मध्यकालीन इतिहास के अति महत्वपूर्ण चेप्टर Iltutmish Ki Upadhiyan क्या-क्या है. इस लेख में इससे सम्बन्धित सारे टॉपिक को एक-एक कर के देखने वाले है. इस टॉपिक से आप के सभी तरह के परीक्षाओ के लिए अति महत्वपूर्ण है. इल्तुतमिश का इतिहास के बारे में चलिए अब पढ़ते है.
- एक शासक के रूप में इल्तुतमिश का मूल्यांकन कीजिए
- इल्तुतमिश किस वंश का राजा था
- इल्तुतमिश की कठिनाइयां
- इल्तुतमिश के कार्य
एक शासक के रूप में इल्तुतमिश का वर्णन करें -Iltutmish Ki Upadhiyan Varnan Kijiye
इल्तुतमिश (1211-1236):- ऐबक के देहान्त हो गया फिर उसका पुत्र आरामशाह जो थे उसने ही दिल्ली के गद्दी पर बैठ गया था. परन्तु उसका पुत्र जो आरामशाह था वह सबसे बड़ा ही अयोग्य महान शासक था. वह सभी तरह के बिगड़ती हुई परिस्थितियों को उससे संभाला ना गया और इसलिये जो आमिर थे उसने इल्तुतमिश को दिल्ली का सुल्तान निर्वाचित घोषित कर दिया था.
इल्तुतमिश की कठिनाइयां
उसकी प्रारंभिक कठिनाईयाँ:- गुलाम वंश के सुल्तानों में इल्तुतमिश सबसे सबसे महान व्यक्ति था और वह एक दास भी थे. अपनी Iltutmish Ki Upadhiyan योग्यता काबिलियत के बल पर ही दिल्ली का सुल्तान बन गयाऔर राज किया था. वह तुर्कीस्तान की अलवारी जाति का भी था और उसका जन्म एक उच्च सम्पन परिवार में हुआ था. वह बचपन में बहुत ही सुन्दर बालक में से एक था. बाल्यकाल से ही उसमें बुद्धिमत्ता और साधुता के लक्षण दिखाई पड़ते थे.
उसके भाईयों ने उसको बुखारा के एक व्यापारी के हाथ बेच दिया और उससे एक व्यक्ति ने मोल लेकर उसको कुतुबुद्दीन ऐबक के हाथ बेच दिया था. कालक्रम में इल्तुतमिश की प्रगति के पथ पर भी अग्रसर हुआ की वह अपनी योग्यता से ही बदायूँ सहर का इल्तुतमिश ने सूबेदार बन गया था. उसकी योग्यता देखकर ऐबक ने अपनी कन्या से उसका विवाह करा दिया था. निम्न यह Iltutmish Ki Upadhiyan है.
खोखरी को उसने युद्ध में परास्त किया की जिससे उसकी प्रसिद्धि अत्यधिक बढ़ गई और उसे अमीर उल-उमरा की उपाधि से विभूषित भी किया गया था. अतः इल्तुतमिश ने जो सिंहासन प्राप्त किया था की वह फूलों की शैया नहीं बल्कि बड़ा ही कण्टकाकीर्ण था. अभी तो दिल्ली का सुल्तान शैशवकाल से गुजर रहा और केवल 4 वर्ष तक ही ऐबक स्वतंत्र रूप से शासन कर सकता था. परन्तु कि उसका अकस्मात देहान्त हो गया.
अतः यह सल्तनत संगठित और सुव्यवस्थित नहीं हो सकी थीं. सौभाग्य से दिल्ली सल्तनत को इल्तुतमिश जैसा योग्य और चालाक शासक मिल गया. उसमें दिल्ली सल्तनत को सुदृढ़ और सुरक्षित रखने की क्षमता थी. इसी वजह से विद्वान ऐबक को दिल्ली सल्तनत का केवल संस्थापक ही मानते हैं परन्तु उसका वास्तविक संस्थापक तो इल्तुतमिस ही था. यह Iltutmish Ki Upadhiyan भी है.
इल्तुतमिश की उसके सामने चार बड़ी समस्याएँ निम्नलिखित है-
- इल्तुतमिश गुलाम था
- प्रतिद्वन्द्विता की समस्या
- राजपूतों की समस्या
- मुगलों के आक्रमण की समस्या
इल्तुतमिश गुलाम था
इल्तुतमिश गुलाम था:- उसकी पहली समस्या थी कि वह एक गुलाम था और इसलिए कुलीन और प्रभावशाली अमीर उसे सुल्तान मानने के लिए तैयार न थे. जबकि इल्तुतमिश का जन्म इलबरी कबीले के कुलीन तुर्कवंश में हुआ था. पिता उसको सबों से अधिक मानता था और इस वजह से उसके भाईयों ने एक सौदागर के हाथ बेच दिया. जिसको बाद में ऐबक ने खरीदा और वह अपनी योग्यता से बहुत आगे बढ़ गया था.
वह प्रतिष्ठित अमीरों की आँखों में खटक रहा और वे दिल्ली में उसके विरुद्ध षडयंत्र रच रहे थे. उसने बड़े साहस और धैर्य के साथ अमीरों का सामना किया. सौभाग्य से उसको सेना का सहयोग तथा समर्थन प्राप्त था. उसने डटकर अमीरों के इस विद्रोह का दमन किया. इस तरह उसने अपने सभी विरोधियों का दमन कर के उसने दिल्ली में अपनी स्थिति सुदृढ़ ही कर ली थी. इस Iltutmish Ki Upadhiyan यह थी.
प्रतिद्वन्द्विता की समस्या
प्रतिद्वन्द्विता की समस्या:- उसकी दूसरी बड़ी समस्या प्रतिद्वन्द्वियों की थी. उसका पहला प्रतिद्वन्द्वी आरामशाह था की जो लाहौर से उसको तंग किया करता था वह ऐबक का वास्तविक उत्तराधिकारी था. लोग इल्तुतमिश को अनाधिकारी और अपहर्त्ता समझते थे. इस समस्या को उसने शीघ्र ही हल कर दिया. उसका दूसरा प्रतिद्वन्द्वी यल्दुज था जो गजनी का शासक था.
वह अपने को सम्पूर्ण भारत का शासक समझ रहा था. वह दिल्ली के सल्तनत को हड़पकर उसने अपने कब्जे में लेना चाहता था. उसका भी इल्तुतमिश ने दमन कर दिया और तीसरा प्रतिद्वन्द्वी कुबाच था जो सिन्ध का शासक था और अपने को ऐबक का संबंधी बतलाता था. दिल्ली पर उसकी भी दृष्टि लगी हुई थी. इसको भी उसने दबा कर निष्कंटक हो गया. Iltutmish Ki Upadhiyan भी अति महत्वपूर्ण टॉपिक है.
राजपूतों की समस्या
राजपूतों की समस्या:- उसकी तीसरी बड़ी समस्या राजपूतों की थी और राजपूत लोग अपनी खोई हुई स्वतंत्रता को फिर से प्राप्त करना चाहते थे. जालौन, ग्वालियर, रणथम्भौर और अन्य कई राज्यों के राजपूत राजाओं ने अपने को स्वतंत्र घोषित कर दिया था. इल्तुतमिश ने अपनी पूरी ताकत लगाकर इन सब विद्रोहियों को नतमस्तक करवा दिया. Iltutmish Ki Upadhiyan थी वह है राजपूतो की समस्या है.
मुगलों के आक्रमण की समस्या
मुगलों के आक्रमण की समस्या:- मुगल लोग बड़े खूँखार और निर्दयी थे. इन दिनों वे अपने प्रसिद्ध नेता चँगेज खाँ के नेतृत्व में सारे मध्य एशिया को उजाड़ते हुए आगे बढ़ रहे थे. ये लोग शाह अलाउद्दीन पर टूट पड़े जो अपने पुत्र जलाउद्दीन के साथ भाग खड़ा हुआ. जलालुद्दीन ने गजनी पर धावा बोल दिया और यल्दूज को मार भगाया.
यल्दूज पंजाब भागा और लाहौर में आकर शरण ले लिया था. मुगलों ने जलालुद्दीन का पीछा न छोड़ा और गजनी से भी वह भाग खड़ा हुआ और भारत की ओर चल पड़ा. उसने सिन्धु नदी के किनारे अपना पड़ाव डाल दिया. उसने अपने एक दूत को इल्तुतमिश के पास शरण की याचना के लिए भेज दिया. इसका उसने बड़े ही धैर्य से सामना कर मुगलों के विद्रोह को शांत किया. Iltutmish Ki Upadhiyan एक आक्रमण की समस्या थी.
चंगेज खान का आक्रमण कब हुआ था
चंगेज खाँ का आक्रमण:- अप्रत्यक्ष रूप से चँगेज खाँ के आक्रमण ने इल्तुतमिश की स्थिति को और भी सुदृढ़ बना दिया क्योंकि इसके फलस्वरूप उसने यल्दूज और कुबाचा का नामों-निशान मिटा दिया था. पहला मंगोलों द्वारा बन्दी बना लिया और दूसरे की शक्ति एकदम क्षीण हो गयी, जो इल्तुतमिश के सामने नहीं ठहर सका और अन्त में सिन्धु नदी में डूब कर मर गया. Iltutmish Ki Upadhiyan यह भी एक है.
इल्तुतमिश की प्रमुख विजय
उसकी प्रमुख विजय:- अपने प्रतिद्वन्द्वियों को परास्त करने में इल्तुतमिश को जो सफलता मिली इसके अलावे उसकी सैनिक सफलताओं में ग्वालियर पर उसका अधिकार और मालवा पर आक्रमण गिने जा सकते हैं. इस तरह से उसने विन्धय के उत्तर में समस्त भारत पर अपना पूर्ण प्रभुत्व स्थापित कर लिया. Iltutmish Ki Upadhiyan एक विजय भी है.
इल्तुतमिश की भवन का निर्माण
भवन का निर्माण:- इल्तुतमिश ने अनेक भवनों का निर्माण करवाया. उसके जीवन की सबसे अधिक गौरवपूर्ण घटना बगदाद के खलीफा से सम्मान-पदक प्राप्त करना है. सन् 1236 ई० में उसकी मृत्यु हो गयी. उसने कुतुबमीनार को पूरा करवाया और कुतुबमीनार के निकट ही कई खूबसूरत भवन बनवाये है. वहीं पर एक सुन्दर मकबरे में वह दफनाया गया था. उसने अजमेर में भी एक सुन्दर तथा विशाल मस्जिद का निर्माण करवाया था. निम्न में से Iltutmish Ki Upadhiyan यह भी थी.
चाँदी का सिक्का
चाँदी का सिक्का:- इल्तुतमिश पहला बादशाह था जिसने सिक्कों पर विशुद्ध अरबी लिपि का प्रचलन कराया और चाँदी के “टंक” नामक सिक्के को अपने राज्य का स्टैंडर्ड सिक्का घोषित किया. यही टंक वर्तमान रुपयों का पूर्वज हैं. इसके संबंध में शिराज नामक इतिहासकार ने यह लिखा है कि वह एक भला और उदार राजा था जो अपने ही प्रयत्नों से इतने बड़े साम्राज्य का स्वामी बना था. Iltutmish Ki Upadhiyan यह भी टॉपिक महत्वपूर्ण थी.
एक शासक के रूप में इल्तुतमिश का मूल्यांकन कीजिए
मूल्यांकन:- इल्तुतमिश के संबंध में सर बुल्जले हेग का यह कहना सत्य है कि “इल्तुतमिश ही गुलाम सुल्तानों में सबसे उच्च पद ग्रहण करने का अधिकारी है. उसकी सफलताएँ कभी भी उसके स्वामी के बराबर नहीं थी. फिर भी उसे ऐबक की भाँति कभी भीएक महान साम्राज्य की नैतिक एवं भौतिक सहायता न मिल सकी थी.
शिराज के शब्दों में:- इल्तुतमिश जैसे गुणवान, दयालु, बुद्धिमान और धर्म-परायण लोगों के प्रति सम्मान रखनेवाला शासक कभी भी सिंहासनारूढ़ नहीं हुआ.” कई लेखकों ने इल्तुतमिश को ‘अल्लाह’ के इलाकों का संरक्षक और ईश्वर के सेवकों का सहायक भी बताया Iltutmish Ki Upadhiyan भी है.
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FAQ (इल्तुतमिश की उपलब्धियाँ से सम्बन्धित कुछ सवालो का जवाब)
अब इस लेख में आपको Iltutmish Ki Upadhiyan से सम्बन्धित अति महत्वपूर्ण आपके द्वारा किछ पूछा गया प्रश्न देखने वाले है. यह प्रश्न बहुत अति महत्वपूर्ण है जो आपके सभी तरह के प्रतियोगी परीक्षाओ के लिए अति महत्वपूर्ण है. इस प्रश्न का उत्तर देखने वाले है सबसे आसन भाषा में तो चलिए इस लेख को पूरा अंत तक पढ़ते है.
इल्तुतमिश की उपलब्धियां क्या थी?
ऐबक के मृत्यु के बाद उसका विवादित पुत्र आरामशाह दिल्ली की गद्दी पर बैठना चाहता था. लेकिन वह काफी अयोग्य था. अत: आरामशाह को दिल्ली की गद्दी पर न बैठा कर इल्तुतमिश को गद्दी पर बैठाया गया. गद्दी पर बैठने के बाद इल्तुतमिश ने कई Iltutmish Ki Upadhiyan प्राप्त की है.
इल्तुतमिश सबसे महान शासक क्यों है?
इल्तुतमिश का पुरा नाम शमसुद्दीन् इल्तुतमिश था यह तुर्क का रहने वाला था. जो बाद में गुलाम वंश का एक योग्य शासक बन गया था. इनके पिता इलम खाँ इल्बारी एक कबीले के सरदार थे. इनका शासन काल लगभग 1210 से 1236 ई० तक मानी जाती है.