प्रिय स्टूडेंट इस लेख में भारतीय इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण टॉपिक 1857 ki kranti rajasthan का इतिहास को पूरा विस्तार से एक-एक टॉपिक को पढने है. इस जो आपके आने वाले सभी तरह के प्रतियोगी परीक्षाओ के लिए अति महत्वपूर्ण है. इस राजस्थान में 1857 की क्रांति की शुरुआत कब हुई और कारण क्या-क्या है. इस लेख में इस सारे टॉपिक को कवर करने वाले है. तो चलिए इस लेख को पूरा अंत तक पढ़ते है.
- राजस्थान में 1857 की क्रांति
- एरिनपुरा में क्रांति की शुरुआत कब हुई
- राजस्थान में छावनी विद्रोह
- राजस्थान में तात्या टोपे
- 1857 ई० की क्रांति राजस्थान की प्रमुख रियासतों के शासको
- राजस्थान में पॉलिटीकल एजेन्ट और अंग्रेज अधिकारी
राजस्थान में 1857 की क्रांति की शुरुआत कब हुई- 1857 Ki Kranti Rajasthan PDF
राजस्थान में 1857 Ki Kranti Rajasthan का प्रारम्भ निम्नलिखित है.
- नसीराबाद छावनी (अजमेर)
- नीमच छावनी (मध्य प्रदेश)
- एरिनपुरा (पाली) का विद्रोह / अउवा का विद्रोह
- बिथोड़ा का युद्ध
- कोटा का विद्रोह
नसीराबाद छावनी (अजमेर)
नसीराबाद छावनी (अजमेर):- प्रमुख केंद्र अजमेर राजस्थान में ब्रिटिश सत्ता का था. यहां भारी मात्रा में गोला-बारूद, सरकारी खजाना, संपत्ति थे. जॉर्ज पैथिक लोरेंस ने इसी डर से 15वी बंगाल नेटिव इन्फेंट्री को नसीराबाद भेज दिया कि कहीं ये यहा क्रांति ना कर दें. 28 मई 1857 को 15वी एन. आई रेजिमेंट के सैनिकों ने बख्तावर सिंह के नेतृत्व में 1857 ki kranti rajasthan की शुरुआत की थी. अंग्रेज अधिकारी मेजर स्पोटीसवुड व कर्नल न्यूबरी की सैनिकों ने हत्या कर दी और क्रांतिकारी दिल्ली की ओर रवाना हुए थे.
नीमच छावनी (मध्य प्रदेश)
नीमच छावनी (मध्य प्रदेश):- कर्नल ऐबोट सैनिकों को शपथ दिलाते हैं कि हमारा साथ देना है. मोहम्मद अली बैग बोलते हैं क्या तुमने अपनी शपथ का पालन किया क्या अंग्रेजों ने अवध को कुशासन का आरोप लगाकर हड़प नहीं लिया. यहां क्रांति की शुरुआत 3 जून 1857 ई० को हीरा सिंह और मोहम्मद अली बैग के नेतृत्व में यह 1857 ई० क्रांति होती है.
40 अंग्रेज अधिकारी व उनका परिवार क्रांतिकारीयों से बचते हुए डूंगला गांव पहुंचता है जहां रूंगाराम नामक एक किसान इन्हें शरण देता है. मेवाड़ का पोलिटिकल एजेंट शावर्स मेवाड़ी सेना की सहायता से इनको सुरक्षित उदयपुर पहुंचाता है. मेवाड़ के महाराणा स्वरूप सिंह ने इन्हें पिछोला झील में बने जगमंदिर महल में शरण दि थी. राजस्थान का प्रथम शासक जिसने 1857 की क्रांति में अंग्रेजों का सहयोग दिया मेवाड़ महाराणा स्वरूप सिंह ने.
एरिनपुरा (पाली) का विद्रोह/अउवा का विद्रोह
एरिनपुरा में क्रांति की शुरुआत कब हुई/अउवा का विद्रोह:- मारवाड़ में विद्रोह का प्रमुख व शक्तिशाली केंद्र अउवा स्थान था. जोधपुर लीजियन के 90 सैनिक अभ्यास हेतु माउंट आबू गए हुए थे. माउंट आबू का A.G.G का ग्रीष्मकालीन मुकाम भी था. 21 अगस्त 1857 को जोधपुर लीजीयन के सैनिकों ने विद्रोह कर दिया एवं आबू में अंग्रेज सैनिकों पर हमला कर दिया. यह विद्रोह शीतलप्रसाद, मोतीखा व तिलकराम के नेतृत्व में हुआ.
दिल्ली की ओर प्रस्थान चलो दिल्ली मारो फिरंगी को नारे के साथ किया हैं. यह सैनिकों व जनता ने विद्रोह रास्ते में अउवा (पाली) ठाकुर कुशाल सिंह चंपावत के नेतृत्व में विद्रोह किया. जब A.G.G लॉरेंस को इस घटना के बारे में पता लगा तब जोधपुर महाराजा तख्तसिंह को क्रांतिकारियों को कुचलने के लिए कहा था. तख्तसिंह अपने किलेदार ओनाड़सिंह के नेतृत्व में सेना भेजता है. जिसमें लेफ्टिनेंट हिथकोट भी शामिल था.
बिथोड़ा का युद्ध
बिथोड़ा का युद्ध:- बिथोड़ा का युद्ध 8 सितंबर 1857 ई० को होता है जिसमे एक तरह कुशाल सिंह चंपावत और दुसरे तरफ ओनाड़सिंह व केप्टन हिथकोट जो इनके बिच युद्ध होता है. इस युद्ध में कुशालसिंह चंपावत विजयी हुआ था. ओनाड़सिंह इस युद्ध में मारा गया था. ठीक इसके कुछ दिन बाद चेलावास का युद्ध (गौरो व कालों का युद्ध) होता है. एक तरफ कुशाल सिंह व क्रांतिकारी और दुसरे तरफ मेकमोसन, A.G.G है जो इनके मध्य युद्ध होता है. इस युद्ध में मेकमोसन मारा गया. क्रांतिकारियों ने अउवा के किले के बाहर मेकमोसन का सर काटकर लटका दिया.
AGG अजमेर भाग गया. इस घटना का पता जब गवर्नर जनरल लॉर्ड कैनिंग को लगा तो लॉर्ड कैनिंग ने कर्नल होम्स के नेतृत्व में अउवा में सेना भेजी थी. कुशालसिंह विजय की उम्मीद ना होने के कारण सलूंबर आ जाता है. कर्नल होम्स ने अजमेर सुगाली माता की मूर्ति को ले जाता है. सुगाली माता जिन्हें 1857 की क्रांति की देवी, 10 सिर 54 हाथ वाली देवी के नाम से जाना जाता है. वर्तमान में सुगाली माता की मूर्ति वागड़ संग्रहालय पाली में है. एक खंडित प्रतिमा के रूप में है. कुशालसिंह चंपावत को कोठारिया (भीलवाड़ा) के रावत जोधसिंह ने शरण दी थी. मेजर टेलर की अध्यक्षता में ब्रिटिश सरकार ने कमेटी बिठाई जिनमें इनको रिहा कर दिया गया.
कोटा का विद्रोह
कोटा का विद्रोह:- यह विद्रोह 15 अक्टूबर 1857 ki kranti rajasthan में सुनियोजित व सुनियंत्रित तरीके से कोटा में विद्रोह हुआ था. कोटा में विद्रोह जो हुआ था वह आम जनता व राजकीय सेना ने किया. कोटा में विद्रोह मेहराब खा व जयदयाल (वकील कामा, भरतपुर) के नेतृत्व में हुआ. कोटा के P.A बर्टन का सर काटकर कोटा शहर में घुमाया जाता है. कोटा के महाराव रामसिंह को नजरबंद कर दिया जाता है. बाद में करौली के महारावल मदनपाल ने अंग्रेजों का साथ दिया और कोटा के महाराव रामसिंह को भी छुड़वाया.
1857 की क्रांति के समय राजस्थान के शासक व तात्या टोपे राजस्थान की ओर- Rajasthan 1857 Ki Kranti
प्रिय स्टूडेंट इस लेख में 1857 ki kranti rajasthan में तात्या टोपे आगमन निम्नलिखित है.
- सेनापति तात्या टोपे
- राजस्थान में तात्या टोपे का दुसरी बार प्रवेश
सेनापति तात्या टोपे
नाना साहब (धोन्धुपत) का सेनापति तात्या टोपे कई बार राजस्थान आए इनका असली नाम रामचन्द्र पाण्डुरंग था. किन्तु यह तात्या टोपे के नाम से प्रसिद्ध हुआ. राजस्थान में तात्या टोपे राजपुत शासकों से मदद प्राप्त करने आया था किन्तु किसी शासक ने उसकी सहायता नही की थी. अलीपूर के युद्ध में चार्ल्स नेपियर से हारने के बाद 23 June 1857 ई० को उसने राजस्थान मे प्रवेश किया और सबसे पहले 8 Aug. 1857 ई० को माण्डलगढ़ (भीलवाड़ा) पर अधिकार कर लिया.
वह मेवाड़ जाना चाहता था किन्तु ब्रिगेडियर पार्क और मेजर टेलर ने उसका मार्ग रोक लिया था. 9 Aug. 1857 को भीलवाड़ा से कुछ दूर स्थित कुआड़ा स्थान पर कोठारी नदी के किनारे हुए युद्ध में जनरल राब्देस से हार गया. कोठारीयाँ के रावत जौध सिंह की सहायता से वह बचकर निकल गया और बूंदी पहुंचा. सूर्यमल्ल मिश्रण के कहने से बूंदी के शासक रामसिंह हाडा ने गुप्त रूप से 7,00,000 रु. तात्या टोपे को दिये थे.
नाथद्वारा के महन्त गिरधर जी ने भी उसकी सहायता की थी. यहाँ से तात्या झालावाड़ पहुँचा और वहाँ के शासक पृथ्वीसिंह को हराकर झालावाड पर अधिकार कर लिया किन्तु अंग्रेजों से पराजित होकर मध्य भारत की ओर चला गया.
राजस्थान में तात्या टोपे का दुसरी बार प्रवेश
राजस्थान में तात्या टोपे का दुसरी बार प्रवेश:- इस 1857 ki kranti rajasthan में तात्या टोपे का दुसरी बार प्रवेश 11 सितम्बर 1857 ई० को हुआ और उसने महारावल लक्ष्मण सिंह को हराकर उससे बांसवाडा छिन लिया. किन्तु मेजर रॉक के नेतृत्व वाली सेना ने उसे प्रतापगढ़ के निकट परास्त कर दिया तात्या टोपे ने Jan, 1858 ई० में टोंक पर अधिकार कर लिया. टोंक का नवाब वजीरूद्दौला अंग्रेज समर्थन था.
टोंक के जागीरदार नासिर मोहम्मद खान नवाब का मामा मीर आलम खां सेना सहित तात्या से मिल गये. नवाब टोक छोड़कर भाग गया. किन्तु जयपुर के पॉलिटीकल एजेन्ट कर्नल ईडर ने तात्या को टोंक से निकाल दिया.
अन्ततः 21 Jan. 1859 को तात्या की शक्ति सीकर में कर्नल होम्स से हारकर समाप्त हो गई थी. बीकानेर महाराजा सरदार सिंह के सामने उसके 600 सैनिकों ने आत्मसमर्पण कर दिया. तात्या अपने पुराने साथी मानसिंह नरुका के पास अलवर चला गया. मानसिंह नरुका अलवर रियासत के नखर ठिकाने का जागीरदार था. मानसिंह नरूका ने विश्वासघात करके नरवर के जंगलों में तात्या को अंग्रेजो के हवाले कर दिया और अंग्रेजो ने तात्या टोपे को फांसी दे दि थी. तात्या टोपे जैसलमेर के आलावा पुरे राजस्थान की सभी रियासतों में क्रांति के दौरान घूमता रहा.
(इस 1857 ki kranti rajasthan में तात्या टोपे के बारे में देखा व 1857 ki kranti rajasthan का इतिहास का यह अति महत्वपूर्ण प्रश्न है.)
1857 की क्रांति के महत्वपूर्ण तथ्य- 1857 Ki Kranti In Rajasthan
इस 1857 Ki Kranti Rajasthan की क्रांति के महत्वपूर्ण तथ्य निम्नलिखित है.
- बीकानेर
- अलवर
- जयपुर
- धौलपुर
- कोटा के विद्रोह से सम्बन्ध
बीकानेर
बीकानेर:- बीकानेर महाराजा सरदार सिंह राजस्थान का एकमात ऐसा शासक था जो अंग्रेजों की सहायता के लिए अपनी रियासत को छोड़कर इस 1857 Ki Kranti Rajasthan से बाहर गया. इसने पंजाब और हरियाणा में क्रांतिकारियो का दमन किया उसने बाडलु, हाँसी, सिरसा, हिसार आदि स्थानों पर विद्रोहियों से युद्ध किये. अंग्रेजो ने इस सहायता के बदले हनुमानगढ़ जिले के टिब्बी परगना के 41 गाँव पुरस्कार में दिये.
अलवर
अलवर:- जब 1857 Ki Kranti Rajasthan में क्रांति शुरू हुई तब अलवर का शासक बनेसिंह था. किन्तु 11 July 1857 को उसकी मृत्यु हो गई और शिव दान सिंह अलवर का शासक बना और ये दोनो शासक अंग्रेजो के समर्थक थे. दिल्ली से भागकर आये हुये क्रांतिकारियों को अलवर की पुलिस ने अंग्रेजों के हवाले कर दिया. जब बन्नेसिंह आगरे के किले में घिरे हुए अंग्रेजों की सहायता के लिए जा रहा था तो भरतपुर के पास अचनेरा स्थान पर विद्रोहियो ने उसे लुट लिया.
जयपुर
जयपुर:- जयपुर का शासक रामसिंह द्वितीय भी पूर्णत: अंग्रेजों कां समर्थक रहा और जयपुर की जनता ने भी अंग्रेजों का साथ दिया. रामसिंह द्वितीय ने नाहरगढ़ का किला और अपनी पूरी सेना अंग्रेजों को सौंप दी. क्रांति के बाद अंग्रेजों ने इस सहायता के लिए स्टार ऑफ इंडिया या सितारा-ए-हिन्द की उपाधि दी और कोटपुतली का क्षेत्र ईनाम में दिया.
धौलपुर
धौलपुर:- धौलपुर महाराजा भगवंत सिंह अंग्रेजों का वफादार बना रहा. धौलपुर में हीरालाल और राव रामचंद्र के नेतृत्व में विद्रोह यानि की यह संघर्ष हुआ और धौलपुर तोपो को लूटकर आगरा की ओर कुच कर गये यहाँ के क्रांतिकारी. गुर्जर नेता देवा ने 3000 विद्रोहियों के साथ धौलपुर के खजाने को लूट लिया. अन्त में धौलपुर महाराजा भगवंत सिंह ने पटियाला से सेना बुलवाकर धौलपुर के विद्रोहियों का दमन करवा दिया.
कोटा के विद्रोह से सम्बन्ध
कोटा के विद्रोह से सम्बन्ध:- अब्बास मिर्जा बेग और अकबर खान का सम्बन्ध कोटा के विद्रोह से है.
यह रहे 1857 Ki Kranti Rajasthan का महत्वपूर्ण तथ्य थे.
1857 ई० की क्रांति के समय राजस्थान की प्रमुख रियासतों के शासको के नाम इस प्रकार है-
1857 की क्रांति में राजस्थान का योगदान व इस 1857 Ki Kranti Rajasthan में प्रमुख रियासतों के शासको के नाम निम्नलिखित है.
क्रमांक | रियासत का नाम | शासक का नाम |
1 | मेवाडा या उदयपुर | स्वरूप सिंह |
2 | जोधपुर या मारवाड़ | तख्त सिंह |
3 | जयपुर या ढुंढाड | रामसिंह द्वितीय |
4 | बीकानेर | सरदार सिंह |
5 | टोंक | नवाब वजीरूद्दौला |
6 | कोंटा | महाराव रामसिंह द्वितीय |
7 | बूंदी | रामसिंह |
8 | करौली | मदनपाल यादव |
9 | धौलपुर | भगवंत सिंह |
10 | भरतपुर | जसवंत सिंह (अल्पवयस्क) |
11 | अलवर | पहले बन्ने सिंह फिर शिवदान सिंह |
12 | सिरोही | शिव सिंह |
13 | डुगंरपुर | उदय सिंह |
14 | बांसवाड़ा | लक्ष्मण सिंह |
15 | झालावाड | पृथ्वी सिंह |
16 | प्रतापगढ़ | दलपत सिंह |
17 | जैसलमेर | रणजीत सिंह |
राजस्थान के प्रमुख रियासतों में स्थित पॉलिटीकल एजेन्ट और अंग्रेज अधिकारी
इस rajasthan me 1857 ki kranti in hindi में प्रमुख रियासतों में स्थित पॉलिटीकल एजेन्ट और अंग्रेज अधिकारी निम्नलिखित है.
- A.जोधपुर:- मेकमोसन पॉलिटीकल एजेन्ट था किन्तु बिथौडा के युद्ध में लड़ने के लिए हीथकोट को भेजा गया. कुशाल सिंह के खिलाफ कैप्टन हार्ड कैसल के नेतृत्व में जोधपुर की सेना भेजी गई थी किन्तु यह क्रान्तिकारियों को नही रोक पाई थी. जोधपुर के कार्यवाहक पॉलिटीकल एजेंट प्रिचार्ड ने लिखा है कि- “जोधपूर की सैनिक टुकड़ी का व्यवहार अंग्रेंज विरोधी था और इसने भुतपूर्व AGG सदरलैण्ड की प्रतिमा पर पत्थर फेंके”
- B.कोटा:- पॉलिटीकल एजेंट मेजर बर्टन था और उसका डॉ. सेडलर कोटम भी विद्रोहियों द्वारा मारा गया.
- C.जयपुर:- पॉलिटीकल एजेंट- कर्नल ईडन
- D.मेवाड या उदयपुर:- पॉलिटीकल एजेंट- मेजर शावर्स
- E.भरतपूर:- पॉलिटीकल एजेंट- मेजर निक्सन और वहाँ का बदनाम अंग्रेज अधिकारी मॉरीसन था.
नसीराबाद छावनी का नेतृत्व किसने किया
इस लेख में 1857 Ki Kranti Rajasthan में नसीराबाद छावनी का विद्रोह के बारे मे पढने वाले है.
कैप्टन प्रिचार्ड ने अपनी पुस्तक “म्युरिनीज इन राजपुताना” में नसीराबाद छावनी के विद्रोह का वर्णन किया है और ये स्वयं उस छावनी में अधिकारी था. नाथु राम खइगावत ने इस क्रांति की समीक्षा अपनी पुस्तक” राजस्थानस रॉल इन द स्ट्रगल ऑफ. 1857″ में की है. ध्यान रहे राजस्थान का प्रशासन उत्तर पश्चिमी प्रांत के लेफ्टिनेंट गिवर्नर कॉलविन के नियन्त्रण में था जिसका मुख्यालय आगरा में था. किन्तु राजस्थान में शांति व्यवस्था की जिम्मेदारी AGG के पास होती थी. जिसका मुख्यालय अजमेर में था.
इसे भी पढ़े: 1857 की क्रांति के कारणों का वर्णन
FAQ (1857 Ki Kranti Rajasthan) से सम्बन्धित कुछ सवालो का जवाब)
प्रिय स्टूडेंट इस लेख मे राजस्थान में 1857 की क्रांति से सम्बन्धित आपके द्वारा पूछा गया महत्वपूर्ण प्रश्नों का जवाब देखने वाले है.
राजस्थान में 1857 की क्रांति कहाँ से प्रारम्भ हुई?
राजस्थान में 1857 ई० की क्रांति नसीराबाद छावनी से यह क्रांति प्रारभ हुई थी.
28 मई 1857 को क्या हुआ था?
इस समय राजस्थान में नसीराबाद छावनी में यह विद्रोह राजस्थान में हुई.