इस लेख में 1857 की क्रांति के कारणों का वर्णन किया गया है अगर आप 1857 ki kranti in hindi में जानना चाहते है तो इस लेख को पूरा अंत तक पढ़े.
यदि आप इस लेख को पूरा अंत तक पढ़ते है तो मैं पुरे दावे के साथ कहता हु की आपको 1857 की क्रांति का कारण और परिणाम एवं असफलता के कारण 1857 ki kranti ke karan जैसे सम्बन्धित सारे टॉपिक्स अच्छे से समझ में आ जायेंगे.
1857 की क्रांति के कारणों का वर्णन ये काफी महत्वपूर्ण टॉपिक है अगर आप किसी प्रतियोगी परीक्षा के तैयारी कर रहे या आप बोर्ड एग्जाम देने जा रहे है तो यह टॉपिक 1857 ki kranti ka netritva kisne kiya यह भी आपके लिए अति महत्वपूर्ण है ये हर तरह के परीक्षाओ में भी पूछे जाते है जैसे -Class 10th-12th, IAS-PCS,RPF, SSC-GD, UPP, SSC CGL, CHSL, MTS,CTET-UPTET, REET DSSSB MPTET RAILWAY & all exams. दोस्तों आपको इसी तरह की और जानकारी आपको हमारे GK GS In Hindi नामक ब्लॉग पर मिल जाएँगी.
हम इस लेख में 1857 Ki Kranti in Hindi से सम्बंधित सभी चीज अच्छे से जानेंगे. तो चलिए अब हम जानते है की 1857 की क्रांति के कारणों का वर्णन में क्या है 1857 ki kranti ke karan पूरा इतिहास इसका आज जानेंगे.
1857 की क्रांति के कारणों का मुख्य घटनाये – 1857 ki Kranti in Hindi
राजा और नवाबों की ताकत:- 18 वीं सदी के मध्य से ही राजा और नवाबों की ताकत छिनने लगी थी. उनकी सत्ता सम्मान दोनों खत्म होते जा रहे बहुत सारे दरबारों में रेजिडेंट तैनात किए गए थे. स्थानीय शासकों की स्वतंत्रता घटती जा रही थी. उनकी सेनाओं को भंग किया गया था. उनके राजस्व वसूली के अधिकारी व इलाके एक-एक करके छीने जा रहे थे.
बहुत सारे स्थानिय शाशकों ने अपने हितों के रक्षा के लिए कंपनी के साथ बातचीत की उदहारण के लिए रानी लक्ष्मीबाई चाहती थी. की कम्पनी उनकी पत्नी की मृत्यु के बाद उनकी गोद लिए पुत्र को राजा मान ली. पेशवा बाजीराव द्वितीय के पुत्र नाना साहब ने कम्पनी से आग्रह किया कि जो उनके पिता को पेंशन मिलते थे.
मृत्यु के बाद उनहे मिलने लगे अपनी श्रेष्ठता और सैनिक ताकत की नशे में चुड़ कम्पनी ने इन निवेदकों को ठुकरा दिया अवध रियासत के अंग्रेजों के कब्जे में जाने वाली आखरी रियासतों में से एक थी.
1801 में अवध में एक सहायक संधि ठोकी गई और 1856 में अंग्रेजों ने अपना कब्जे में ले. लिया गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी ने ऐलान कर दिया रियासत का शासन ठीक से नहीं चलाया जा रहा है. इसलिए शासन को दुरुस्त करने के लिए ब्रिटिश प्रबुद्ध बहुत जरूरी है इसलिए अंग्रेज सभी रियासतों पर अपना कब्जा चाहते थे. कंपनी ने मुगलों के शासकों को खत्म करने के लिए पूरी योजना बना ली थी.
1857 Ki Kranti in Hindi में यह भी बताया गया है की कंपनी द्वारा जारी किए गए सिक्कों पर से मुगल बादशाह का नाम हटा दिया गया था. 1849 में गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी ने एलान किया बहादुर शाह जफर की मृत्यु के बाद बादशाह का परिवार लाल किले से निकालकर उसे दिल्ली में कहीं और बसाया जाएगा.
1856 में गवर्नर जनरल कैनी ने फैसला किया कि बहादुर शाह जफर आखिरी मुगल बादशाह होंगे उनकी मृत्यु के बाद उनकी किसी भी वंश को बादशाह नहीं माना जाएगा उन्हें केवल राजकुमारों मैं मान्यता दी जाएगी और इस तरह अंग्रेजों ने एक-एक करके रियासतों साम्राज्यो का अंत किया और अपना सौमित्र पूरे भारत में स्थापित कर लिया.
1857 ki kranti ke karan हम 1857 की क्रांति के कारणों का मुख्य घटनाओ के पहले कुछ पॉइंट जान लेते है फिर उसके बारे में अच्छे से एक – एक करके जानेंगे जो निम्नवत है –
- किसान और सिपाही
- सुधारों पर प्रतिक्रिया
- सैनिक विद्रोह बना जन विद्रोह
- मेरठ से दिल्ली तक
- बगावत फैलने लगी
- अंग्रेजों का पलटवार
- विद्रोह के बाद क्या हुआ
किसान और सिपाही
किसान और सिपाही:- 1857 Ki Kranti in Hindi में गांव में किसान और जमीदार भारी भरक लगान और वसूली से सख्त तौर तरीके से परेशान थे. बहुत सारे लोग महाजनों से लिया कर्ज नहीं लौटा पा रहे थे. इसके कारण उनकी पीढ़ी पुरानी जमीन हाथ से निकलती जा रही थी. कंपनी के तहत काम करने वाले भारतीय सिपाहियों को असंतुष्ट के अपनी वजह थी.
वह अपने वेतन भत्ता सेवा शर्तों के कारण परेशान थे. कई नए नियम उनके धार्मिक भावनाओं और आस्थाओं को ठेस पहुंचाते थे.
आपको जानकर हैरानी होगी उस समय बहुत सारे लोग समुद्र पार नहीं करना चाहते थे. उन्हें लगता था कि समुंद्र यात्रा से उनका धर्म जाति भ्रष्ट हो जाएगी जब 1824 में सिपाहियों को कंपनी की तरह से लड़ने जाने का आदेश मिला तो उन्होंने इस हुकुम को मानने का इंकार कर दिया हाला की जमीन के रास्ते से जाने से एतराज नहीं था.
सरकार का हुकुम ना मानने का कारण सख्त सजा दी गई क्योंकि ए मुद्दा खत्म नहीं हुआ था. इसलिए 1856 में कंपनी को एक नया कानून बनाना पड़ा इस कानून में साफ कहा गया था. अगर कोई व्यक्ति का कंपनी का सेना में नौकरी करेगा तो जरूरत पड़ने पर उसे समुंदर पार भी जाना पड़ सकता है पर इसके अलावा सिपाही गांव के हालात से भी परेशान थे. बहुत सारे सिपाहियों ने खुद भी किसान थे व अपने परिवार को गांव में छोड़ कर आए थे. किसानों का गुस्सा जल्दी सिपाहियों में भी फैल गया. चलिए अब हम 1857 Ki Kranti in Hindi की अन्य कारण जान लेते है.
सुधारों पर प्रतिक्रिया
सुधारों पर प्रतिक्रिया:- 1857 Ki Kranti in Hindi जो अंग्रेजों को ऐसा करना परा था कि भारतीय समाज को सुधारना भी जरूरी है. सती प्रथा को रोकने के लिए और विधवा विवाह को बढ़ाना देना के लिए कानून बनाया गया. अंग्रेजी भाषा की शिक्षा को जामकार प्रोत्साहन दिया गया 1830 के बाद कंपनी ने ईसाई मिस्त्रीओं को काम करने यहां पर जमीन की संपत्ति जुटाने की आजादी दे दी थी. 1857 Ki Kranti in Hindi में यह भही जान लेना जरुरी है की.
साल 1850 में नया कानून बनाया गया जिसे ईसाई धर्म को अपनाना और भी आसान हो गया इस कानून में प्रस्तावना किया गया था. कि अगर कोई भारतीय ईसाई धर्म का अपनाता है तो पुरखों की संपत्ति उसका अधिकार पहले जैसा ही रहेगा अंग्रेजों की नीतियों से बहुत सारे भारतीयों का यकीन हो गया था कि अंग्रेज उनका धर्म और सामाजिक रीति रिवाज और परंपरागत मिशन शैली को नश्त कर रहे है.
सैनिक विद्रोह बना जन विद्रोह
सैनिक विद्रोह बना जन विद्रोह:- हालांकि शासकों प्रजा के बीच जनसंख्या कोई नई बात नहीं है. लेकिन 1857 Ki Kranti in Hindi कभी-कभी यह संघर्ष इतने फैल जाते हैं कि राज्य की सत्ता छिन्न-भिन्न हो जाती है भारत के उत्तरी भागों में 1857 में ऐसे ही स्थिति पैदा हो गई थी. फटे और शासन के 100 साल बाद ईस्ट इंडिया कंपनी को एक भारी विद्रोह से जोड़ना पर था. 1857 Ki Kranti in Hindi में अब वह समय आ गया था की जो
मई 1857 में शुरू हुई इस बगावत में भारत में अंग्रेजों को अवस्थी को ही खतरे में डाल दिया था. मेरठ से शुरू हुई बगावत आगे चलकर भारत में अलग-अलग शहरों में फैल गई समाज के विभिन्न तर्कों के लोग असम के लोग विद्रोही तेवरों के साथ उठ खड़े हुए कुछ लोग मानते हैं कि 19वी उपनिवेश वाद के खिलाफ दुनिया भर में सबसे बड़ा सशस्त्र संघर्ष था. 1857 Ki Kranti in Hindi जो क्रांति का बड़ा सशस्त्र संघर्स था.
मेरठ से दिल्ली तक
मेरठ से दिल्ली तक:- 29 मार्च 1857 मैं युवा सिपाही मंगल पांडे को बैरकपुर में अपने अफसरों पर हमला करने के आरोप में फांसी पर लटका दिया गया था चना दिनों बाद मेरठ में तैनात कुछ सिपाहियों ने नए कर दूसरों के साथ अभ्यास करने से इंकार कर दिया सिपाहियों को लगता था.
उन कारतूसो मैं गाय सूअर की चर्बी की लेब चढ़ाया गया था. गाय हिंदुओं के लिए पवित्र थी जबकि सूअर मुसलमानों के लिए अपवित्र परिणामत: हिंदू और मुसलमान सैनिक भड़क उठे और इन्होंने इन करतूतों का प्रयोग करने से इंकार कर दिया इसके चलते 85 सिपाहियों को नौकरी से निकाल दिया गया. 1857 Ki Kranti in Hindi की घटना में यह भी सामिल था की जो
उन्हें अफसरों का हुकुम ना मानने से 10-10 साल की सजा हुई 9 मई 1857 की बात है मेरठ में तैनात दूसरे भारतीय सिपाहियों को प्रक्रिया बहुत अच्छी रही 10 मई को सिपाहियों ने मेरठ के जेल पर धावा बोल दिया. वहां पर बंद परे सिपाहियों को आजाद करा दिया और वहां पर अंग्रेज अफसरों को हमला कर मार गिराया इसके अलावा उनका बंदूक हथियार भी अपने कब्जे में ले लिया. और अंग्रेजों के इमारतों और संपत्ति को आग के हवाले कर दिया.
उन्होंने 1857 Ki Kranti in Hindi में जो फिरंगीयों के खिलाफ युद्ध का ऐलान कर दिया सिपाही पूरे देश में अंग्रेजों का शासन खत्म करने पर अमल हो गए थे. लेकिन सवाल यह था कि अंग्रेजों के जाने के बाद देश का शासन कौन चलाएगा सिपाहियों ने इसका भी जवाब धून लिया था. उन्होंने मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर को फिर से देश की सत्ता सौंपना चाहते थे.
मेरठ के कुछ सिपाहियों की एक डोली 10 मई रात को घोड़े पर सवार होकर अंधेरे में दिल्ली पहुंच गई जैसे ही उनके आने की खबर फैली दिल्ली में तैनात टोकरीयो बगावत कर दी 1857 Ki Kranti in Hindi की घटना हुई और यहां पर भी कई अंग्रेज अफसर मारे गए
देसी सिपाहियों ने हथियार मैं गोला बारूद अपने कब्जे में ले लिया और इमारतों को आग लगा दी इसके बाद विजय सिपाही लाल किला के दीवालो के आसपास जमा हो गए यह बादशाह से मिलना चाहते थे.
बादशाह अंग्रेजों के भारी ताकत से दो हाथ करने से तैयार नहीं थे. 1857 Ki Kranti in Hindi की ऐसी घटना में सिपाही भी अरे रहे आखिरकार यह जबरजस्ती महल में घुस गए उन्होंने बहादुर शाह जफर को अपना नेता घोषित कर दिया पूरे बादशाह सिपाहियों को बात माननीय परी और उनके देशभर शासकों और मुखियाओ को चिट्ठी लिखकर अंग्रेजों से लड़ने के लिए भारतीय राज्यों का एक संघ बनाने का मांग किया
बहादुर शाह जफर के एक मात्र कदम से गहरे परिणाम सामने आए अंग्रेजों से पहले देश में एक बहुत बड़े हिस्से पर मुगल शासकों का शासन था ज्यादा दर शासन राज्य वारे मुगल शासकों के नाम से अपना शासन चलाते थे. अंग्रेजी शासन से विस्तार से भयभीत ऐसे बहुत सारे शासको को लगता था.
अगर मुगल बादशाह दोबारा शासन स्थापित कर ले वह मुगल अपने शासन दोबारा चला पाएंगे उधर अंग्रेजों के इन घटनाओं को उम्मीद नहीं थी. उन्हें लगता था कि करतूसो के मुद्दों पर पैदा हुए उथल-पुथल कुछ समय में शांत हो जाएगी लेकिन जब बहादुर शाह जफर ने बगावत कर अपना समर्थन दे दिया तो स्थिति रातों रात बदल गई.
अक्सर ऐसा होता है जब लोगों को उम्मीद की नई किरण देखने लगती है उनका उत्साह और संघर्ष बढ़ने लगता है इसे उन्हें आगे बढ़ने की हिम्मत उम्मीद आत्मविश्वास मिलता है.
बगावत फैलने लगी
बगावत फैलने लगी:- जब दिल्ली से अंग्रेजों के पैरों उभर गए लगभग 1 हफ्ते तक कहीं भी और विद्रोह नहीं हुआ जाहिर है कि खबर फैलने मैं भी कुछ समय लगता ही था. इसके बाद विद्रोह का सिलसिला ही शुरू हो गया एक के बाद एक हर रजमेंट सिपाहियों ने विद्रोह कर दिया और दिल्ली कानपुर लखनऊ जैसे मुख्य बिंदुओं पर दूसरे टोकरियों का साथ देने निकल पड़े
उनके देखा देखी कस्बे और गांव के लोगों ने बगावत के रास्ते पर चलने लगे वह स्थानीय नेताओं जमीदारों और मुखियाओ के बीच संगठित हो गए. यह लोग अपने सत्ता स्थापित करने और अंग्रेजों के लोहा लेने के लिए तैयार थे.
स्वर्गीय पेशवा बाजीराव द्वितीय के पुत्र नाना साहब कानपुर के पास रहते थे उन्होंने सेना को संगठित किया और अंग्रेजों को शहर से खदेड़ दिया. उन्होंने खुद को पेशवा घोषित कर दिया और ऐलान किया वह बादशाह बहादुर शाह जफर के तहत गवर्नर है लखनऊ की गद्दी से हटा दिए गए नवाब वाजिद अली शाह के बेटे बृजेश कद्र को नया नवाब घोषित कर दिया गया
बृजेश कद्र ने बहादुर शाह जफर को अपना बादशा मान लिया उनके मां बेगम हजरत महल अंग्रेजो के खिलाफ 1857 Ki Kranti in Hindi के विद्रोह को बढ़ावा देने में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया
झांसी में रानी लक्ष्मीबाई भी अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोही सिपाही के साथ जा मिली उन्होंने नाना साहब के सेनापति तात्या टोपे के साथ मिलकर अंग्रेजों को भारी चुनौती दी मध्यप्रदेश के रानी अवंती बाई लोधी मैं 4000 हजार सैनिकों की फौज तैयार की और अंग्रेजो के खिलाफ उसका नेतृत्व किया
क्योंकि ब्रिटिश शासन ने उनके राज्य के शासन पर भी नियंत्रण कर लिया था. विद्रोही टोकरियों की सामने अंग्रेजों की सेना बहुत ही कम थी. बहुत सारे मोर्चे पर उनके हार हुई इससे मुगलो को यकीन हो गया अब अंग्रेजों का शासन खत्म हो चुका है अब लोगों को विद्रोह को खुद पढ़ने का गहरा आत्मविश्वास मिल चुका है खासतौर पर अवध के इलाके चौतरफा बगावत की स्थिति थी.
6 अगस्त 1857 को लेफ्टिनेंट गवर्नर टाइटल ने अपने कमांडर जीप को टेलीग्राम भेजा जिसमें उसने अंग्रेजों को भय व्यक्त किया था. हमारे लोग विद्रोहियों की संख्या और लगातार लड़ाई से थक गई है एक-एक गांव हमारे खिलाफ है जमीदार भी हमारे खिलाफ हो चुके हैं इस दौरान बहुत सारे महत्वपूर्ण नेता सामने आए उदाहरण के लिए फैजाबाद के अहमद अब्दुल शाह भविष्यवाणी कर दी थी कि अंग्रेजों का शासन जल्दी खत्म हो जाएगा.
अंग्रेजों का पलटवार
अंग्रेजों का पलटवार:- इस उथल-पुथल के बीच अंग्रेजों ने हिम्मत नहीं छोरी कंपनी ने अपनी पूरी ताकत लगाकर 1857 Ki Kranti in Hindi के विद्रोह को कुचलने का फैसला लिया उन्होंने इंग्लैंड से और फौजी मंगवाए विद्रोहियों को जल्दी सजा देने के लिए नए कानून बनाए गए और विद्रोह को मुख्य केंद्रों पर धावा बोला सितंबर 1857 में दिल्ली दोबारा अंग्रेजो के कब्जे में आ गई अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर पर मुकदमा चलाया गया उन्हें आजीवन कारावास की सजा दी गई
उनके बेटे को उनके आंखों के सामने गोली मार दी गई बहादुर शाह जफर और उनके पत्नी बेगम हजरत महल को अक्टूबर 1858 रंगून जेल में भेज दिया गया इसी जेल में 1862 में बहादुर शाह जफर ने अपनी अंतिम सांस ली दिल्ली में अंग्रेजों कब्जा हो जाने का मतलब यह नहीं था की 1857 Ki Kranti in Hindi की विद्रोह खत्म हो चुका था इसके बाद भी लोग अंग्रेजों से टक्कर लेते रहे व्यापक बगावत के दिशा को कुचलने के लिए अंग्रेजों के अगले 2 साल तक लड़ना पड़ा
मार्च 1858 में लखनऊ अंग्रेजो के कब्जे में आ गया जून 1858 में रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु हुई उन्हें मार दिया गया और रानी अवंती बाई लोधी के साथ भी ऐसा ही हुआ खेरी की शुरुआती विजय के बाद उन्होंने अपने आपको अंग्रेजी सेना के बीच घेरा पाया और वह शहीद हो गई तात्या तोपे मध्य भारत के जंगलों में रहते हुए आदिवासियों पाकिस्तानो के मदद से छापामारी युद्ध चलाते रहें जिस तरह पहले 1857 Ki Kranti in Hindi के अंग्रेजों के खिलाफ मिली सफलता विद्रोहियों को उत्साह मिला था.
उसी तरह विद्रोही ताकतों की आड़ से लोगों की हिम्मत लौटने लगी बहुत सारे विद्रोहियों का साथ छोड़ दिया अंग्रेजों ने भी लोगों को अविश्वास जीतने के लिए हर संभव प्रयास किया उन्होंने वफादार गोस्वामी के लिए ईननामों का ऐलान कर दिया उन्हें आश्वासन दिया गया उनके जमीन पर उनके परंपरा अधिकार बने रहेंगे जिन्होंने विद्रोह किया था.
उसे कहा गया था कि अगर अंग्रेजों के सामने समर्पण कर देते हैं तो उन्हें किसी अंग्रेज की हत्या नहीं की है तो व सुरक्षित रहेंगे और उनकी जमीन पर अधिकार दावेदारी बनी रहेगी इसके बावजूद सैकड़ों सिपाहियों विद्रोही हो और राजाओ पर मुकदमा चलाए गए और 1857 Ki Kranti in Hindi में उन्हें फांसी पर लटका दिया गया
विद्रोह के बाद क्या हुआ
विद्रोह के बाद क्या हुआ:- अंग्रेजों ने 1859 आखिर तक देश पर दोबारा नियंत्रण पा लिया था लेकिन 1857 Ki Kranti in Hindi की घटना अब हुए पहले जैसा नीतियों का शासन नहीं चला पा रहे थे अंग्रेजों ने जो अहम बदलाव किए थे वह इस प्रकार थे ब्रिटिश सांसद ने 1858 में नया कानून पारित किया और ईस्ट इंडिया कंपनी की सारे अधिकार ब्रिटिश साम्राज्य के हाथों में सौंप दिए ताकि भारतीय मामलों पर ज्यादा बेहतर ढंग से संभाला जा सके ब्रिटिश मंत्रिमंडल के एक सदस्य को भारत और के मंत्रिमंडल के रूप में नियुक्त किया गया.
उसे भारत के शासन के संबंधित मामले को संभालने का जिम्मा दिया गया उसे सलाह देने के लिए एक परिषद का गठन किया गया जिसे इंडिया काउंसिल कहा जाता था.
भारत के गवर्नर जनरल को वायसराय का न्योता दिया गया इस प्रकार उन्हें इंग्लैंड का राजा रानी का नीजी प्रतिनिधि घोषित कर दिया गया फल स्वरूप अंग्रेज सरकार ने भारत के शासन की जिम्मेदारी सीधे अपने हाथों में ले ली देश के सभी राजाओ को भरोसा दिया गया कि भविष्य में कभी भी उनके क्षेत्र पर काव्या नहीं किया जाएगा.
उन्हें अपने रियासतो और कई चीजों को छूट दे दी गई लेकिन उन्हें इस बात को भी प्रेरित किया गया ब्रिटेन के रानी को अपना अधिपति स्वीकार करें इस तरह भारतीय शासकों को ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन शासन चलाने की छूट दे दी गई सेना में भर्ती सिपाहियों अनुपात कम करने और यूरोपीय सिपाहियों की संख्या बढ़ाने का फैसला लिया गया.
यह भी तय किया गया अवध बिहार मध्य भारत और दक्षिण भारत से सिपाहियों की भर्ती करने के बजाय गोरखा सीखो और पठानों में से ज्यादा सिपाही भर्ती की जाए अंग्रेजों ने फैसला लिया कि वह भारत के लोगों को धर्म और सामाजिक रीति रिवाजो का सम्मान करेंगे भूस्वामी और जमीदारों की रक्षा करने के लिए तथा उनके जमीन पर अधिकारों का अस्थाई करने के लिए नई नीतियां बनाई गई इस प्रकार 1857 का इतिहास का एक नया चरण शुरू हुआ
तो अब हम जान चुके है की 1857 ki kranti in hindi में क्या होता है. और इसका महत्वपूर्ण घटनाएँ के बारे में इस घटनाये के बारे में आपको बताया गया है की आप को 1857 की क्रांति के कारणों का वर्णन कैसे हुआ है क्या क्या संघर्ष था तो चलिए अब हम जानते है. 1857 की क्रांति के परिणाम
अब हम इस लेख में पूरा अच्छी तरह से 1857 की क्रांति के परिणाम जानेंगे और आसान भासा में सबसे पहले हम यह जान लेते है की 1857 ki kranti के महत्वपूर्ण टॉपिक 1857 की क्रांति के परिणाम तो चलिए जानते 1857 ki kranti ke karan तो जान चुके है अब हम जानते है इस 1857 की क्रांति के परिणाम क्या क्या है.
1857 की क्रांति के परिणाम–1857 ki kranti ke parinam
तो अब चलिए इस लेख में 1857 की क्रांति के परिणाम का अच्छे तारीके से समझते है और ओ भी सबसे आसान भाषा में जो आपको पढने में आसानी हो जाएगी चलिए अब लेख को पढना शुरू करते है.
- विक्टोरिया ने घोषणा की कि वह भारतीय मामले में कोई हस्तपक्षेप नही करेंगे.
- भारतीय सैनिकों की संख्या कम कर दी गई या पुनर्गठन किया गया पील कमीशन की सिफारिश पर.
- सैनिकों की यूनिटों को रेजीमेंट में बांट दिया गया.
- मिशरेल वी०डी० सावरकर – राष्ट्रीय आंदोलन.
- R.C मजूमदार न ही प्रथम न ही स्वतंत्रा संग्राम यह एक प्रतिक्रिया थी.
FAQ (1857 ki kranti in hindi से सम्बन्धित कुछ सवालो का जवाब )
1857 की क्रांति में क्या हुआ?
1857 की क्रांति में विद्रोह संघर्स हुआ जो मेरठ शहर से सुरु हुआ था
1857 की क्रांति का जनक कौन था?
1857 की क्रांति का जनक मंगल पाण्डेय को माना जाता है
1857 की क्रांति कहाँ से शुरू हुई थी?
1857 की क्रांति की शुरुआत सवर्प्रथम 10 मई मेरठ शहर से शुरु हुई
1857 क्रांति का दूसरा नाम क्या था?
1857 की क्रांति जिसे सैनिक विद्रोह बना जन विद्रोह से भी नाम से जानते है
1857 की क्रांति के प्रमुख केंद्र कौन कौन से थे?
1857 की क्रांति के प्रमुख केंद्र दिल्ली, कानपुर, झाँसी, प्रयागराज(इलाहाबाद) और बरेली फतेहपुर, फैजाबाद, जगदीशपुर (बिहार) और लखनऊ यह रहे 1857 की क्रांति के प्रमुख केंद्र
अंत में क्या पढ़ा
देखिए इस लेख में आपको 1857 की क्रांति की शुरुआ कैसे हुई और कहाँ से शुरू हुआ था. 1857 की क्रांति का हम लोग यह देखा की यह क्रांति की शुरुआत मेरठ शहर से प्रारम होती है. यह क्रांति में नाना साहब की देहांत भी हो जाती है और ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना हो जाती है. यह रही 1857 की क्रांति के यह निष्कर्ष थी.