तराइन का युद्ध (1192 ई०) -Tarain Ka Yuddh

हेलो दोस्तों इस लेख में हम पढ़ेगे Tarain Ka Yuddh जो यह तराइन का दूसरा युद्ध के बारे में. जैसा कि हमने पहले लेख में बताया कि तराइन के प्रथम युद्ध के बारे में तो इस लेख में हम जानेंगे तराइन के दूसरे युद्ध की लड़ाई कब हुई इसका घटनाक्रम क्या है. कारणों व परिणाम क्या कहते हैं और यह युद्ध किस-किस के बीच हुई. तो चलिए दोस्तों इस लेख को पूरा अंत तक पढ़ते हैं. जो और आपके एग्जाम के लिए भी इंपोर्टेंट है अगर आप किसी प्रतियोगी परीक्षा के तैयारी कर रहे है तो यह लेख पूरे आपके लिए है.

  • तराइन का युद्ध इसका घटनाक्रम
  • तराइन का दूसरा युद्ध के कारण
  • तराइन का दूसरा युद्ध के परिणाम
  • अंत में युद्ध का निष्कर्ष

तराइन का दूसरा युद्ध कब हुआ – Tarain Ka Yuddh Kahan Hua

तराइन का द्वितीय युद्ध:- 1192 ई0 में तराइन का द्वितीय युद्ध पुन: मुहम्मद गोरी तथा पृथ्वीराज चौहान के मध्य हुआ. इस Tarain Ka Yuddh में गोविन्द राय, खांडे राय, बदमशा रावल पृथ्वीराज चौहान के साथ थे. जबकि मोहम्मद गौरी के साथ खारबक, इलाह, खर्मेल, मुकल्बा, कुतुबुद्‌दीन एबक, कुबाचा, ताजुद्‌दीन मल्दोज आदि थे.

दोनों सेनाओं के मध्य भयंकर युद्ध हुआ. जिसमें गौरी की प्रशिक्षित सेना के आगे पृथ्वी राज की सेना टिक न सकी और पृथ्वी राज की इस Tarain Ka Yuddh में पराजय हुई. पृथ्वीराज चौहान को इस युद्ध में आधुनिक हरियाणा में स्थित जो की सिरसा के पास है इस युद्ध में बंदी बना लिया गया.

NOTE- यह बहुत ही निर्णायक युद्ध माना जाता है. इस Tarain Ka Yuddh के बाद भारत की धार्मिक व राजनीतिक दोनों स्थिति अगले 600 सालों तक के लिए बदल इस युद्ध में पृथ्वी राज चौहान ने के भारत गई. लगभग सभी राजाओं को एक जुट करके कन्नौज के राजा को छेडकर) गोरी की सेना से युद्ध किया लेकिन गौरी की प्रशिक्षित सेना के आगे टिक न सके इस Tarain Ka Yuddh में मिले इतने बड़े हार से अन्य भारतीय राजाओ का मनोबल भी टूट गया.

तराइन का द्वितीय युद्ध का वर्णन व घटनाक्रम – Tarain Ka Yuddh Kiske Madhya Hua

प्रिय स्टूडेंट अब हम पढने वाले है Tarain Ka Yuddh और इस युद्ध का घटनाक्रम पूरा विस्तार से जो आपके एग्जाम के लिए अति महत्वपूर्ण रहेगा तो चलिए जान लेते है.Tarain Ka Yuddh के क्या-क्या हुआ है.

तराइन का द्वितीय युद्ध का घटनाक्रम
  • पृष्ठभूमि
  • भारत की राजनीतिक स्थिति
  • युद्ध के पूर्व की घटनाएं
  • संग्राम

पृष्ठभूमि

पृष्ठभूमि:- तराइन के प्रथम संग्राम में मोहम्मद गोरी घायल और पराजित भी हुआ था. पराजय का बदला मोहम्मद गौरी पृथ्वीराज से लेने के लिए तैयारी करने लगा. मोहम्मद गोरी ने तुर्की एवं अफगान सैनिकों की एक विशाल सेना तैयार की जिससे भारत पर आक्रमण किया जा सके इस विशाल सेना के साथ मोहम्मद गोरी ने दिल्ली की तरफ प्रस्थान किया.

भारत की राजनीतिक स्थिति

भारत की राजनीतिक स्थिति:-  भारत के हिंदू राजाओं की स्थिति पहले की तरह नहीं रह गई थी. आपसी बैर के कारण लोग विघटित हो गए थे. पृथ्वीराज चौहान की पहली लड़ाई की तुलना में इस समय काफी कमजोर हो गए थे क्योंकि कुछ मित्र राजा मदद करने को तैयार नहीं थे. कन्नौज का राजा जयचंद, पृथ्वीराज का कट्टर दुश्मन बन गया था. इस संग्राम में प्रथम संग्राम की अपेक्षा पृथ्वीराज की सेना छोटी थी. पृथ्वीराज ने अपनी सेना लेकर सरस्वती के तट पर Tarain Ka Yuddh के पुराने लड़ाई के मैदान में मोर्चा संभाला और शत्रु सेना की प्रतीक्षा करने लगा.

युद्ध के पूर्व की घटनाएं

युद्ध के पूर्व की घटनाएं:- इस समय भटिंडा का दुर्ग राजपूतों के हाथ में था, इसलिए इस दुर्ग से दूर हटकर गोरी राजपूत सेना से 10 मील की दूरी पर अपना सैन्य शिविर बनाया.- पृथ्वीराज ने गोरी को संदेश भेजा जिसमें कहा — शांति संदेश गोरी ने इसे फरेब मात्र समझा, उसने समझा कि यह धोखे में डालकर सेना पर अचानक आक्रमण करने की चाल है.

इसलिए उसने यह निश्चय किया कि उल्टे पृथ्वीराज को धोखे में डालकर उसकी सेना पर आक्रमण कर देना चाहिए. गोरी ने कहा शांति के लिये अपने भाई जो कि सुल्तान है, उस से आज्ञा प्राप्त करनी होगी। मैं अभी उनके पास एक संदेश वाहक भेज रहा हूं उसके वापस आने तक आप लड़ाई न शुरू करें. राजपूतों ने गोरी की बात को सच समझे और धोखे में पड़ गए. दूसरी तरफ गोरी ने तुरंत आक्रमण करने की तैयारी की उसने अपना सब भारी साज सामान अपने पड़ा उसे छोड़कर दिन निकलने से कुछ घंटे पहले ही आगे बढ़ना शुरू किया. 

इस गतिविधि का पता नहीं चल पाया इस प्रकार बिना किसी बाधा के गोरी की सेनाएं राजपूतों पर आक्रमण करने की स्थिति में आ गई. अधिकांश राजपूत सैनिक – आस पास के खेतों व बंजर भूमि पर शौच, स्नान आदि करने में लगे थे. गोरी की सेना को अचानक अपने सामने देखा तो वह बिना भोजन किए ही उनका मुकाबला करने की जैसे तैसे तैयार हुए, इस प्रकार उनको दिन भर खाली पेट लड़ना पड़ा.

संग्राम

संग्राम:- राजपूत सेना के समरतंत्र एवं उनकी वीरता को गोरी भली भांति जानता था, तराइन के प्रथम पराजित होने के बाद गोरी को इन सभी बातों का पता था. पृथ्वीराज की सेना गोरी की योजना अनुसार ही लड़ती रही गोरी के घुड़सवार का व्यर्थ ही इधर-उधर पीछा करते रहे, राजपूत की तरफ से कोई पहल नहीं की गई.

सेना धीरे-धीरे अस्त-व्यस्त होती चली गई और बहुत ही थक गई. दोपहर के 3:00 बजे तक Tarain Ka Yuddh इसी प्रकार चलता रहा, अवधि तक भूख प्यास से व्याकुल राजपूत सैनिक संघर्ष योग्य नहीं रह गए. जब गोरी ने देखा कि हिंदू सैनिक पूर्ण रूप से थक चुके हैं तो गोरी ने अपने 12000 आरक्षित कवच युक्त घुड़सवार से हमला करा दिया. राजपूत इस हमले का मुकाबला नहीं कर सके और हिंदू सैनी की दर्द और भागने लगे। इस भगदड़ में हजारों सैनिक काट डाले गए. पृथ्वीराज चौहान को बंदी बना लिया गया. 

इसे भी पढ़े: तराइन का प्रथम युद्ध (1191 ई०)

तराइन का द्वितीय युद्ध के कारण

प्रिय स्टूडेंट्स आज अब इस लेख में मै आपको बताने वाला हूँ Tarain Ka Yuddh के घटनाओ के कारण इस युद्ध में क्या-क्या कारण है. इस लेख में सारे टॉपिक को एक-एक कार के पूरा विस्तार से पढने वाले है जो आपके एग्जाम में आ सकता है.

  • मोहम्मद गौरी का तराइन का प्रथम लड़ाई में हार
  • युद्ध के बाद की स्थिति
  • जयचंद राठौर का निमंत्रण
  • ताबरहिन्द की विजय
  • पृथ्वीराज तृतीय का अति आत्माविश्वास

मोहम्मद गौरी का तराइन का प्रथम लड़ाई में हार

1.मोहम्मद गौरी का तराइन का प्रथम लड़ाई में हार:- तराइन की पहली Tarain Ka Yuddh में मोहम्मद गौरी की हार हुई मुश्किल से जान बचाकर भागना पड़ा और अपनी हार को मुहम्मद गौरी भूल नहीं पाया. अब उसने अपनी सेना को पुनः संगठित किया तथा अपने आप को अनुशासित किया. वह तराइन के प्रथम युद्ध में हार के बाद अपमानित महसूस कर रहा था. जो वह इस अपमान का बदला मोहम्मद गौरी ने लेना चाहता था. अपनी हार पर विचार-विमर्श किया.

युद्ध के बाद की स्थिति

2.युद्ध के बाद की स्थिति:- 1191 ई० के प्रथम लड़ाई के बाद उभरने वाली परिस्थितियों ने तराइन की दूसरी लड़ाई भी भूमिका तैयार कर दी इस विजय के बाद पृथ्वीराज तृतीय की प्रसिद्धि भी चारों ओर फैल गई.

चौहान शासक तथा सेना खुशी के मौके पर रंगरलिया मनाने में मशगूल हो गए सेना और शासक दोनों अति आत्मविश्वास के शिकार हो गए. जब यह खबर मोहम्मद गौरी को पता चली तो उसने मौके का फायदा उठाकर कुछ ही समय बाद राजपूत सेना पर हमला किया जिसके परिणाम स्वरूप Tarain Ka Yuddh की दूसरी लड़ाई लड़ी गई.

जयचंद राठौर का निमंत्रण

3.जयचंद राठौर का निमंत्रण:- तराइन के प्रथम लड़ाई में पृथ्वीराज चौहान की जीत के कारण उसका मान सम्मान बढ़ गया. जिससे जयचन्द राठौर सहन नहीं कर सका जो कन्नौज का शासक था. उसकी शत्रुता का कारण जयचन्द की पुत्री संयोगिता भी थी. जयचन्द ने अपनी पुत्री संयोगिता के स्वयंवर मैं पृथ्वीराज तृतीय को जानबूझकर नहीं बुलाया पृथ्वीराज तृतीय स्वयंवर से संयोगिता को भरी सभा के सामने उठा ले गया और उससे विवाह कर लिया. जयचन्द भी इस अपमान का बदला लेना चाहता था.

ताबरहिन्द की विजय

4.ताबरहिन्द की विजय:- मोहम्मद गौरी के अधीन एक सैनिक टुकड़ी 1189 ईस्वी से ताबरहिन्द की सुरक्षा कर रही थी. 1191 ईस्वी में Tarain Ka Yuddh के लड़ाई के बाद राजपूत सेना ने ताबरहिन्द पर हमला कर दिया और उसे जीत लिया. गौरी वे इसे अपना अपमान समझा जिस कारण तराइन की दूसरी लड़ाई आवश्यक हो गई.

पृथ्वीराज तृतीय का अति आत्माविश्वास

5.पृथ्वीराज तृतीय का अति आत्माविश्वास:- पृथ्वीराज चौहान ने बेशक मुहम्मद गौरी को तराइन के प्रथम युद्ध में हरा दिया था. लेकिन उसके मन को बार-बार यह बात सुब रही थी कि उसके पास मोहम्मद गौरी को पूरी तरह हराने का अक्सर था. परन्तु उसने इसका लाभ नही उठाया. वह अपनी भूल को किसी भी तरह से सुधारना चाहता था.

उसे आती आत्मविश्वास हो गया था कि वह जब चाहे मोहम्मद गौरी को परास्त कर सकता है. उसने सैनिक तैयारियों पर ध्यान नहीं दिया तराइन की दूसरी लड़ाई वास्तव में दो महान शासकों की अति महत्वाकांक्षा का परिणाम मात्र थी.

तराइन का द्वितीय युद्ध के परिणाम व प्रभाव

अब इस लेख में पढने वाले है Tarain Ka Yuddh के परिणाम व प्रभाव इस युद्ध में क्या-क्या परिणाम है और उनका प्रभाव क्या है सारे टॉपिक को एक-एक कर के विस्तार से समझते है तो चलिए इस लेख को पूरा अंत तक पढ़ते है.

1.Tarain Ka Yuddh के दूसरे युद्ध में जीतकर मोहम्मद गौरी ने भारत में मुस्लिम शासन की स्थापना की. दिल्ली पर गौरी का अधिकार हो गया. उसने जीते हुए क्षेत्रों पर अपने विश्वासपात्र सैनिक अधिकारियों की नियुक्ति की. 1206 ईस्वी में मोहम्मद गौरी की मृत्यु के बाद उसका दास कुतुबुद्दीन ऐबक दिल्ली का सुल्तान बना तथा उसके द्वारा स्थापित साम्राज्य को दिल्ली सल्तनत के नाम से जाना गया.

2. इस लड़ाई के परिणाम स्वरुप भारत में हिंदुओं के राजनीतिक प्रभुत्व वाले युग का अंत हो गया भारत धीरे-धीरे मुस्लिम राजनीतिक प्रभुत्व के अधीन हो गया इस लड़ाई में भारत के साथ हिंदुत्व सत्ता भी हार गई.

3. इस लड़ाई के परिणाम स्वरूप राजपूत शासकों की शक्ति कमजोर पड़ गई. वे दोबारा सत्ता प्राप्त करने के लिए छटपटाते रहे.

4. इस लड़ाई से घुड़सवार सेना का महत्व बढ़ गया भारतीय राजाओं ने पैदल तथा हाथी सेना की अपेक्षा घुड़सवार सेना पर ज्यादा ध्यान देना शुरू किया. सामन्ती सेना की अपेक्षा अस्थाई सेना को अधिक महत्त्व देने लगे.

5. इस Tarain Ka Yuddh में हार के बाद हांसी-हिसार अहिरवाल मेवाड़ युद्धों में हरियाणा के बहुत से वीर सैनिक मारे गए. धन संपत्ति की हानि हुई और मुसलमान धन संपत्ति लूट कर ले गए.

6. लड़ाई में विजय करके मुस्लिम आक्रमण कारियों ने मंदिरों को तोड़ा. कलात्मक मूर्तियों को नष्ट किया. इससे भारतीय कला को नुकसान पहुंचा.

7. हरियाणा और दिल्ली के आस-पास अनेक मुस्लिम धर्म प्रचारक आए इन्होंने इस्लाम धर्म का प्रसार होना शुरू हुआ लोगों को लालच देकर अथवा तलवार के बल पर इस्लाम धर्म कबूल करने की मजबूर किया.

FAQ (तराइन का दूसरा युद्ध (1192 ई०) से सम्बन्धित कुछ सवालो का जवाब)

अब हम जानेंगे Tarain Ka Yuddh से सम्बन्धित कुछ आपके द्वारा पूछे गए प्रश्नों के सवालों के जवाज और उस प्रश्न का उत्तर देखेंगे.

तराइन का प्रथम युद्ध कौन जीता?

तराइन का प्रथम युद्ध में मोहम्मद गौरी की हार होती है और पृथ्वीराज चौहान की बहुत बड़ी जीत होती है जिससे पृथ्वीराज चौहान बहुत खुश हो जाते है.


तराइन के द्वितीय युद्ध में किसकी जीत हुई थी?

तराइन की दूसरी लड़ाई में पृथ्वीराज तृतीय की हार हो जाती है और मोह्हमद गौरी इस युद्ध में जीत जाता है.

तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच में हुआ था?

तराइन का प्रधम यानि की पहली Tarain Ka Yuddh मोह्हमद गौरी अथवा पृथ्वीराज चौहान के बिच मध्य यह युद्ध लड़ा गया था.

अंत में युद्ध का निष्कर्ष

दोस्तों इस लेख में जानेंगे Tarain Ka Yuddh निष्कर्ष जो इस युद्ध में क्या-क्या हुआ है इसकी पूरी घटनाओ के बारे में कुछ पॉइंट को देखेंगे.

तराइन का द्वितीय युद्ध 1192 ईस्वी में लड़ा गया था. इस युद्ध में मोहम्मद गौरी रे पृथ्वीराज को हराया था मोहम्मद गौरी ने तराइन का द्वितीय युद्ध जीतने के बाद मुस्लिम शासन की स्थापना की.

दोस्तों इस लेख को पूरा विस्तार से हम लोग पढ़ चुके है एक-एक पॉइंट व हेडिंग को जो आपके एग्जाम के लिए अति महत्वपूर्ण रहेगा.

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