प्रिय स्टूडेंट इस लेख में Dharm Sudhar Andolan Ke Karan के बारे में विस्तार से पढने वाले है.इस “धर्म सुधार आंदोलन के कारण एवं परिणाम” क्या-क्या थे. इस लेख में इस सारे टॉपिक को एक-एक कर के पूरा इतिहास को पढने वाले है. इस टॉपिक से आपके एग्जाम के लिए अति महत्वपूर्ण है. तो चलिए इस लेख को पूरा अंत तक पढ़ते है.
धर्म सुधार आंदोलन क्या होता है:- धर्म सुधार आंदोलन16 वी सदी में पोप की सत्ता और भ्रष्टाचार के खिलाफ एक आन्दोलन प्रारम्भ किया गया. जिसे धर्म सुधार आन्दोलन कहाँ जाता है. यह धर्म सुधार आन्दोलन दो तरह से निम्न है.
- प्रोटेस्टेंट धर्म सुधार: इसमें कैथोलिक धर्म में व्याप्त बुराइयों को चुनौती दी गयी एवं नवीन धर्म का उदय हुआ.
- प्रति धर्म सुधार आन्दोलन: इसके अन्तर्गत सैथोलिक धर्म के अन्दर सुधार लिए गए थे.
धर्म सुधार आंदोलन के कारण || Dharm Sudhar Andolan Ke Karan Likhe
इस धर्म सुधार आंदोलन के कई अनेको कारण थे जो इस आन्दोलन की उसकी उत्पत्ति व विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया. जो “Dharm Sudhar Andolan” के कारण निम्नलिखित है.
- धार्मिक परंपराओं का अवशेषण
- विज्ञान और तकनीकी प्रगति
- शिक्षा का प्रसार
- समाज में असमानता
धार्मिक परंपराओं का अवशेषण
धर्म सुधार आंदोलन का पहला कारण था धार्मिक परंपराओं में अवशेषण व विचारधारा की विनाशकारी अंधविश्वासों के खिलाफ उत्तराधिकारिता.
विज्ञान और तकनीकी प्रगति
वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति ने धार्मिक मान्यताओं को प्रश्नचिन्तन में डाल दिया था. जिससे लोगों के मानसिकता में परिवर्तन भी हुआ और उन्होंने धार्मिक अवधारणाओं की समीक्षा करने लगी थी.
शिक्षा का प्रसार
शिक्षा के प्रसार-प्रचार के साथ ही लोगों की जागरूकता बढ़ गई और उन्हें स्वतंत्र विचार करने की क्षमता भी मिली है. यह Dharm Sudhar Andolan ने शिक्षा के महत्व को प्रमोट किया था.
समाज में असमानता
धर्म सुधार आंदोलन ने समाज में असमानता और जातिवाद के खिलाफ उत्तराधिकारिता की आवश्यकता को महत्वपूर्ण बताया है व इसके खिलाफ उठने का कारण बना.
आध्यात्मिकता के प्रति नई दृष्टिकोण
इस Dharm Sudhar Andolan Ke Karan ने आध्यात्मिकता के प्रति नई दृष्टिकोण दिलाया और धार्मिक अनुष्ठान में योगदान करने की महत्वपूर्णता को स्थापित किया.
ब्राह्मणवाद के खिलाफ विरोध
आंदोलन में ब्राह्मणवाद के खिलाफ भी विरोध दिखाई दिया था. क्योंकि इससे जातिवाद और समाज में असमानता बढ़ी थी.
ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति आपत्ति
ब्रिटिश साम्राज्य के आगमन के बाद, धर्म सुधार आंदोलन ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आवाज उठाई थी और विचारधारा में सुधार की मांग की थी.
धार्मिक परंपराओं का पुनर्विचार
18वीं और 19वीं शताब्दी में, भारतीय समाज में विभिन्न धार्मिक परंपराएं थीं जो कई अनेको अंधविश्वासों व असमानता को बढ़ावा देती थीं. धर्म सुधार आंदोलन ने इन परंपराओं को समाज के उत्थान के लिए पुनर्विचार करने की मांग की थी.
विश्वासों के प्रति संदेह
वैज्ञानिक और राजनीतिक प्रगति के साथ, लोगों के मानसिकता में भी परिवर्तन आया और वे अपनी धार्मिक विश्वासों पर सवाल उठाने लगे थे. धर्म सुधार आंदोलन ने यह संदेह और प्रश्नचिन्तन को प्रोत्साहित भी किया.
जातिवाद और असमानता के खिलाफ आवाज
धर्म सुधार आंदोलन ने जातिवाद और जाति-आधारित असमानता के खिलाफ भी आवाज उठाया. यह आंदोलन विभिन्न वर्गो जातियों और समुदायों के बीच एकता और समानता की भावना को प्रोत्साहित किया.
महात्मा गांधी की प्रेरणा
महात्मा गांधी के आदर्शों और उनके धर्म से संबंधित दृष्टिकोणों ने धर्म सुधार आंदोलन को एक नई दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
सामाजिक सुधार और न्याय की मांग
धर्म सुधार आंदोलन ने सामाजिक सुधार और न्याय की मांग की थी. जिससे अल्पसंख्यकों, अच्छूतों और महिलाओं के अधिकारों की इस धर्म सुधार आन्दोलन में पहचान हुई थी.
ये रहे Dharm Sudhar Andolan के कुछ मुख्य कारण है. जो धर्म सुधार आंदोलन के प्रारंभ होने का कारण बना था. यह आंदोलन न केवल धार्मिक विचारधारा में परिवर्तन लाया बल्कि समाज में विशेष रूप से जातिवाद और असमानता के खिलाफ भी आवाज उठाई थी. यह सारे प्रश्न आपके परीक्षाओ के लिए अति महत्वपूर्ण है.
धर्म सुधार आन्दोलन के परिणाम व महत्व || Dharm Sudhar Andolan Ke Parinam
धर्म सुधार आन्दोलन को प्रथम महान आधुनिक क्रान्ति की संज्ञा दी जा सकती है. इस धार्मिक उथल-पुथल ने सिर्फ धर्म के क्षेत्र को ही प्रभावित नहीं किया बल्कि समाज के सभी क्षेत्रों को गहरा प्रभावित किया. इसका कारण यह था कि मध्यकाल में धर्म की मनुष्य जीवन के सभी क्षेत्रों पर गहरी पकड़ थी.
जबकि धर्म में ही सुधार और मूलभूत परिवर्तन आए तो इसने मानव जीवन के सभी पक्षो को अपने में समेट लिया. उदाहरण के तौर पर राजसता, व्यवसाय, चर्च, नैतिकता, समाज के विभिन्न वर्ग आदि व्यापक तौर पर प्रभावित हए थे. इस Dharm Sudhar Andolan Ke Parinam निम्नलिखित है.
1.इसाई मत का विभाजन
15वीं सदी में ईसाई धर्म को दो भागों में बांटा था. पूर्वी यूरोप में रूढ़िवादी यूनानी चर्च था तथा शेष यूरोप में रोमन कैथोलिक चर्चा था. इस Dharm Sudhar Andolan के परिणामस्वरूप यूरोप में धार्मिक विविधता का प्रसार हुआ. सुधारवादी प्रोटेस्टेंट मत के भी कई रूप सामने आए. जैसे- लूधवाद, काल्दिन, ऐग्लिकनवाद आदि इससे पश्चिमी यूरोप की मध्यकालीन धार्मिक एकता सदैव के लिए, समाप्त हो गई थी.
2.धार्मिक संपर्क
प्रोटेस्टेंट मत के उदय के साथ ही कैथोलिकों और प्रोटेस्टेंटो के मध्य परस्पर शत्रुता उत्पन्न हो गई. प्रारम्भ से ही पोप ने लूथर व उसके समर्थकों को शक्ति से दबाना चाहा था. परन्तु लुधर व उसके अनुयायियों का साथ जर्मनी के शासको ने दिया. प्रोटेस्टेंटों के प्रभाव में वृद्धि से दोनो मतो में टकराव और भी बढ़ गया. वस्तुतः यह धार्मिक टकराव एक धार्मिक संघर्ष में बदल गया.
3.चर्च पर राजसत्ता का हावी होना
चर्च और राजसता के आपसी हितों में टकराव धर्म-सुधार आन्दोलन की उत्पत्ति के मुख्य कारणो में से कारणों में से एक था. क्योंकि कई देशों के शासक सभी मामलों में अपना पूर्ण नियन्त्रण चाहते थे. प्रोटेस्टेंट Dharm Sudhar Andolan से अनेक देशों के राजाओं को बहुत लाभ मिला. विशेष तौर पर जिन देशों में इस समय शक्तिशाली राजतन्त्र था, उनकी स्थिति बहुत मजबूत हो गई.
4.प्रति धर्म-सुप्यार अथवा काउंटर रिफॉर्मेशन
धर्म-सुधार आन्दोलन तथा प्रोटेस्टेंटों की सफलता ने यह साफ कर दिया कि रोमन कैथोलिक धर्म के स्थापित के लिए सुधार जरूरी है. अत: अपनी सुरक्षा की दृष्टि से कैथोलिकों ने भी सुधार की प्रक्रिया शुरू की जिसे काउंटर रिफार्मेशन कहा जाता हैं. इस दिशा में पोप पॉल व इग्नेशियस लोपला की भूमिका महत्वपूर्ण है.
कैथोलिक धर्म-सुधार में ट्रेंट की सभा ने भी महत्वपूर्ण योगदान दिया. इन्होंने अब पादरी पद बेचने पर प्रतिबन्ध लगा दिया, पादरियों के प्रशिक्षण पर ध्यान दिया, पादरियों के लिए कर्तव्यनिष्ठा कठोर व सदा जीवन बिताने पर बल दिया गया. दुसर चर्च में फैली बुराईयों को दूर करने तथा चर्च में आत्मविश्वास जगाने में मदद मिली थी.
5.किसानों पर दुष्प्रभाव
सुधार आन्दोलन के कारण किसानो को दुष्परिणाम भुगतने पड़े. जर्मनी में मार्टिन लूथर की शिक्षाओं से किसानों में चेतना आई थी. उन्होंने अपने सामन्तो तथा कुलीनों के खिलाफ हथियार उठा लिए थे. परन्तु इन किसने आन्दोलनों की शक्ति से दबा दिया गया था. यहाँ तक की मार्टिन लूथर ने भी किसानों के विद्रोहों को ताकत से दबा देने की बात की थी.
6.सामन्तों पर प्रभाव
धर्म-सुधार आन्दोलन के दौरान पनपे धार्मिक संघर्षो ने राजा तथा सामन्तो के बीच संघर्षो को जन्म दिया. जर्मनी में लुथरवाद व कुलीन सामन्त साथ- साथ पनपे. इससे सामन्त समृद्धशाली व शक्ति शाली बना. इंग्लैण्ड में कैथोलिक कुलीन सामन्तों को कैथोलिक चर्च के साथ ही, दबा दिया गया. फ्रांस में कुछ सामन्त शक्तिशाली हुए परन्तु विरोधी सामन्तों को समाप्त कर दिया गया वे गरीब व निकम्मे हो गए. संक्षेप में शक्तिशाली सामन्त ही बच पाए शेष समाप्त हो गए थे.
7.राष्ट्रीय भाषा एंव साहित्य का विकास
धर्म सुधार आन्दोलन का एक परिणाम यह भी हुआ कि लोक-भाषाओं, एवं साहित्य का विकास हुआ. मार्टिन लूथर ने जर्मनी भाषा मैं बाइबिल का अनुवाद किया. धर्म-सम्बन्धी पर्चे, लेख भी उसने जर्मन भाषा में लिखे एवं प्रकाशित कराएं “Dharm Sudhar Andolan Ke Parinam” व पुनर्जागरण से पहले लैटिन भाषा में ही साहित्य की रचना होती थी.
परन्तु इन आंदोलनों के परिणामस्वरूप शिक्षा व साहित्य का विकास हुआ. धीरे-धीरे राष्ट्रवाद की भावना भी अमर रही थी. इसके फलस्वरूप भी यूरोप में राष्ट्रीय भाषाओं तथा साहित्य का प्रचार- प्रसार हुआ.
8.सामाजिक सेवाओं में राज्य की बढ़ती भूमिका
प्रोटेस्टेण्ट देशों के शासकों ने चर्च की जमीन तथा धार्मिक अधिकार ही प्राप्त नही किए बल्कि मध्यकाल से चर्च द्वारा किए जा रहे कई कार्य अपने हाथो में ले लिया था. शिक्षा, पोपकारी कार्य, जन्म-मृत्यु का लेखा आदि कार्य चर्च को परिधि से बाहर हो कर राज्य के हाथों में आ गए.
इंग्लैंड में एलिजलिय के कॉल में गरीबी सम्बन्धित नियम बने जिनके तहत जरूरतमन्द लोगो की सहायता की जाने लगा. यद्यपि राज्य के कल्याणकारी स्वरूप का अभी विकास नही हुआ. यह कार्य 18वीं सदी में महान क्रांतियों द्वारा जनता की सत्ता आने के बाद ही हुआ.
इंग्लैंड में धर्म सुधार आंदोलन
इंग्लैंड में Dharm Sudhar Andolan की शुरुआत 16वीं और 17वीं सदी में पश्चिमी यूरोप में हुआ था जो एक महत्वपूर्ण सामाजिक और धार्मिक आंदोलन था. यह आंदोलन केवल धार्मिक बदलावों की नहीं, बल्कि सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक परिवर्तनों की भी शुरुआत थी. इस आंदोलन की मुख्य उद्देश्यों में से एक था.
कैथोलिक चर्च के विरोध में एक नये प्रकार के धर्मिक अनुयायियों के उत्थान की कोशिश करना. ये लोग “प्रोटेस्टेंट” कहलाए और उनके मान्यताओं में कैथोलिक चर्च के कई तत्वों के खिलाफ थे. इस आंदोलन की एक महत्वपूर्ण घटना यह थी की मार्टिन लुथर द्वारा सन 1517 ई० में लगाए गए 95 थीसिस इससे प्रारंभ होकर प्रोटेस्टेंट धर्म की नींव रखी गई.
इससे कैथोलिक चर्च में सुधार की मांग उत्त्पन्न हुई. इंग्लैंड में, हेनरी आठवीं ने अपने स्वागत के बाद कैथोलिक चर्च से अलग होकर एक नये धर्म, अंग्लिकन चर्च, की स्थापना की थी. इससे एक समृद्धि के साथ धार्मिक और राजनीतिक परिवर्तन हुआ, और अंग्रेज़ सम्राट की स्थानीय प्राधिकृति को बढ़ावा मिला.
इस Dharm Sudhar Andolan ने यूरोप के अन्य हिस्सों में भी प्रेरणा प्रदान की थी. जिससे वहाँ भी प्रोटेस्टेंट आंदोलन आये. यह आंदोलन धार्मिक स्वतंत्रता और सामाजिक परिवर्तन की महत्वपूर्ण घटना थी. जिसने पश्चिमी समाज को नये दिशानिर्देश देने का काम किया.
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FAQ (धर्म सुधार आंदोलन) से सम्बन्धित कुछ सवालो का जवाब)
प्रिय स्टूडेंट इस लेख में Dharm Sudhar Andolan से सम्बन्धित कुछ FAQ प्रश्नों का उत्तर देखने वाले है. जो आपके द्वारा पूछा गया प्रश्न थे. आगर आपको इससे सम्बन्धित कुछ और प्रश्न जैसे में- कारण व परिणाम से सम्बन्धित प्रश्न पूछना है तो आप हमे कोमेंट के माध्यम से पूछ सकते है. यह प्रश्न आपके एग्जाम के लिए अति महत्वपूर्ण है. तो चलिए इस लेख को पूरा अंत तक पढ़ते है.
धर्म सुधार आंदोलन क्या होता है?
धर्म सुधार आंदोलन एक सामाजिक और धार्मिक आंदोलन होता है. जिसका उद्देश्य धार्मिक विचारधारा या प्रथाओं में सुधार करना होता है. ये आंदोलन अक्सर विशेष धार्मिक समुदायों या संगठनों के अंतर्गत आवश्यकता मानी जाती है. जब उन्हें मान्यताओं, अदालती प्रथाओं, या सामाजिक बदलाव के साथ सुधार की आवश्यकता महसूस होती है.
धर्म सुधार आंदोलन का जन्मदाता कौन है?
इस Dharm Sudhar Andolan का जन्मदाता विभिन्न समयों और स्थानों पर अलग-अलग व्यक्तियों द्वारा हुए है. इन आंदोलनों के पीछे विभिन्न सोच, सामाजिक परिप्रेक्ष्य, और आवश्यकताएं होती हैं. जिसके कारण विभिन्न व्यक्तियों द्वारा इस आन्दोलन को आरंभ किया.
उदाहरण- स्वरूप, प्रोटेस्टेंट रिफ़ॉर्मेशन का एक महत्वपूर्ण जन्मदाता मार्टिन लुथर को माना जाता है.
धर्म सुधार आंदोलन के क्या कारण थे?
धर्म सुधार आंदोलन विचारधारा, प्रथाएं, सामाजिक न्याय में परिवर्तन के लिए धर्म सुधार आंदोलन उत्पन्न हुआ है.
धर्म सुधार आंदोलन का सर्वाधिक प्रसिद्ध नेता कौन था?
इस धर्म सुधार आंदोलन के सर्वाधिक प्रसिद्ध नेता प्रोटेस्टेंट रिफ़ॉर्मेशन के नेता मार्टिन लुथर को माना जाता है.
धार्मिक सुधार आंदोलन कब शुरू हुआ?
इस आन्दोलन की शुरुआत मार्टिन लुथर द्वारा सन 1517ई० में प्रोटेस्टेंट रिफ़ॉर्मेशन की शुरुआत की थी. जिससे धार्मिक सुधार आंदोलन प्रारंभ हुआ.
धार्मिक आंदोलन कौन कौन से हैं?
धार्मिक आंदोलन इतिहास में महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक मानी जाती है. प्रमुख उद्देश्यों में से एक यथासम्भाव सभी लोगों को धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करना होता है. साथ ही अन्य सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक विचारधाराओं में भी सुधार करना. महात्मा गांधी द्वारा न्याय सहिता के खिलाफ सत्याग्रह, मार्टिन लुथर द्वारा प्रोटेस्टेंट रिफ़ॉर्मेशन, बुद्ध और महावीर के धर्म सुधार आंदोलन, बाबासाहेब अंबेडकर के द्वारा भारत में विभाजित जाति प्रथा के खिलाफ आंदोलन आदि उल्लेखनीय हैं.