की हैसियत से ही शासन करता आ रहा था.
सिकन्दर लोदी ने यह चाहता था की वह बारबक शाह दिल्ली के प्रतिनिधि के रूप में शासन करे और स्वतंत्र तौर पर नहीं करे इसके लिए उसने ही पहले बारबक को समझाने की कोशिश की परन्तु बारबक पर इसका कोई भी असर नहीं नही पड़ा रहा था. संभवतः वह हुसैन शाह के षडयंत्र का शिकार होने के बाद ही दोनों भाइयों को आपस में लड़वाकर फिर से अपना अधिकार जौनपुर पर कायम करना चाहता था.
अतः बाध्य होकर सिकन्दर ने ही बारबक शाह पर भी हमला कर दिया और पराजित होकर वहां से बारबक शाह बदायूं की तरफ भाग खड़ा हुआ व शाही सेना ने वहां पर भी उसका बहुत पिछा किया. इस Sikandar Lodi Ki Uplabdhiyan यह परन्तु फलस्वरूप उसने आत्म समर्पण आखिर ही कर दिया. बारबक को एक बार फिर से वहां का जौनपुर का शासक नियुक्त कर दिया गया था.
उसके बाद से जौनपुर को कई जागीरों में विभक्त कर ही दिया गया. वहां सिकन्दर के विश्वासपात्र अनुयायी नियुक्त किये गये थे परन्तु यह व्यवस्था बहुत कारगर साबित नहीं हो सकी थी. हुसैन शाह ने किसी न किसी प्रकार अपना खोया राज्य हर हाल में प्राप्त करना चाहता था. इसलिए उसने वहां के जितने हिन्दू जमीदारों को विद्रोह के लिए उकसाया इसे बारबक शाह इसे दबाने में असमर्थ ही रहा वह राजधानी ही छोड़कर भाग गया एवं लखनऊ के पास दरियाबाद में उसने जाकर शरण ले ली कुछ वर्षो के भीतर ही अपने सारे प्रतिद्वंद्वियों की शक्तियों को सिकन्दर ने आखिर कुचल ही दिया था. यह रहा Sikandar Lodi Ki Uplabdhiyan जो अति इम्पोर्टेंट है.
अफगान अमीरों के साथ सम्बन्ध
अफगान अमीरों के साथ सम्बन्ध:- सिकन्दर लोदी Sikandar Lodi Ki Uplabdhiyan की दूसरी कठनाई विभिन्न अफगान सरदारों को नियंत्रित करने की थी. की अफगान स्वभाव से ही उदंड एवं अभिमानी होते थे और एक सहज ही अपने ऊपर किसी का नियंत्रण स्वीकार नहीं करते थे. बहलोल लोदी ने उनके स्वाभिमान की रक्षाकर उन्हें अपना समर्थक बना लिया था. इसके लिए उसे अपने ही राजकीय शक्तियों से भी समझौता करना पड़ा था.
परन्तु बहलोल लोदी के उत्तराधिकारी ने अफगान सरदारों के समक्ष घुटने नहीं टेके बल्कि आवश्यकता पड़ने पर कठोर नीति का सहारा लेकर भी अफगानों को अपने नियंत्रण में काबु रखा था. अफगानों के प्रति उसकी नीति दृढ़ता एवं उदारता का सम्मिश्रण प्रस्तुत करती है.
यह उसने अपने अफगान सरदारों के बीच आकर्षक पदवियों का वितरण भी किया जैसे खान ए जहाँ खान ए खाना इत्यादि थे. इन उपाधियों से फर्मुली लोदी तथा नूहानी अमीरो को सम्मानित भी किया गया था. सुल्तान ने अमीरों की अहंकारी भावना कातुष्ट करने के लिए उनसे मेल मिलाप रखता था. उनके साथ वह खेलों शिकारों एवं अन्य सामाजिक उत्सवों में शरीक होता इन अमीरों के भरण- पोषण के लिए भी जागीरें भी प्रदान की गयी थी. इस प्रकार अफगान सरदारों को प्रसन्न रखने का प्रबन्ध किया गया था. सिकन्दर लोदी की Sikandar Lodi Ki Uplabdhiyan यह भी थी.
सिकन्दर लोदी के कई सुधार हुए
सिकन्दर लोदी के कई सुधार हुए:- राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था सुधारने के लिए सिकन्दर लोदी ने कई महत्वपूर्ण अनेको उन्होंने कार्य किये है. उसने न्याय की समुचित व्यवस्था भी किया वह स्वयं न्याय प्रबंध में गहरी अभिरूचि रखता था और न्यायिक मामलों में उलेमा की भी सहायता भी लेता था. यद्यपि कि वह स्वयं ही न्यायिक व्यवस्था प्रधान भी था. अपनी राज्य की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए उसने जमीन की माप करवायी एवं उपज के अनुसार लगान तय किया गया था.
जमीन की उचित नाप के लिए उसने 30 ईच लम्बे गज की व्यवस्था की जो आगे चलकर सिकन्दरी गज के नाम से विख्यात हुई थी. अनाज पर से चुंगी हटा ली गयी थी और इसके चलते अनाज काफी सस्ते हो गये एवं जनता को कष्ट नहीं उठाना पड़ा यह रही Sikandar Lodi Ki Uplabdhiyan जो लोदी के कई सुधार हुए है.
सिकन्दर लोदी की विदेश नीति
सिकन्दर लोदी की विदेश नीतिः- आन्तरिक व्यवस्था सुदृढ़ करने के पश्चात् सिकन्दर लोदी ने भी दिल्ली सल्तनत के पुराने क्षेत्रों को फिर से अपने नियंत्रण में लेने का प्रयास किया था. परन्तु इस प्रयास में वह कुछ हद तक कमयाब भी रहा था. उसने बिहार एवं मध्य भारत के कुछ जगहों पर भी विजय हासिल कर ही लिया था. लेकिन उसने अपने प्रयत्नों में उसे ज्यादा सफलता हासिल नहीं हो सका था. कुछ यह भी Sikandar Lodi Ki Uplabdhiyan थी.
बिहार की विजय
बिहार की विजय:- बिहार प्रारम्भ में दिल्ली सल्तनत के ही अन्तर्गत आता था. जो बख्तियार खिलजी ने इस पर अधिकार कर लिया था परन्तु बाद में इस पर बंगाल के शासक ने अपना अधिकार जमा लिया था. लेकिन सिकन्दर लोदी के समय में बिहार और जौनपुर के शर्की सुल्तान (अपदस्थ) हुसैन शाह का कार्य क्षेत्र बना हुआ था. वह वहां रहकर अपनी शक्ति का विस्तार कर रहा था. इनकी शक्ति को कुचलने के लिए सिकन्दर ने फाफामऊ के भील राजा पर जो विद्रोही जमींदारो का नेता था उस पर आक्रमण कर दिया.
परिणामस्वरूप हुसैनशाह एक बड़ी सेना के साथ जौनपुर की तरफ बढ़ा मार्ग में ही बनारस के एक निकट सिकन्दर लोदी और हुसैन शाह के बिच मुठभेड़ हुआ और हुसैन शाह भागकर बंगाल चला गया. सिकन्दर ने बिहार पर अपना अधिकार जमा लिया तथा इसे दिल्ली सल्तनत में मिला लिया गया. Sikandar Lodi Ki Uplabdhiyan यह रही थी.
बंगाल के साथ सम्बन्ध
बंगाल के साथ सम्बन्ध:- बंगाल भी पहले दिल्ली सल्तनत का ही एक अंग हुआ किया था. परन्तु बाद में यह राजनीतिक अस्थिरता का लाभ उठाकर स्वतंत्र बन बैठा था. वहां के शासक अलाउद्दीन हुसैन शाह को जब यह खबर मिली कि सिकन्दर लोदी ने बिहार पर अधिकार कर लिया है तो वह क्रुद्ध हो उठा था.
क्योंकि बिहार बंगाल के ही अधीन आता था. फलतः उसने पुत्र दानियल के नेतृत्व में एक सेना सिकन्दर लोदी के विरूद्ध भेजी गई थी. सिकन्दर ने भी युद्ध की पूरी तैयारी प्रारम्भ कर दी परन्तु किसी कारणवश युद्ध टल ही गया एवं दोनों पक्षों में संन्धि हो गयी और सन्धि की शर्तों के अनुसार दोनों पक्षों ने एक दूसरे के राज्य का सीमा रेखा के उल्लंघन नहीं करने एवं एक दूसरे के शत्रुओं को शरण नहीं देने की प्रतिज्ञा की थी. Sikandar Lodi Ki Uplabdhiyan यह भी एक है.
मध्य भारत की विजय
मध्य भारत की विजय:- सिकन्दर लोदी ने मध्य भारत की तरफ अपना ध्यान दिया और वहां अनेक स्वतंत्र एवं अर्द्धस्वतंत्र रियासतें थी जिन्हें सिकन्दर अपने अधीन करना चाहता था. परन्तु उसने धौलपुर पर आक्रमण कर उसे 1505 ई० में जीत लिया था. इसी प्रकार उसने मंडरैल, अवन्तगढ़, नरवर, नागौड़ एवं चन्देरी पर भी अधिकार कर लिया परन्तु ग्वालियर को जोतने का उसका सपना पूरा नहीं हो सका क्योंकि ग्वालियर का राजा मानसिंह एक बड़ा दी थी. वीर योद्धा एवं निपूण शासक था. Sikandar Lodi Ki Uplabdhiyan यह रही जो अति महत्वपूर्ण है.
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FAQ (Sikandar Lodi Ki Uplabdhiyan (1489-1517) से सम्बन्धित कुछ सवालो का जवाब)
स्टूडेंट अब इस लेख में Sikandar Lodi Ki Uplabdhiyan सम्बन्धित आपके द्वारा पूछे गए कुछ महत्वपूर्ण सवालो का जवाब का उत्तर पढने वाले है. जी की इस से सम्बन्धित आपके एग्जाम के लिए महत्वपूर्ण प्रश्न है.
सिकंदर लोदी को किसने हराया था?
देखिए स्टूडेंट सिकन्दर लोदी को राजा ने हराया था. जो की उनका नाम राजा मानसिंह था. सिकन्दर लोदी को हराया था.
सिकंदर लोदी कौन था उसने किस प्रकार शासन किया?
देखिए सिकंदर लोदी लोदी वंश का सबसे ताकतवर और शक्तिशाली शासन था. जो की बहलोल लोदी के अधूरे काम को सिकंदर लोदी ने पूरा किया था.
अंत में क्या पढ़ा
प्रिय स्टूडेंट इस लेख में हम लोग यह पढ़ चुके है की. मध्यकालीन इतिहास के अंतर्गत Sikandar Lodi Ki Uplabdhiyan के बारे में पढ़ चुके है जो की इनके क्या-क्या कार्य थे. व क्या-क्या किया है. इस लेख में जितने प्रश्न को बताया गया है सारे प्रश्न अति महत्वपूर्ण है. आपके एग्जाम के लिए.